Rajasthan News: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) राजस्थान दौरे पर आई हुई हैं. शुक्रवार को उन्होंने माउंट आबू (Mount Abu) में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय (Brahma Kumaris) में 'स्वच्छ और स्वस्थ समाज के लिए आध्यात्मिकता' विषय पर आयोजित एक वैश्विक शिखर सम्मेलन में भाग लिया. इस अवसर पर राष्ट्रपति ने कहा कि जब हम अपनी आंतरिक पवित्रता को पहचानेंगे, तभी हम एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना में योगदान दे पाएंगे.
'आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना नहीं'
आध्यात्मिक्ता का मतलब समझाते हुए राष्ट्रपति ने कहा, 'आध्यात्मिकता का मतलब धार्मिक होना या सांसारिक कार्यों का त्याग कर देना नहीं है. आध्यात्मिकता का अर्थ है, अपने भीतर की शक्ति को पहचान कर अपने आचरण और विचारों में शुद्धता लाना. आध्यात्मिक मूल्यों का तिरस्कार करके केवल भौतिक प्रगति का मार्ग अपनाना अंततः विनाशकारी ही सिद्ध होता है. स्वच्छ मानसिकता के आधार पर ही समग्र स्वास्थ्य संभव होता है.'
ब्रह्माकुमारी जैसे संस्थानों से क्या अपेक्षा?
प्रेसिडेंट ने कहा, 'ब्रह्माकुमारी जैसे संस्थानों से यह अपेक्षा की जाती है कि आध्यात्मिकता के बल पर लोगों को स्वच्छ और स्वस्थ जीवन जीने के लिए जागरूक करते रहेंगे. आध्यात्मिकता हमारे निजी जीवन को ही नहीं, बल्कि समाज और धरती से जुड़े अनेक मुद्दों जैसे सतत विकास, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक न्याय को भी शक्ति प्रदान करती है.'
'मन की गहराई में स्थित होती है शांति'
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा, 'आज विश्व के अनेक हिस्सों में अशांति का वातावरण व्याप्त है. मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है. ऐसे समय में शांति और एकता की महत्ता और अधिक बढ़ गई है. शांति केवल बाहर ही नहीं, बल्कि हमारे मन की गहराई में स्थित होती है. जब हम शांत होते हैं, तभी हम दूसरों के प्रति सहानुभूति और प्रेम का भाव रख सकते हैं. आज जब हम ग्लोबल वार्मिंग और पर्यावरण प्रदूषण के विपरीत प्रभावों से जूझ रहे हैं, तब इन चुनौतियों का सामना करने के लिए सभी संभव प्रयास करने चाहिए. मनुष्य को यह समझना चाहिए कि वह इस धरती का स्वामी नहीं है, बल्कि पृथ्वी के संरक्षण के लिए जिम्मेदार है.'
अध्यात्म से मिलता है एक अलग नजरियाराष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने आगे कहा, 'अध्यात्म से जुड़ाव हमें, समाज और विश्व को देखने का एक अलग सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है. यह दृष्टिकोण हममें सभी प्राणियों के प्रति दया और प्रकृति के प्रति संवेदनशीलता का भाव उत्पन्न करता है. आध्यात्मिकता न केवल व्यक्तिगत विकास का साधन है, बल्कि यह समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का मार्ग भी है. जब हम अपने भीतर की स्वच्छता को पहचान पाने में सक्षम होंगे, तभी हम एक स्वस्थ और शांतिपूर्ण समाज की स्थापना में अपना योगदान दे सकेंगे.'
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