Rajasthan Politics: नागौर में 2019 के मुकाबले 5 फीसदी घटा मतदान, जानिये वोटर के बूथ तक नहीं पहुंचने की पांच वजहें

Rajasthan Lok Sabha Election 2024 Phase 1: नागौर लोकसभा सीट की विधानसभाओं पर हुए मतदान की बात की जाए तो नावां में 58.3, परबतसर में 54.58, नागौर में 60.05, मकराना में 59.91, डीडवाना में 55.54, जायल में 54.87, लाडनूं में 53.45 और खींवसर में 58.5 फीसदी रहा. 

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Lok Sabha Elections 2024: राजस्थान में लोकसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान समाप्त हो गया. मतदान के बाद ईवीएम मशीनों को स्ट्रांग रूम में सुरक्षित रखवाया गया है और मतगणना चार जून को आयोजित होगी. नागौर 2024 के मतदान के आंकड़ों की बात करें तो नागौर लोकसभा क्षेत्र में 57.1प्रतिशत मतदान हुआ. पिछले लोकसभा चुनावों में 2019 में मतदान प्रतिशत ज्यादा था. नागौर में पिछले लोकसभा चुनावों में नागौर में 62.15 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया था. लेकिन इस बार 2024 में मतदान 5% काम हुआ है.

विधानसभावार मतदान प्रतिशत 

नावां में 58.3, परबतसर में 54.58, नागौर में 60.05, मकराना में 59.91, डीडवाना में 55.54, जायल में 54.87, लाडनूं में 53.45 और खींवसर में 58.5 फीसदी रहा. 

वो पांच कारण जिनकी वजह से हुआ कम मतदान 

पहला कारण, जो सामने आया वह शादियों का सीजन होना था. 18 अप्रैल को शादी का एक बड़ा मुहूर्त था जिसके चलते लोग शादी समारोह में व्यस्त थे. 

दूसरा कारण, यह है कि जनता यह समझ चुकी है कि दोनों ही प्रत्याशियों ने इस बार अपनी जुबानी जंग की है, लेकिन इस जुबानी जंग में नागौर जिले का कहीं पर भी विकास होता हुआ नजर नहीं आ रहा है. भाजपा ने विकास के नाम पर वोट मांगे हैं तो बेनीवाल ने साथ रहने के नाम पर वोट मांगे हैं कि वो हर परिस्थिति में जनता के बीच में मौजूद रहे. 

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तीसरा कारण, विधानसभा चुनाव के तरह मुख्य पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने लोगों से घर-घर जाकर संपर्क नहीं किया और मतदान केंद्रों तक लाने में सफल नहीं हो पाए. 

चौथा कारण, जनता से यह रिएक्शन सामने आया की केंद्र में सरकार तो भाजपा की बन रही है. इसीलिए कोई भी जीते नागौर का विकास तो बीच में ही लटका रहेगा. अगर ज्योति मिर्धा चुनाव जीती है तो नागौर रहेंगी या हरियाणा यह समय बताएगा. जबकि ज्योति मिर्धा ने अब नागौर शहर में ही निवास स्थान बनाकर अपना पहला मतदान अपने पति के साथ कल रतन बहन स्कूल में किया था. इसलिए भाजपा के प्रति जनता का मिल-जुला असर रहा.

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पांचवा कारण, राजपूत वोटर्स समेत भाजपा के परम्परागत मतदाताओं की भाजपा से नाराज़गी भी कम मतदान का कारण रहा, यह माना गया कि, यह समूह वोट देने ही नहीं गया. अब इससे फायदा किसे होता है, इस बारे में सबके अपने-अपने दावे हैं. अपने-अपने गणित हैं. 

सबके अपने दावे, सबके अपने गणित 

हालांकि कांग्रेस और भाजपा के खेमे कम वोटिंग को अपने-अपने पक्ष में बता रहे हैं. कांग्रेस का कहना है कि वोटिंग कम हुई है ऐसे में परिणाम उनके पक्ष में जाएंगे. जबकि भाजपा का कहना है कि मतदाताओं ने मोदी सरकार के नाम पर वोट किया है लिहाजा वे सरकार बना पाएंगे.

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