400 साल पुरानी हरिराय जी की चुतर्थ बैठक से जुड़ा है गिरधारी जी मंदिर का इतिहास, प्राचीन परम्पराओं के अनुसार होता नंद उत्सव

इतिहास के जानकर कमल आचार्य ने बताया कि इस मंदिर का इतिहास श्री हरिराय जी महाप्रभु जी के जैसलमेर आगमन से जुड़ा है.

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Jaisalmer News: नंद के आनंद भयो.. जय कन्हैया लाल की..हाथी घोड़ा पालकी.. जय हो नंदलाल की. यह गूंज कृष्ण वंशजों की नगरी जैसलमेर में चारों तरफ सुनाई दे रही है.....कृष्ण जन्म के बाद आज जैसलमेर के प्राचीन गिरधारी जी मंदिर में नंद उत्सव का आयोजन धूमधाम से किया गया.परम्परा है कि जिन कृष्ण मंदिरों में कल श्री कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाया गया था वहां आज नंद उत्सव मनाया जाएगा. इसमें भगवान को मानखुर्द मिस्त्री का भोग लगाकर भक्तों में बांटा जाता है. 

हर कोई नंद उत्स्व नें आनंदित नजर आया

इस दौरान भक्त गिरधारी जी के समक्ष बैठकर भजन कीर्तन करते है. श्री कृष्ण के नंद जी के घर आने की बधाईया बाँटी गई,जिसके बाद दही हांडी फोड़ने का आयोजन किया गया.इस दौरान वल्ल्भ पंथ ( वैष्णव पंथ) के अनुयाय भक्त कृष्ण के बाल स्वरूप की भक्ति में रंगे नजर आए. मंदिर परिसर में माखन मिश्री का प्रसाद, टॉफी, खिलोनों व पुष्प की मानों बारिश कर दी गई. हर कोई नंद उत्स्व नें आनंदित नजर आया.

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पूजन झारी के पानी से भर गया था गोविंदसर

इतिहास के जानकर कमल आचार्य ने बताया कि इस मंदिर का इतिहास श्री हरिराय जी महाप्रभु जी के जैसलमेर आगमन से जुड़ा है. जैसलमेर के शासक द्वारा महाप्रभु जी के शहर आगमन के लिए उनसे कर की मांग पर उन्होंने शहर से बाहर गोविंदसर पर डेरा डाल दिया. लेकिन जब वो गोविंदसर पहुंच तो वहां सूखा पड़ा हुआ था. उन्होंने अपनी पूजन झारी के पानी को वहां डाला और गोविंदसर पानी से भर गया. जब इस बात की जानकारी तत्कालीन महारवाल को मिली तो वो हरिराय जी महाप्रभु जी के दर्शन करने गोविंदसर आये और जितनी राशि महारवाल ने कर के तौर पर मांगी थीं वो मोहरें उन्हें भेंट कर दीं. 

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मंदिर में हरिराय प्रभु जी की बैठक भी है

महारावल मूलराज को हरिराय जी के दर्शन हुए तभी उनके मन में पुष्टिमार्ग से पूजा करने की भावना जागृत हुई और उन्होंने ब्रह्म्मसंबध लिया. तभी हरिराय जी से सवाल किया कि ठाकुर की सेवा कहां कि जाए तो हरिराय जी ने उन्हे खिमनौर भेजा जहां हरिराय जी के पिता कल्याणराय जी के सेवय गिरधारीजी का स्वरूप मौजूद थे. फिर गिरधारी जी का स्वरूप और गुरूजी की चरण पादुका सिर पर रखकर जैसलमेर लाए गए. तत्पश्चात महारावल निवास में ही मंदिर का निर्माण कर गिरधारी जी की प्रतिमा की स्थापना करवाई. यहां हरिराय प्रभु जी की बैठक भी है.

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अष्टमयाम यानी 8 पहर की होती है सेवा

कृष्ण भक्त व आर्टिस्ट टीसा बिस्सा का दावा है कि यह जैसलमेर सबसे प्राचीन पुष्टि मार्गीय मंदिर है और इस मंदिर में विराजे गिरधारी जी का स्वरूप विश्व का एक मात्र स्वरूप है.यंहा श्रीनाथ मंदिर नाथद्वारा की भांति अष्टमयाम सेवा यानी 8 पहर की सेवा होती है.

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