सुप्रीम कोर्ट से राजस्थान सरकार को मिली बड़ी राहत, 23000 खनन पट्टों के बंद होने का खतरा फिलहाल टला

राजस्थान सरकार की दलील थी कि खाने बंद होने से करीब 15 लाख लोगों का रोज़गार छिन जाएगा. जिससे प्रदेश में बड़ा संकट आ सकता है. सरकार ने पर्यावरण से जुड़े सभी मापदंडों को पूरा करने के लिए अदालत से एक साल का समय मांगा था. हालांकि अदालत ने 13 नवंबर तक NGT के आदेश पर स्टे लगा दिया था.

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Rajasthan News: नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेश पर अस्थायी रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान सरकार को बड़ी राहत दी है. अदालत ने राजस्थान में खनन संचालन की वैधता को 31 मार्च 2025 तक बढ़ा दिया है. राजस्थान सरकार ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के एक आदेश के बाद सबसे बड़ी अदालत का रुख किया था. दरअसल NGT ने प्रदेश की 23000 खानों के पट्टों को बंद करने आदेश दिया था.

अधिकरण ने पर्यावरण के नियमों की अवहेलना करने के लिए इन खानों के पट्टे रद्द कर दिए थे. जिसके बाद राजस्थान सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से गुजारिश की थी इस मामले पर जल्द सुनवाई की जाए. 

खनन पट्टा धारकों को तीन हफ्ते में लेनी होगी SEIAA से मंजूरी 

उच्चतम न्यायालय ने जिला स्तरीय पर्यावरणीय प्रभाव आकलन प्राधिकरणों (DEIAA) से मंजूरी के साथ संचालित खनन पट्टा धारकों को तीन हफ्तों के भीतर राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) के लिए आवेदन करने का निर्देश दिया है. राजस्थान सरकार और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEF) की ओर से प्रस्तुत तर्कों को सुनने के बाद मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने यह फैसला सुनाया है.  

सरकार की दलील- 15 लाख लोगों का रोज़गार छिन जायेगा 

राजस्थान सरकार की दलील थी कि खाने बंद होने से करीब 15 लाख लोगों का रोज़गार छिन जाएगा. जिससे प्रदेश में बड़ा संकट आ सकता है. सरकार ने पर्यावरण से जुड़े सभी मापदंडों को पूरा करने के लिए अदालत से एक साल का समय मांगा था. हालांकि अदालत ने 13 नवंबर तक NGT के आदेश पर स्टे लगा दिया था. अब आज नए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना इस मामले की सुनवाई करेंगे. 

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अपील में कहा गया है कि इन खनन लाइसेंसों में से आधे से अधिक गरीब और कमजोर वर्गों, भूमिहीन मजदूरों, गरीबी रेखा से नीचे आने वाले परिवारों, शहीदों के परिवारों और अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों को दिए गए हैं.

संतुलित दृष्टिकोण के लिए याचिका

सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि खदानों को बंद करने के महत्वपूर्ण सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर विचार किया जाए और एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाए जो पर्यावरणीय अनुपालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समय प्रदान करते हुए आजीविका को खतरे में डाले बिना कार्यान्वित हो सके.

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