SI Paper Leak Case: हाईकोर्ट ने 8 आरोपियों को जमानत देने से किया इनकार, कहा- सुनियोजित रैकेट है... जांच होगी प्रभावित

HC Decision on Bail : "यह माना गया कि कई व्यक्तियों की संलिप्तता को देखते हुए, जिनमें से कई को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है. इस बात की गंभीर आशंका है कि उन्हें जमानत देने से चल रही जांच में काफी बाधा आएगी."

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प्रतीकात्मक तस्वीर

SI Paper Leak Case: राजस्थान उच्च न्यायालय की जोधपुर पीठ ने ग्रेड II शिक्षक भर्ती परीक्षा के पेपर लीक के संबंध में आईपीसी, राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 1992 और राजस्थान सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2022 के तहत आरोपी सभी 8 आरोपियों को जमानत देने से इनकार कर दिया. न्यायमूर्ति फरजंद अली ने कहा कि वर्तमान मामला कोई अलग-थलग मामला नहीं है. बल्कि यह "एक सुनियोजित रैकेट का प्रकटीकरण" है, जिसका उद्देश्य सार्वजनिक परीक्षाओं की पवित्रता को नष्ट करना है.

'आरोपी की समय से पहले रिहाई से खतरा' 

कोर्ट ने विजयराज बनाम राजस्थान राज्य और अन्य मामले में सुनवाई करते हुए कहा कि "प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति ने नए अपराध-सिद्ध साक्ष्यों की खोज में योगदान दिया है, जिससे आगे और गिरफ्तारियां और खुलासे हुए हैं. जांच की इस बदलती प्रकृति को देखते हुए, किसी भी आरोपी की समय से पहले रिहाई न केवल भौतिक साक्ष्यों के संग्रह को ख़तरे में डाल देगी, बल्कि उन मुख्य अपराधियों को भी बढ़ावा दे सकती है जो अभी भी फरार हैं.

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'जमानत देना न्यायालय का विवेकाधिकार'

कोर्ट की ओर से यह कहा गया कि जमानत देना न्यायालय का विवेकाधिकार है जो एक गंभीर न्यायिक कार्य है, जिसे प्रत्येक मामले की परिस्थितियों का सावधानीपूर्वक विश्लेषण करने के बाद ही किया जाना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि ऐसे अपराधों के सामाजिक परिणाम केवल उम्मीदवारों तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि सार्वजनिक संस्थानों में अयोग्य उम्मीदवारों की घुसपैठ से प्रशासनिक दक्षता, नैतिक शासन और सार्वजनिक विश्वास को कमजोर करके शासन के व्यापक ढांचे तक फैल गए हैं.

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ऐसी घटना से उम्मीदवार होते हैं निराश

कोर्ट ने कहा कि "ऐसे अपराधों के परिणाम तत्काल आपराधिक कृत्य से कहीं आगे निकल जाते हैं, जो सामाजिक समानता और न्याय के मूल पर प्रहार करते हैं. प्रश्नपत्रों को लीक करने का घिनौना कृत्य न केवल निष्पक्ष प्रतिस्पर्धा के मूल सिद्धांतों को नष्ट करता है, बल्कि उन वास्तविक उम्मीदवारों को भी अपूरणीय क्षति पहुंचाता है, जो सार्वजनिक सेवा में अपना उचित स्थान सुरक्षित करने के लिए वर्षों तक अथक प्रयास और दृढ़ता से काम करते हैं.

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इस तरह के कुकृत्यों से उत्पन्न मोहभंग संस्थागत तंत्र में जनता के विश्वास को खत्म कर देता है, जिससे उम्मीदवारों के बीच निराशा और निराशा का माहौल पैदा होता है, जो केवल अपनी योग्यता पर भरोसा करते हैं."

'सावधानी और सतर्कता से काम करने की जरूरत'

न्यायालय ने माना कि न्यायपालिका को सार्वजनिक परीक्षाओं में प्रणालीगत धोखाधड़ी से जुड़े मामलों का फैसला करते समय इन सामाजिक विचारों का संज्ञान लेना चाहिए. जांच की बदलती प्रकृति को देखते हुए, जिसमें हर नई गिरफ्तारी के साथ नए अपराध साबित करने वाले सबूत सामने आए हैं, समय से पहले रिहाई से जांच खतरे में पड़ जाएगी.

न्यायालय की स्पष्ट राय है कि इस चरण में याचिकाकर्ताओं की रिहाई न्याय के हितों के विपरीत होगी. जांच एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, अभी भी पर्याप्त सबूत सामने आने बाकी हैं और मुख्य आरोपी अभी भी गिरफ्तारी से बच रहा है.

याचिकाकर्ताओं की रिहाई से जांच प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न होने की अत्यधिक संभावना है, साथ ही इस तरह के अपराध के सामाजिक दुष्परिणामों के कारण सावधानी और सतर्कता से काम करने की आवश्यकता है.”

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