Barmer-Jaisalmer Lok Sabha Seat पर रविंद्र भाटी की क्यों हुई हार, कैसे जीते कांग्रेस के उम्मेदा राम

बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर उम्मेदा राम को 704676 वोट हासिल हुए. जबकि रविंद्र भाटी को 586500 वोट हासिल हुए. वहीं तीसरे स्थान पर बीजेपी के कैलाश चौधरी को 286733 वोट हासिल हुए.

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Barmer-Jaisalmer Results 2024: राजस्थान में लोकसभा चुनाव 2024 का रिजल्ट (Lok Sabha Election Results 2024) काफी चौंकाने वाला रहा. जहां कांग्रेस ने प्रदेश में 11 सीटों पर जीत हासिल कर चौंका दिया है. वहीं बाड़मेर जैसलमेर सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी उम्मेदा राम बेनीवाल की जीत काफी चौकाने वाला है. उम्मेदा राम ने अपने नजदीकी प्रतिद्वंद्वी निर्दलीय उम्मीदवार रविंद्र सिंह भाटी को हराया है. वहीं बीजेपी प्रत्याशी कैलाश चौधीर तीसरे नंबर पर रहे.

बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर उम्मेदा राम को 704676 वोट हासिल हुए. जबकि रविंद्र भाटी को 586500 वोट हासिल हुए. वहीं तीसरे स्थान पर बीजेपी के कैलाश चौधरी को 286733 वोट हासिल हुए. यानी उम्मेद राम ने भाटी को 118176 और कैलाश चौधरी को 417943 वोट से हराया है. हालांकि इस सीट पर रविंद्र भाटी और उम्मेदा राम के बीच कड़ी टक्कर थी. जबकि भाटी की जीत का भी आकलन किया जा रहा था. चलिए आपको बतात हैं. 

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जातिगत समीकरण जीत का मजबूत आधार रहा

बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट पर सबसे बड़ा वोटबैंक जाट समाज का है. इसी को देखते हुए कांग्रेस ने जाट समाज से आने वाले उम्मेदा राम बेनीवाल को प्रत्याशी बनाया था. इसके बाद कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमाराम चौधरी हरीश चौधरी जिला प्रमुख महेंद्र चौधरी कर्नल सोनाराम चौधरी ने एक जुटता दिखाते हुए सबसे पहले जाट समाज को कांग्रेस के पक्ष में किया. इसके बाद कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाने वाले एससी और अल्पसंख्यक समुदाय को पक्ष में करने में सफल रहे. बाड़मेर जैसलमेर लोकसभा सीट पर करीब 4 लाख 50 हजार जाट समाज के वोटर हैं. वहीं एससी और अल्पसंख्यक वोट बैंक की बात करें तो वह भी यहां पर 5 लाख से ज्यादा हैं. ऐसे में सबसे बड़े वोट बैंक की बात करें तो वह भी यहां पर 5 लाख से ज्यादा है. कांग्रेस का जीत का सबसे बड़ा फैक्टर जातिगत समीकरणों को ही माना जा रहा हैं. और दूसरा कारण कांग्रेस पार्टी के तमाम नेता पूर्व विधायक इस बार एकजुट नजर आए इसी का नतीजा है कि कांग्रेस पार्टी बाड़मेर जैसलमेर सीट को 10 साल बाद जीतने में कामयाब हो पाई है.

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वहीं रविंद्र सिंह भाटी के पास युवा समर्थक जरूर थे. लेकिन जाति के समीकरण में भाटी की पेंच फंस गई. रविंद्र भाटी के पास राजपूत वोट थे . लेकिन उन्हें जाट समाज का वोट काफी कम मिला है. 

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