Jhalawar News: दिन बदले, जमाना बदला, इंसान भी बदल गया, लेकिन नहीं बदली तो वो परंपराएं, जो हमारी संस्कृति की पहचान हैं. दीपावली के शुभ अवसर पर आज भी कई व्यापारी नए खाते की शुरुआत कलम और दवात से करते हैं. जी हां, जब चारों ओर कंप्यूटर और डिजिटल अकाउंटिंग का दौर है, तब भी लकड़ी की कलम और स्यही की दवात का जमाना झालावाड़ में आज भी कायम है! यहां पर दीपावली की पूजा के बाद जब व्यापारी बही-खातों में पहला लेख लिखते हैं, तो वो कलम-दवात की परंपरा को सलाम करते हैं.
ऋषि-मुनियों के सारे ग्रंथ कलम और दवात से लिखे
बुज़ुर्ग बताते हैं की ऋषि-मुनियों के सारे ग्रंथ कलम और दवात से लिखे गए, जो आज भी अमिट हैं. कभी बच्चों को स्कूलों में हैंडराइटिंग सुधारने के लिए कलम-दवात से लिखना सिखाया जाता था. पर अब जमाना कंप्यूटर का है, जहाँ सब कुछ चंद मिनटों में हो जाता है. लेकिन यहां के लोग अब भी पुरानी परंपरा निभा रहे हैं, और यही उन्हें बाकी से अलग बनाता है.
कलम को स्याही की दावत में में डुबोकर “श्री गणेशाय नमः” लिखते हैं
दुकानदार शुभ मुहूर्त पर नई बही-खाते की शुरुआत करते हैं, दीपावली पूजा के साथ लकड़ी की कलम को स्याही की दावत में में डुबोकर “श्री गणेशाय नमः” लिखते हैं. उनके लिए ये सिर्फ हिसाब-किताब नहीं, बल्कि सौभाग्य की शुरुआत होती है. यहां के व्यापारी बताते हैं कि तकनीक चाहे कितनी भी आगे बढ़ जाए, लेकिन संस्कार और परंपरा की स्याही कभी नहीं सूखती. यही तो हमारी पहचान है, जहां दिल से जुड़ी परंपरा ही असली पूंजी होती है.
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