Rajasthan News: देश की राजधानी दिल्ली में स्थित सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजस्थान के एक जिले में चल रहे 'प्रीप्लांटरी मॉडल' की सराहना की. इस मॉडल के तहत जिले में जन्म लेने वाली हर लड़की के लिए 111 पौधे लगाए जाते हैं. जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने इस मॉडल का जिक्र राजस्थान में 'पवित्र पेड़ों' के संरक्षण से संबंधित अपना फैसला सुनाते हुए किया.
गांव के सरपंच ने की थी पहल
जस्टिस मेहता ने कहा, 'हमें राजस्थान के एक जिले में तैयार किए गए प्रीप्लांटरी मॉडल से प्रेरणा लेनी चाहिए. अत्यधिक खनन के कारण, गांव में पर्यावरण को बहुत नुकसान हुआ है. उस जगह के सरपंच के दूरगामी दृष्टिकोण के कारण, हर लड़की के जन्म पर 111 पेड़ लगाए जाते हैं. यह बहुत सराहनीय है और अब तक वहां लगभग 14 लाख पेड़ लगाए जा चुके हैं. यह लैंगिक न्याय को भी दर्शाता है और कन्या भ्रूण हत्या की घटनाओं पर भी रोक लगाता है. यह एक शानदार पहल है, क्योंकि अब महिलाओं की आबादी अन्य से अधिक है.'
5 सदस्य कमेटी बनाने का आदेश
जस्टिस मेहता ने आगे कहा, 'हम राजस्थान में ओरन के संरक्षण के मुद्दे पर विचार कर रहे हैं. राज्य में पवित्र वनों को संरक्षित करने की जरूरत है. इसीलिए वन विभाग को सैटेलाइट बेस्ड मैपिंग करने और उन्हें वन के रूप में क्लासीफाइड करने का निर्देश दिया गया है. राजस्थान को इस निर्णय में हमारे निर्देशों का पालन करना चाहिए. पवित्र वनों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत संरक्षण दिया जाना चाहिए और उन्हें सामुदायिक रिजर्व घोषित किया जाना चाहिए. हमने राज्य से इस मुद्दे पर विचार करने के लिए एक पांच सदस्यीय समिति बनाने के लिए कहा है, जिसकी अध्यक्षता हाईकोर्ट के जज करेंगे. अदालत ने फैसले में अन्य निर्देश भी पारित किए हैं.'
राजस्थान सरकार की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा और वकील सोनाली गौर पेश हुए. अदालत ने एएजी शिव मंगल शर्मा की दलीलों को दर्ज किया, जिनमें राज्य सरकार के प्रयासों का बारे में बताया गया, जिसमें पवित्र उपवनों की सीमांकन प्रक्रिया और उन्हें संरक्षित करने के लिए कानूनी कदम उठाने की पहल शामिल थी. एएजी ने कहा कि एक्सपर्ट कमेटी पहले ही नवंबर 2018 में गठित की जा चुकी है. जिला-वार प्रारंभिक अधिसूचनाएं ओरन और देव वनों की पहचान के लिए सार्वजनिक परामर्श और आपत्तियों के निपटारे के बाद जारी की गई थीं. राजस्थान वन नीति 2023, वर्ष 2010 की नीति से कम स्पेसिफिक है, फिर भी इसमें ओरनों और अन्य पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों के संरक्षण के प्रावधान शामिल हैं.
इस मामले की अगली सुनवाई 10 जनवरी 2025 को निर्धारित की गई है, जब अदालत अनुपालन रिपोर्ट की समीक्षा करेगी. यह एतिहासिक निर्णय भारत में वन संरक्षण, सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण और पर्यावरणीय शासन के क्षेत्र में दूरगामी प्रभाव डालने की उम्मीद है.
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