कौन हैं बाबा भर्तृहरि? जिनके नाम पर राजस्थान सरकार ने बदला इस जिले का नाम

राजस्थान सरकार ने खैरथल-तिजारा जिले का नाम बदलकर भर्तृहरि नगर किया है. यह फैसला महान लोकदेवता बाबा भर्तृहरि की आध्यात्मिकता को सम्मान देता है, जिससे जिले को नई ऐतिहासिक पहचान मिली है.

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राजस्थान के लोकदेवता बाबा भर्तृहरि.

Rajasthan Bhartruhari Nagar: राजस्थान सरकार ने एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला लिया है. खैरथल-तिजारा जिले का नाम बदलकर अब भर्तृहरि नगर कर दिया गया है. मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. यह जिला पहले कांग्रेस सरकार द्वारा बनाए गए 17 नए जिलों में शामिल था. लेकिन बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद 9 जिलों को खत्म कर दिया गया था. अब इस नामकरण के साथ भर्तृहरि नगर का गौरव और बढ़ गया है. यह फैसला न केवल जिले की पहचान को नया रूप देता है बल्कि राजा भर्तृहरि की महानता को भी सम्मान देता है.

जानें कौन थे राजा भर्तृहरि

उज्जैन के महान राजा भर्तृहरि का नाम इतिहास और लोककथाओं में अमर है. वे विक्रमादित्य के बड़े भाई थे और उनके पिता महाराज गंधर्वसेन थे. भर्तृहरि अपनी विद्वता, शौर्य और आध्यात्मिकता के लिए जाने जाते हैं. कहा जाता है कि उन्होंने अपने छोटे भाई विक्रमादित्य को राजपाट सौंपकर संन्यास का रास्ता चुना. उनकी कहानियां आज भी लोगों के बीच प्रेरणा और रहस्य का विषय बनी हुई हैं.

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पत्नी पिंगला की बेवफाई या प्रेम?, जीवन की दो कहानियां

भर्तृहरि के संन्यासी बनने की कई कहानियां प्रचलित हैं. एक कथा के अनुसार उनकी प्यारी रानी पिंगला ने उन्हें धोखा दिया. गोरखनाथ द्वारा दिया गया एक चमत्कारी फल, जो जवानी और सुंदरता देता था, भर्तृहरि ने पिंगला को दिया. लेकिन पिंगला ने वह फल अपने प्रेमी कोतवाल को दे दिया. कोतवाल ने उसे एक वैश्या को दे दिया और अंत में वह फल वापस भर्तृहरि के पास पहुंचा. इस धोखे से आहत होकर भर्तृहरि ने राजपाट छोड़कर गोरखनाथ के शिष्य बनने का फैसला किया.

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वहीं दूसरी कहानी इसके ठीक उलट है. इसमें पिंगला अपने पति भर्तृहरि से बहुत प्रेम करती थी. एक बार शिकार के दौरान भर्तृहरि ने देखा कि एक पत्नी अपने मृत पति की चिता में कूद गई. यह देखकर उन्होंने पिंगला से पूछा कि क्या वह भी ऐसा कर सकती है. पिंगला ने कहा कि वह उनकी मृत्यु का समाचार सुनते ही मर जाएगी. भर्तृहरि ने उनकी परीक्षा लेने के लिए अपनी मृत्यु की झूठी खबर भेजी. यह सुनकर पिंगला ने सचमुच प्राण त्याग दिए. इस घटना से भर्तृहरि टूट गए और गोरखनाथ के शिष्य बन गए. बाद में गोरखनाथ की कृपा से पिंगला जीवित हुईं.

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हिरन की करुणा ने बदली जिंदगी

एक अन्य कथा के अनुसार भर्तृहरि और पिंगला जंगल में शिकार के लिए गए थे. वहां उन्हें एक मृगराज दिखा जो 700 हिरनियों का पति था. पिंगला ने उसे न मारने की विनती की, लेकिन भर्तृहरि ने बाण चला दिया. मरते हुए हिरन ने भर्तृहरि को उसकी त्वचा, सींग और अन्य अंग साधु-संतों और जरूरतमंदों को देने को कहा. इस करुणामयी बात से भर्तृहरि का मन पिघल गया. रास्ते में गोरखनाथ से मुलाकात हुई और उन्होंने हिरन को जीवित करने की शर्त पर भर्तृहरि को अपना शिष्य बना लिया.

उज्जैन की गुफा और अलवर का धाम

उज्जैन में भर्तृहरि की गुफा आज भी उनके तप का प्रतीक है. माना जाता है कि उन्होंने यहां 12 साल तक कठोर तपस्या की. गुफा के पास शिप्रा नदी बहती है और वहां एक धुनी की राख हमेशा गर्म रहती है. कहा जाता है कि इंद्र ने उनकी तपस्या से डरकर उन पर पत्थर गिराया, जिसे भर्तृहरि ने एक हाथ से रोक लिया. उस पत्थर पर उनके पंजे का निशान आज भी मौजूद है. अलवर (राजस्थान) में भर्तृहरि धाम उनकी समाधि का स्थान है. यहां सदियों से अखंड ज्योति और धूनी जल रही है. स्थानीय लोग इसे भर्तृहरि के चमत्कारों से जोड़ते हैं. माना जाता है कि यह समाधि ईसा से सौ साल पहले उनके शिष्यों ने बनवाई थी.

नए नाम से नई पहचान

खैरथल-तिजारा का नाम बदलकर भर्तृहरि नगर करना राजस्थान सरकार का एक प्रेरणादायक कदम है. यह फैसला न केवल भर्तृहरि की स्मृति को जीवित रखेगा, बल्कि इस क्षेत्र को एक नई ऐतिहासिक पहचान भी देगा.

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