Rajasthan Politics: राजस्थान की सियासत के 'नए मुसाफिर' जिन्होंने मरुप्रदेश की शांत राजनीति में शोर बरपा दिया

पिछले दिनों सोशल मीडिया पर प्रदेश की राजनीति छाई रही. इसकी एक बड़ी वजह प्रदेश की राजनीति में नवागंतुक सियासी चेहरों के मरुप्रदेश की राजनीति में उभार था. इनमें से कुछ ने प्रदेश की श्वेत-श्याम राजनीति में आधुनिक तरीके से प्रचार करके उसे रंगीन बना दिया. तो कुछ ने सालों से प्रदेश की राजनीति में भाजपा-कांग्रेस की सत्ता को चुनौती दी.

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अनिल चोपड़ा, राजकुमार और रविंद्र भाटी

Rajasthan Lok Sabha Elections 2024: राजस्थान में लोकसभा चुनाव खत्म हो गए हैं. दो चरणों में हुए चुनाव के पहले चरण का मतदान 19 और दुसरे चरण का मतदान 26 मई को हुआ. राजस्थान में इस बार हुए लोकसभा चुनाव की चर्चा खूब हुई. उसकी कई वजहें थीं. राजस्थान की राजनीति आम तौर पर शांत रहती है. उसकी राष्ट्रीय स्तर पर इतनी चर्चा नहीं होती. उसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि, यहां की सियासत राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों की राजनीति के साथ चलती थी. लेकिन इस बार इसमें एक अलग रंग देखने को मिला. राजस्थान की सियासी चर्चा राष्ट्रीय मीडिया में छाई रही. सोशल मीडिया पर प्रदेश की राजनीति के घटनाक्रम खूब दिखाई दिए. 

इसकी एक बड़ी वजह प्रदेश की राजनीति में नवागंतुक सियासी चेहरों के मरुप्रदेश की राजनीति में उभार था. इनमें से कुछ ने प्रदेश की श्वेत-श्याम राजनीति में आधुनिक तरीके से प्रचार करके उसे रंगीन बना दिया. तो कुछ ने सालों से प्रदेश की राजनीति में भाजपा-कांग्रेस की सत्ता को चुनौती दी. कुछ भी हो, लेकिन इन नए चेहरों का प्रदेश की राजनीति में खूब स्वागत हुआ. हम आज उन्हीं चेहरों के बारे बारे में बात करेंगे.

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अनिल चोपड़ा 

अनिल चोपड़ा को कांग्रेस ने जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है. चोपड़ा कांग्रेस की युवा पंक्ति के सबसे चर्चित चेहरों में एक हैं. यहां से भाजपा ने वरिष्ठ नेता राव राजेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. चोपड़ा की उम्मीदवारी की घोषणा से पहले इस सीट पर कोई मुकाबला नज़र नहीं आ रहा था. लेकिन उनकी उम्मीदवारी के बाद यहां लड़ाई टक्कर की हो गई. सियासी पंडित जिन सीटों पर कांग्रेस को मज़बूत मान रहे हैं, उनमें से यह सीट भी शामिल है.

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अनिल चोपड़ा राजस्थान विश्विद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं और कई सालों से इस सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. उन्हें सचिन पायलट का प्रशंसक माना जाता है और यह भी कहा गया कि उन्हें टिकट दिलवाने में पायलट की ही भूमिका है. उसके बाद पायलट ने उनका जमकर प्रचार भी किया. अनिल चोपड़ा के समर्थन में एक सभा संबोधित करते हुए पायलट ने यहां तक कह दिया कि, 'मुझे कांग्रस ने छत्तीसगढ़ का प्रभारी बना दिया, नहीं तो मेरा मन था कि मैं यहां से चुनाव लड़ लेता'   

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रविंद्र सिंह भाटी 

इस चुनाव में रविंद्र सिंह भाटी की भी खूब चर्चा हुई. उन्होंने देश के मीडिया का ध्यान अपनी ओर खूब खींचा. भाटी बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट से निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में थे. जहां भाटी ने दोनों राष्ट्रीय दल कांग्रेस और भाजपा की नाक में दम कर दिया. भाटी भी जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के छात्र संघ अध्यक्ष रह चुके हैं. विधानसभा चुनाव से पहले वो भाजपा में शामिल हो गए थे. उन्हें उम्मीद थी कि भाजपा उन्हें विधानसभा चुनाव में टिकट देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और बाद में उन्होंने बाड़मेर की शिव विधानसभा से निर्दलीय मैदान में उतर कर चनाव जीता.

भाटी के चुनाव प्रचार के तरीकों ने हर किसी को प्रभावित किया. सोशल मीडिया से लेकर मुख्यधारा की मीडिया में राजस्थान में पहले चरण के चुनाव में बाड़मेर लोकसभा का त्रिकोणीय चुनाव और भाटी का नाम छाया रहा. 

राजकुमार रोत 

दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी अंचल से उभरा यह नाम उन दिनों प्रदेश के राजनीति में खूब चर्चा में रहा. अभी 6 महीने पहले हुए विधानसभा चुनाव में राजकुमार रौत ने डूंगरपुर की चौरासी विधानसभा सीट से करीब 70 हजार वोटों से चुनाव जीता था. रोत भारत आदिवासी पार्टी से विधायक हैं और BAP से ही बांसवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन राजकुमार रोत का कारनामा सिर्फ इतने मार्जिन से चुनाव जीतना नहीं है, बल्कि उन्होंने 'भारत आदिवासी पार्टी' बना कर तीन विधायक भी बनवा दिए. अगर दलों के नज़रिये से देखें तो कांग्रेस और भाजपा के बाद राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी भारत आदिवासी पार्टी ही है. 

राजकुमार रोत बांसवाड़ा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. उनके सामने कांग्रेस से भाजपा में गए महेंद्रजीत सिंह मालवीय हैं. इस सीट पर भी जोरदार टक्कर दिखाई दे रही है. 

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