घने जंगल में है 2100 वर्ष पुराना भूतेश्वर महादेव मंदिर, कभी था 'भूतों का डेरा' आज लगती है भक्तों की भीड़

Rajasthan News: राजधानी जयपुर में आमेर की पहाड़ियों में नाहरगढ़ जैविक उद्यान के करीब 5 किलोमीटर अंदर भूतेश्वर महादेव में लोग दूर-दूर से महादेव के दर्शन करने और सावन के महीने में जलाभिषेक करने आते हैं.

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भूतेश्वर महादेव मंदिर

Bhuteshwar Mahadev Mandir: आज सावन का आखिरी सोमवार है. महादेव का आशीर्वाद पाने के लिए भोलेनाथ के भक्त शिव मंदिरों में भोलेशंकर का जलाभिषेक करने के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े हैं. इसी क्रम में राजधानी जयपुर में भी आमेर की पहाड़ियों में नाहरगढ़ बायोलॉजिकल पार्क से करीब 5 किलोमीटर अंदर भूतेश्वर महादेव में महादेव के दर्शन के लिए दूर-दूर से लोग आए हैं.

 2.5 फीट स्वयंभू शिवलिंग में यहां विराजते है महादेव

इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह आस्था का केंद्र होने के साथ-साथ अद्भुत रहस्यों, इतिहास और आध्यात्म का अनूठा संगम है. कहा जाता है कि यह मंदिर आमेर शहर के बसने से भी पहले से मौजूद था. मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां एक स्वयंभू शिवलिंग है. भोलेनाथ स्वयं यहां प्रकट हुए थे. आज मंदिर में मौजूद शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 2.5 फीट है, जो देखने में दिव्य और अलौकिक प्रतीत होता है.

वीरान जंगल, भूतों का डेरा और तपस्वी की तपस्या

लोककथाओं के अनुसार, यह वीरान जगह कभी भूत-प्रेतों का अड्डा हुआ करती थी. मंदिर में आने वाला कोई भी पुजारी ज़िंदा वापस नहीं लौटता था. कहा जाता है कि यहां डेरा जमाए भूत-प्रेत उसे मार डालते थे. लगभग 2100 साल पहले, मंगल बंदी नाम के एक तपस्वी यहां आए और वर्षों तक तपस्या करके उन्होंने उन आसुरी शक्तियों का नाश किया. बाद में, उन्होंने मंदिर के पास ही समाधि (जीवित समर्पण) ले ली. आज भी उनकी समाधि मंदिर परिसर के बाईं ओर स्थित है. इसके साथ ही, उनके तीन शिष्यों की समाधियां भी मौजूद हैं.

17वीं सदी की वास्तुकला और 13 पीढ़ियों से सेवा

मंदिर के मंडप और गुंबद को देखने से यह साफ पता चलता है कि यह 17वीं शताब्दी की स्थापत्य कला से मेल खाता है. मंदिर निर्माण के कारीगर का नाम चंदाराम कुमावत बताया जाता है. मंदिर की पूजा-अर्चना ओमप्रकाश पारीक और उनका परिवार 13 पीढ़ियों से करता आ रहा है.

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भूतेश्वर महादेव मंदिर
Photo Credit: NDTV

सावन में भक्तों की भारी भीड़

सावन के पावन महीने में यहां हजारों श्रद्धालु जलाभिषेक और  रुद्राभिषेक के लिए आते हैं. श्रद्धालु मानते हैं कि जो भी यहां सच्चे मन से प्रार्थना करता है, उसकी मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती हैं.

कठिन ट्रैक, जंगली रास्ता और पापड़ बेलती भक्ति

भक्तों को यहां पहुंचने के लिए आसान रास्ता नहीं मिलता. नाहरगढ़ अभयारण्य के भीतर करीब 8 किलोमीटर का सफर जंगल और पहाड़ी रास्तों से तय करना होता है. कई बार जंगली जानवरों का भी सामना करना पड़ता है. यही कारण है कि यहां पहुंचने वालों को 'भक्ति में तप' का अनुभव होता है.

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धूणा और संन्यासियों की तपोभूमि

मंदिर में एक धूना (तपस्या स्थल) भी है, जहां तपस्वी तप किया करते थे. यह आम लोगों के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र है. आज भी मंदिर परिसर में सवामणी जैसे धार्मिक आयोजन और अन्य त्योहारों पर विशेष भोज का आयोजन होता है. आमेर की पहाड़ियों में स्थित इस प्राचीन मंदिर की कहानी आस्था, चमत्कार और तपस्या से भरी है। भूतेश्वर महादेव न केवल शिव भक्तों के लिए वरदान हैं, बल्कि यह स्थान राजस्थान की आध्यात्मिक विरासत का एक अमूल्य रत्न है.

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