Bundi Stepwell Crisis News: राजस्थान के बूंदी शहर के प्राचीन धरोहर प्रशासन की बेरुखी और अनदेखी के चलते खत्म होते जा रहे हैं. सिटी ऑफ स्टेपवेल के नाम से मशहूर बूंदी शहर की बावड़ियां कचरा डिपो बनती जा रही है. नगर परिषद या पर्यटन विभाग इन बावड़ी की सफाई तक नहीं करवा रहा है. जिन बावड़ियों में कभी पीने का पानी होता था. आज वह प्राचीन जल स्रोत गंदगी और कचरे से भरे पड़े हैं. बूंदी शहर में 52 ऐतिहासिक बावड़ियां है जबकि पूरे जिले में 700 से अधिक बावड़ियां मौजूद है यानी हर गांव में दो से तीन बावड़ी आपको देखने को मिलेगी. इस जिले में हर वर्ष 15 हजार विदेशी और 50 हजार से अधिक देशी पर्यटक घूंमने के लिए आते है.
मस्जिद में जाने वाले नमाजी दुर्गन्ध से परेशान
नरु बावड़ी दो दशक पूर्व आधे शहर का पनघट हुआ करती थी, जिसे लोगों ने कूड़ादान बना दिया. इसके अलावा क्षेत्र की शुक्ला बावड़ी भी लोगों के लिए पेयजल का प्रमुख स्त्रोत थी. रियासत काल में बूंदी आने वाले लोग इसी बावड़ी से पानी पिया करते थे. अब मीरा गेट इलाके का सारा कचरा इसी बावड़ी में डाला जाता है. इस बावड़ी के ठीक नजदीक ही एक मस्जिद है. यहां पर रोजाना आने वाले नमाजी भी बावड़ी की बदहाली और दुर्गन्ध से बहुत परेशान हैं. लोगों ने कई बार इसकी शिकायत की लेकिन इसकी कोई भी कार्रवाई नहीं हुई.
कभी इस बावड़ी के जल से होता था जलाभिषेक
शहर के दूसरे छोर पर स्थित है भवल्दी बावड़ी के हालात भी बहुत बदतर हो चुके हैं. यहां सिर्फ कचरा और गंदगी ही नजर आती है. पूरी बावड़ी कचरे से लबालब भरी हुई है. इस बावड़ी के नजदीक ही प्रचीन शिवलिंग भी स्थापित है. वर्षों पहले इस बावड़ी के पानी से नजदीक स्थित प्रचीन शिवलिंग का जलाभिषेक किया जाता था. लेकिन नगर परिषद ने अपनी सुविधा के लिए इसे कचरा पात्र बना दिया और शहर का कचरा यहां डाला जाने लगा और देखते देखते यह बावड़ी अपना अस्तित्व खोकर कचरा पात्र में तब्दील हो गई.
पिछली सरकार ने दी थी वित्तीय स्वीकृति
बूंदी पर्यटन अधिकारी प्रेम शंकर सैनी ने जल्द बावड़ियों के हालात सुधारने की बात कही. उन्होंने राज्य सरकार को बूंदी की बावड़ियों के हालत सुधारने को लेकर प्रस्ताव बनाकर भेजे हैं. उम्मीद की जा सकती है की जल्द बावड़ियों के लिए वित्तीय स्वीकृति जारी होगी. हालांकि गहलोत सरकार ने बूंदी की बावड़ी के लिए वित्तीय स्वीकृति जारी की थी. जिसका का काम अभी तक भी शुरू नहीं हुआ है.
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