Rajasthan Rain: विजयगढ़ दुर्ग की जिन सुरक्षा चौकियों से रखी जाती थी दुश्मन पर नजर, बारिश ने ढहा दी वो प्राचीन इमारत

Rajasthan Monsoon Update: तूफानी बारिश की चपेट में आकर ध्वस्त हुई यह इमारत करीब 700 वर्ष प्राचीन बताई जाती है. पुरातत्व व ऐतिहासिक महत्व की ऐसी काफी इमारतें बयाना क्षेत्र में बड़ी संख्या में पाई जाती हैं.

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बारिश ने ध्वस्त की प्राचीन इमारत.

Rajasthan News: भरतपुर के बयाना क्षेत्र में गुरुवार रात को हुई तूफानी बारिश ने ऐसी तबाही मचाई कि पहाड़ के ऊपर भीतरबाड़ी बस्ती की ओर बनी ऐतिहासिक महत्व की प्राचीन इमारत भी गिरकर ध्वस्त हो गई. इस इमारत को ऐतिहासिक छतरी के रूप में पहचाना जाता है. पुरातत्व व इतिहास से वास्ता रखने वाले लोगों के अनुसार, यह इमारत कभी शिवालय मंदिर थी, जिसमें शिवलिंग के अवशेष कुछ दशकों पूर्व तक देखे गए हैं. 

सुरक्षा चौकी के रूप में पहचान

कुछ लोगों का यह भी कहना है कि बयाना के पहाड़ पर बने विश्व विख्यात और सबसे प्राचीन व सबसे बड़े पहाड़ी किले जिसे विजयगढ़ दुर्ग के नाम से भी जाना जाता है, उसके परकोटा की दीवारें दूर-दूर तक इस पहाड़ पर फैली हुई है. जिन पर जगह-जगह सुरक्षा चौकियां के रूप में ऐसी इमारतें बनी हुई थी. यह भी उन्हीं का एक हिस्सा थी. इन्हें प्राचीन काल में सुरक्षा चौकियां कहते थे, जिन पर सैनिक तैनात रहकर किले की सुरक्षा और दुश्मनों पर नजर रखने का काम करते थे. 

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700 साल पुरानी थी ये इमारत

तूफानी बारिश की चपेट में आकर ध्वस्त हुई यह इमारत करीब 700 वर्ष प्राचीन बताई जाती है. पुरातत्व व ऐतिहासिक महत्व की ऐसी काफी इमारतें बयाना क्षेत्र में बड़ी संख्या में पाई जाती हैं, जिन पर पुरातत्व विभाग का भी कोई ध्यान नहीं होने से ऐसी इमारतों पर अतिक्रमणकारी अतिक्रमण किए हुए हैं या फिर वह जर्जर अवस्था में पहुंच कर स्वत ही खुर्द बुर्द होती जा रही है. इस किले का निर्माण महाराज विजयपाल ने 1040 ईसवी में कराया था. विजयपाल मथुरा के यादव वंशीय जादौन राजपूत थे, जिन्होंने अपनी राजधानी बयाना को बनाया और बयाना किले का निर्माण कराया था.

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इसी किले में हुआ था पहला जौहर

चित्तौड़गढ़ के मशहूर जौहर से करीब 250 वर्ष पहले इस किले में सामूहिक जौहर हुआ था, जिसे पहला जौहर कहा जाता है. बताया जाता है कि महाराजा विजयपाल की 360 रानियों व दासियों ने उस समय एक ऐतिहासिक घटना व गफलत में पड़ जाने से अपने आप को अग्नि में स्वाहा कर लिया था. विजयपाल रासो नाम की ऐतिहाकसिक पुस्तक में उल्लेख बताया है कि महाराजा विजयपाल का 1045 ईस्वी में अबूबकर शाह कंधारी से घमासान युद्ध हुआ था. इस युद्ध में राजा विजयपाल की जीत से उत्साहित सेना गफलत में काले झंडो को लेकर किले की ओर दौड़ पड़ी थी. इन्हीं काले झंडो को देख रानियों व दासियों को युद्ध हारने और अपने राजा के वीरगति को प्राप्त होने की गफलत हो गई थी, जिसके चलते उन्होंने सामूहिक जौहर का मार्ग अपनाकर अपने आप को अग्नि को समर्पित कर दिया था.

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