Valentine Special: बाघा और भारमली का अमर प्रेम, एक दासी के प्रेम में फंसे दो रजवाड़ों की कहानी

Love Story of Two Rajwada and maid : करीब 12 साल बाद बाघा और दासी भारमली की प्रेम कहानी का तब दुखद अंत हो गया जब अचानक बाघा की मौत हो गई. बाघा की मौत के बाद भारमली भी बाघा की चिता की अग्नि में समाकर सती हो गई, जिससे दोनों की प्रेम कहानी इतिहास में अमर हो गई, यह कहानी बाड़मेर जैसलमेर सहित राजस्थान के हर बुजुर्ग की जुबान पर है

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जैसलमेर की बाघा और भारमली की अमर प्रेम कहानी

A Love Story of Jaisalmer: राजस्थान की माटी के कण-कण में वीरता प्रेम और त्याग की अमर गाथाएं समाई हुई है  हीर-रांझा, लैला-मजनू की प्रेम कहानी तो सुनी होगी, लेकिन जैसलमेर की एक प्रेम कथा सबसे अनूठी है. प्रेम के त्योहार के रूप मनाए जाने वाले वेलेंटाइन डे पर मारवाड़ की ये कहानी किसी को भी भावुक कर देगी.

सदियों से बाड़मेर जैसलमेर में हर जुबान पर गूंज रही यह कहानी कोटड़ा (वर्तमान में बाड़मेर) के शिव के पास स्थित जोधपुर रियासत के कोटड़ा परगने के जागीरदार "बाघा कोटडिया" जैसलमेर रजवाड़े की राजकुमारी उमा दे भटियानी की है. इतिहास में रूठी रानी के नाम से मशहूर उमा दे भटियानी मारवाड़ के शक्तिशाली शासक मालदेव की रानी थी. 

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यह प्रेम कहानी राजकुमारी उमा दे भटियानी की नहीं, बल्कि राजकुमारी को उनके विवाह में दहेज में मिली दासी भारमली की प्रेम कहानी हैं, जो राजकुमारी के पति और मारवाड़ के तत्कालीन राजा मालदेव के प्रेम में पड़ गई थी. राजकुमारी ने जब दासी भारमली को पति के साथ अंतरंग हालत में देखा नाराज हो गई और फिर ताउम्र पति से रुठी रही.

भारत के तत्कालीन सबसे शक्तिशाली राजा मालदेव 

शेरशाह सूरी और मुगल बादशाह अकबर के पिता हुमायूं के समकालीन समय 1532 में मारवाड़ के बेहद ही शक्तिशाली शासक हुए राजा मालदेव से युद्ध के बाद शेरशाह सूरी ने कहा था " मैं एक मुट्ठी बाजरे के लिए हिंदुस्तान की बादशाहत खो देता."  वो मालदेव ही थे, जिन्होंने मुगल बादशाह हुमायूं को मदद का भरोसा दिया था, जिसके बल पर हुमायुं ने अपने पिता बाबर की गद्दी को वापस हासिल किया था

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जैसलमेर राजा ने राजकुमारी का विवाह राजा मालेदव से किया

राजा मालदेव विस्तारवादी शासक थे. उन्होंने भाटी राजपूतों की रियासत जैसलमेर पर आक्रमण करते हुए घेरा डाल दिया, लेकिन जैसलमेर के तत्कालीन राजा लूणकरण ने अपनी कूटनीति का इस्तेमाल कर मालदेव से अपने राज्य को बचाने और युद्ध टालने के लिए मारवाड़ और जैसलमेर के बीच रिश्तेदारी का हाथ बढ़ाते हुए अपनी छोटी बेटी उमा दे भटियानी का विवाह मालदेव से कर दिया.

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राजकुमारी को छोड़ उसकी दासी से इश्क कर बैठे राजा मालदेव

इस कूटनीतिक विवाह में राजकुमारी उमा दे भटियान को उनके पिता ने दहेज में भारमली नामक एक दासी भी दी थी. शादी के बाद राजकुमारी सुहाग की सेज पर राजा मालदेव का इंतजार कर रही थी, और काफी इंतजार के बाद भी जब राजा रनिवास नहीं पहुंचे तो राजकुमारी ने दासी भारमली को मालदेव को बुलाने भेजा, लेकिन नशे में चूर राजा मालदेव दासी भारमली की सुंदरता पर मोहित हो गए.

राजकुमारी उमा दे भटियानी ने जब पति मालदेव को उसकी दासी भारमली को पति के साथ अंतरंग हालत में देखा तो नाराज होकर राजकुमारी ने पति से रुठ गई. पति के साथ दासी की अंतरंगता राजकुमारी नहीं सह पाई और पति राजा मालदेव से ताउम्र रूठे रहने का प्रण कर लिया. शायद इसलिए इतिहास में उन्हें रूठी रानी के नाम से पुकारा गया.

फिर शुरू हुई बाघसिंह कोटडिया और दासी भारमली कहानी 

राजा के साथ दासी भारमली की अंतरगता का पता जब राजकुमारी की भाभी को लगा, तो ननद का घर बचाने के लिए भाभाी ने जोधपुर मारवाड़ राज्य के ही अधीन परगने के जागीरदार और भाई बाघसिंह कोटडिया को दासी भारमली को गायब करने को निर्दश दिया. बाघा ने ताकतवर साम्राज्य से बगावत का बिगुल फूंकते हुए दासी को उठाकर लेकर आ गया, लेकिन उसकी सुंदरता देख वह भी अपना दिल हार बैठा.

दासी से राजा मालदेव को अलग करने गए राजकुमारी की भाभी का भाई बाघसिंह कोटडिया भी दासी भारमली की सुंदरता का दीवाना हो गया और भारमली को गायब करने का इरादा छोड़ उसे अपने गांव कोटड़ा ले आया. बाघा दासी भारमली के प्रेम में गिरफ्तार हो चुका था और दोनों ने एक दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया.

जब दासी के इश्क में घायल राजा मालेदव व्याकुल हो गए

दासी भारमली की गुमशुदगी से व्याकुल राजा मालेदव किसी भी कीमत पर दासी को बाघा के चंगुल से छुड़ाने का निश्चय किया और बाघा पर आक्रमण करने की तैयारी में था कि राजा के दरबार में मौजूद प्रसिद्ध चारण कवि और मंत्रियों की सलाहकारों की जोड़ी ने उन्हें रोक दिया. राजा मालदेव ने बाघा पर आक्रमण तो नहीं किया, लेकिन आशानंद नामक चारण को बाघा के पास भेजकर भारमली को वापस लाने को कहा.

प्रेम के प्रति दासी का समर्पण देख प्रभावित हुए आशानंद चारण

राजा मालदेव के आदेश से आशानंद चारण कोटड़ा पहुंचे, लेकिन बाघा और भारमली की प्रेम कहानी और बाघा और भारमली का उनके प्रति प्रेम और सद्भाव देखकर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और अपने कोटड़ा आने का उद्देश्य ही भूल गए. आशानंद चारण ने दोनों की प्रेम कहानी से बेहद प्रभावित हुए और दोनों के प्रेम के प्रति समर्पण पर लिखा, "बाघा बिजली तो भारमली मेह,भारमली का घाट पै, बाघो लूम लटक्क मतलब बाघा बिजली तो भारमली बरसात, भारमली की कमर पर बाघा मोतियों का गुच्छा है. 

बाघा की मौत के बाद उसी चिता में सती हो गई भारमली 

करीब 12 साल साथ रहने के बाद बाघा और दासी भारमली की प्रेम कहानी तब दुखद अंत हो गया जब अचानक बाघा की मौत हो गई. बाघा की मौत के बाद भारमली भी बाघा की चिता की अग्नि में समाकर सती हो गई, जिससे दोनों की प्रेम कहानी इतिहास में अमर हो गई, यह कहानी बाड़मेर जैसलमेर सहित राजस्थान के हर बुजुर्ग की जुबान पर है. कवियों द्वारा आज भी राजस्थान में इस गाथा को गाया और सुनाया जाता है.

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