छोटी पार्टियां बिगाड़ेंगी बड़ी पार्टियों का खेल, जानें इस चुनाव में क्या होगी उनकी भूमिका?

पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश के छोटे दलों को करीब 12 फीसदी वोट मिले थे. इसलिए ये छोटे दल दोनों प्रमुख पार्टी कांग्रेस और भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं. ये पार्टियां जिसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी, वह 2023 की रेस में उतना ही पिछड़ता चला जाएगा. पिछले चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में सिर्फ आधी फीसदी वोटों का मामूली अंतर रहा था.

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प्रतीकात्मक तस्वीर.

चुनाव की तारीखों की घोषणा के बाद राजस्थान में आचार संहिता लागू होने के साथ ही सभी दल चुनावी मोड में आ गए हैं. भाजपा ने उम्मीदवारों की पहली सूची जारी कर दी थी. वहीं, कांग्रेस की सूची का अब भी इंतजार है. इस बीच छोटे दलों ने उम्मीदवारों के नामों का ऐलान शुरू कर दिया है. बता दें, राजस्थान में 25 नवंबर को चुनाव होना है जबकि 3 दिसंबर को मतगणना कराया जाएगा. 

बीते दिनों बसपा, आजाद समाज पार्टी, भारतीय ट्राइबल पार्टी, एआईएमआईएम ने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है.  हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, आम आदमी पार्टी, बीटीपी से अलग होकर बनी बीएपी, अभय चौटाला की जननायक जनता पार्टी, शिंदे गुट की शिवसेना समेत कई दलों ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है. 

कांग्रेस और भाजपा की जीत-हार आधी फीसदी वोट का रहा अंतर

पिछले विधानसभा चुनाव के आंकड़ों से पता चलता है कि कांग्रेस को 39.30 फीसदी और भाजपा को 38.77 फीसदी वोट मिले थे. दोनों दलों में सिर्फ आधी फीसदी वोटों का मामूली अंतर रहा था, लेकिन दोनों दलों में इस अंतर की वजह से 27 सीटों का फासला था. 

अलग-अलग इलाकों में छोटे-छोटे दल बिगाड़ेंगे समीकरण 

वहीं, प्रदेश के छोटे दलों को करीब 12 फीसदी वोट मिले थे. इसलिए ये छोटे दल दोनों प्रमुख पार्टी कांग्रेस और भाजपा के लिए महत्वपूर्ण हो गए हैं. ये पार्टियां जिसे ज्यादा नुकसान पहुंचाएगी, वह 2023 की रेस में उतना ही पिछड़ता चला जायेगा. हालांकि 2018 के चुनाव में 86 दलों ने हिस्सा लिया था. इस बार भी यह आंकड़ा इसी आसपास रह सकता है, लेकिन इनमें कुछ ऐसे दल हैं, जो समीकरण बदल सकते हैं. 

बसपा ने पिछले चुनाव में जीती 6 सीट, मिले थे 4 फीसदी वोट 

बहुजन समाज पार्टी का राजस्थान की राजनीति में मजबूत दखल रहा है. पार्टी ने पिछले विधानसभा चुनाव में 6 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसे 4 फीसदी वोट मिले थे. 22 सीटों पर पार्टी ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की थी. बसपा के विधायकों की बदौलत पायलट विवाद के दौरान गहलोत सरकार बची थी. बाद में सभी विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए थे और उन्हें इसका ईनाम भी मिला था.

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बसपा का अलवर, भरतपुर के इलाके में मजबूत दबदबा है. इन इलाकों में जाटव वोटर बड़ी संख्या में हैं. यही वजह है कि पार्टी इन इलाकों में अक्सर बेहतर प्रदर्शन करती है. इस बार पार्टी ने अब तक 12 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं. उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार के लिए पार्टी प्रमुख मायावती 8 सभाएं करेंगी.

RLP ने पिछले चुनाव में जीती 3 सीट, मिले थे 2.40 फीसदी वोट 

हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी ने पिछले विधानसभा चुनाव में 58 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. इनमें सिर्फ 3 जीते लेकिन पार्टी को 2.40% वोट मिले थे. पार्टी ने ज्यादातर जाट बाहुल्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे और इस बार भी पार्टी की नजर जाट वोट बैंक पर है. पार्टी ने जाट वोट बैंक को साधने के लिए ही 3 कृषि कानून के मामले पर एनडीए से अलग हुई थी. शेखावाटी इलाके में आरएलपी का प्रभाव लगातार बढ़ा है.

राजनीतिक हलकों में हनुमान बेनीवाल के अशोक गहलोत से नजदीकियों के चर्चे सुने जाते रहे हैं, लेकिन बीते दिनों हनुमान बेनीवाल के वसुंधरा राजे से मुलाकात की खबरें भी सामने आईं हैं. देखना है कि पार्टी का प्रदर्शन कैसा रहता है और आगे बेनीवाल क्या रुख अपनाते हैं.

प्रदेश के 25 आरक्षित सीटों पर है BAP और BTP की नजर

आदिवासी अंचल में प्रभावी भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) बीटीपी से अलग होकर नई पार्टी का गठन किया है. नई पार्टी का गठन बीटीपी के दोनों विधायक, राजकुमार रोत और रामकुमार ने किया है. राजस्थान में 25 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है. ऐसे में पार्टी की नजर इन्हीं सीटों पर है. डूंगरपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़ और उदयपुर में पार्टी दोनों प्रमुख दलों को कड़ी टक्कर देगी.

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बीटीपी ने 2018 विधानसभा चुनाव में 11 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 2 पर जीत दर्ज की थी, लेकिन जीतकर आए दोनों बीटीपी विधायकों ने अलग पार्टी BAP बना ली. देखना होगा कि क्या पार्टी 2018 का प्रदर्शन दोहरा पाती है या नहीं.

वामपंथी पार्टियां सीपीआई और सीपीएम भी दिखाएंगी दमखम

इस चुनाव में वामपंथी पार्टियां सीपीआई और सीपीएम भी दमखम दिखाने की तैयारी कर रही हैं. पिछले चुनाव में सीपीएम ने 28 उम्मीदवार उतारे थे और सिर्फ दो सीटें जीतने में कामयाब हो पाई थी. सीपीआई के सभी 16 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. वामपंथी पार्टियों का शेखावाटी इलाके में दबदबा था, लेकिन समय के साथ वह कम होता गया. 

मुस्लिम बहुल सीटों पर ओवैसी की AIMIM आजमाएगी किस्मत

हैदराबाद सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी पहली बार राजस्थान के चुनाव में हिस्सा ले रही है. पार्टी उन 40 विधानसभा सीटों पर मजबूती से चुनाव लड़ना चाहती है, जहां मुस्लिम मतदाता बड़ी संख्या में हैं. ऐसा होता है तो कांग्रेस को इसका सीधा नुकसान होगा. प्रदेश में अभी 9 मुस्लिम विधायक हैं और सभी कांग्रेस के हैं. ओवैसी के चुनाव में आने से कांग्रेस के परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगनी तय है.

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प्रदेश में इस बार भाजपा और कांग्रेस दोनों दल एक-एक सीट पर सारे समीकरण साध रहे हैं. ऐसे में ये छोटे दल क्या बड़ा कारनामा करते हैं, सबकी नजरें इसी पर टिकी हैं.

प्रदेश में तेजी से बढ़ी है आम आदमी पार्टी की सक्रियता

दिल्ली और पंजाब में सरकार में काबिज आम आदमी पार्टी भी राजस्थान में भी सक्रिय है. पिछले चुनाव में आप ने 142 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई थी. हालांकि अब पंजाब में सरकार बनाने के बाद पार्टी के हौसले बुलंद हैं. बीते दिनों बिग बॉस फेम नागौरी आप में शामिल हुई. वहीं, कमेडियन श्याम रंगीला भी पार्टी में पहले से शामिल हैं. पार्टी की कोशिश है कि पंजाब और हरियाणा से सटे इलाकों में मजबूती से चुनाव लड़कर सीटें जीती जाए.

मैदान में चौटाला जेजेपी और शिंदे गुट की शिवसेना भी है

अजय चौटाला की पार्टी जेजेपी और शिंदे गुट शिवेना भी मैदान में हैं. चर्चा थी कि दोनों दल भाजपा के साथ गठबंधन करेंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. जेजेपी उन 25-30 जाट बाहुल्य सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी, जहां भाजपा कमजोर है.

निर्दलीय भी चुनाव में बढ़ाएंगे कांग्रेस-भाजपी की धुकधुकी

उपरोक्त छोटे दलों के अलावा निर्दलीय उम्मीदवार भी राजस्थान चुनाव को रोचक बनाते हैं. पिछले चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवारों को 9.47 फीसदी मत मिले थे और उन्होंने 13 सीटें जीती थी.  

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