Rajasthan News: राजस्थान के बारां जिले में यूरिया खाद संकट ने किसानों को उस चरम पर धकेल दिया है, जहां अपनी फसल बचाने के लिए उन्हें 12 घंटे से अधिक समय तक कंपकंपाती ठंड में खुले आसमान के नीचे रात गुजारनी पड़ती है. बारां जिले के क्रय-विक्रय सहकारी समितियों (KVSS) के बाहर लगी किसानों की यह विशाल भीड़ न केवल प्रशासनिक तंत्र की विफलता को दर्शाती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि देश के अन्नदाताओं को अपने हक के लिए किस कदर जूझना पड़ रहा है. देर रात 11 बजे से शुरू हुआ यह संघर्ष अगली सुबह या दोपहर तक चलता है, जिसके बाद किसानों को आखिरकार यूरिया खाद मिल पाता है.
सर्दी की रात और 'यूरिया की चाहत'
बारां जिले के अटरू, छबड़ा, और छीपाबड़ौद जैसे प्रमुख कृषि क्षेत्रों में किसान अब सुबह होने का इंतजार नहीं कर रहे हैं. अपनी रबी की फसलों (जैसे गेहूं और सरसों) को समय पर यूरिया की दूसरी खुराक (टॉप ड्रेसिंग) देने की अत्यधिक आवश्यकता के कारण, वे पिछली रात 11 बजे से ही वितरण स्थलों पर डेरा डाल रहे हैं. भीड़ का यह आलम था कि लाइनें बेतरतीब थीं और किसानों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि देखने वाले का सिर चकरा जाए. किसान अपनी बारी आने की उम्मीद में सर्दी में ठिठुरते रहे. इस लंबी और दर्दनाक कतार में महिलाएं, बुजुर्ग और पुरुष किसान शामिल थे, जिन्होंने 12 घंटे से अधिक समय तक अपनी जगह नहीं छोड़ी.
वितरण की थकाऊ प्रक्रिया, डीलरों की मनमानी
दरअसल, क्रय-विक्रय सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को खाद वितरित करने की प्रक्रिया काफी जटिल और थकाऊ है. किसान खाद लेने के लिए सहकारी समिति पहुंचते हैं, जहां उन्हें पहले लंबी लाइन में लगना पड़ता है. इसके बाद, वे अपनी टोकन रसीद कटवाने का इंतजार करते हैं. काउंटर पर बैठा कर्मचारी सीमित मात्रा में—आमतौर पर 2 से 5 बैगों की ही—रसीद काटता है, जिस पर उन्हें खाद प्राप्त करने का स्थान (सहकारी गोदाम या खाद विक्रेता डीलर) अंकित कर दिया जाता है. इस चरण के बाद, किसानों का आरोप है कि उन्हें एक और मुश्किल का सामना करना पड़ता है. खाद विक्रेता डीलरों के पास रसीद लेकर जाने पर, वे अक्सर अधिक राशि वसूलते हैं और अटैचमेंट (अन्य उत्पाद खरीदने की बाध्यता) जोड़ देते हैं. इस मनमानी के कारण, किसानों पर अनावश्यक आर्थिक भार पड़ता है, जो उनकी आय को सीधे प्रभावित करता है.
भीड़ बढ़ने पर खुले मैदानों में टोकन वितरण
खाद की किल्लत अब इतनी अधिक बढ़ गई है कि सहकारी समितियों के परिसर भी किसानों की विशाल भीड़ को संभालने के लिए छोटे पड़ने लगे हैं. इस अव्यवस्था से निपटने के लिए, अब समिति के कर्मचारियों द्वारा एसडीएम कार्यालय, पुलिस थाने या फिर खुले मैदानों में कतारें लगवाकर टोकन काटे जा रहे हैं. इन स्थानों पर, किसान, जिनमें महिला और पुरुष दोनों शामिल हैं, भरी सर्दी के मौसम में देर रात से ही पहुंच जाते हैं. दो से पाँच यूरिया खाद के कट्टों की चाहत में, वे रात से लेकर दोपहर तक घंटों तक कतारों में खड़े होकर अपने टोकन कटवाने का इंतजार करते हैं. हालांकि, इतनी लंबी मशक्कत के बाद उन्हें दो-तीन खाद के बैग मिल तो जाते हैं, लेकिन कई बार घंटों इंतजार के बाद भी खाद खत्म हो जाती है, और किसानों को बिना टोकन के ही निराश होकर वापस लौटना पड़ता है.
प्रशासन के दावे बनाम जमीनी हकीकत
इस घोर संकट के बावजूद, बारां जिला प्रशासन लगातार 'पर्याप्त स्टॉक' होने का दावा कर रहा है. प्रशासन के अनुसार, पिछले सप्ताह ही 2800 मीट्रिक टन खाद की एक रैक बारां पहुंची थी और दूसरी रैक अंता में खड़ी है. अगर प्रशासन का यह दावा सही है कि जिले में पर्याप्त मात्रा में खाद है, तो फिर यह गंभीर सवाल खड़ा होता है कि किसानों को रातभर खुले में ठिठुरकर इतनी शारीरिक और मानसिक परेशानी क्यों उठानी पड़ रही है?
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