Rajasthan Politics: ''मैं प्रार्थना कर रहा हूं, हे पपलाज माता, मेरे गले में जो घंटारी लटका रखी है. वह इनके गले में लटक जाए. मैं तो रहना ही नहीं चाहता, ममता कुलकर्णी को वैराग्य हो गया. मैं भी जा रहा हूं, मेरे को भी वैराग्य हो जाए तो रामबिलास को और भी रास्ता मिल जाएगा.''
राजस्थान के कृषि मंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा ने यह बयान दौसा ज़िले के लालसोट में आयोजित एक कार्यक्रम में दिया है. किरोड़ी के इस बयान में दुनिया से हताशा और वैराग्य जीवन की ख़्वाहिश नज़र आती है. अपने बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले किरोड़ी लाल मीणा का यह बयान राजनीति से संन्यास की और इशारा करता है. कुंभ जाकर इस फ़ानी दुनियां से खुद को अलग करने की इच्छा.
लेकिन, उससे पहले वो अपनी विरासत को स्थानांतरित करने की बात भी कर रहे हैं. मंत्री पद को 'गले की घंटी' बता रहे हैं और कह रहे हैं कि यह घंटी अब लालसोट विधायक रामबिलास को बांध दी जाए.
बाग़ी हुए, लेकिन मज़बूत रही सियासी ज़मीन
यह राजनीति में उनके कद की वजह से हुआ. करीब 4 दशक तक पूर्वी राजस्थान में और ख़ास तौर पर मीणा समुदाय में अपना एकछत्र प्रभाव रखने वाले किरोड़ी लाल मीणा ने बग़ावत की राह इख़्तियार करते हुए भी अपने सियासी ज़मीन को कभी कमज़ोर नहीं होने दिया.
यही वजह थी कि 2008 में वसुंधरा राजे से मतभेद होने के बाद भाजपा से निकलने के बाद भी वो विधायक और सांसद बनते रहे. इसकी एक ही वजह नज़र आती है, ग्राउंड ज़ीरो पर खड़े रहना. राजस्थान का कोई भी मुद्दा हो, वहां किरोड़ी लाल मीणा लोगों के साथ नज़र आये. जिसने उन्हें राजनीति में हमेशा प्रासंगिक बनाये रखा.
लेकिन, सवाल अब भी वही है कि आखिर किरोड़ी लाल मीणा को ऐसा क्या 'दुःख' हुआ, जिसने उनके मन में दुनिया से मुक्त होकर वैराग्य अपनाने का सोचने के लिए मजबूर किया. थोड़ा पीछे जाकर हालिया महीनों की घटनाओं को देखा जाए तो शायद उसमें इस बात का उत्तर मिल जाए.
सबसे बड़ा दुःख है उम्मीद का टूटना
किरोड़ी लाल मीणा 6 बार विधायक का चुनाव जीते हैं और पूर्वी राजस्थान में उनके प्रभाव को इस बात से समझा जा सकता है कि वो महवा, टोड़ाभीम, सवाई माधोपुर और बामनवास समेत चार अलग-अलग विधानसभाओं से जीत कर आये.
अगर आप राजस्थान में मीणा समुदाय के किसी भी शख़्स से किरोड़ी लाल मीणा के बारे में बात करें, तो वो किरोड़ी का नाम सम्मान के साथ ही लेगा. उन्होंने करीब 4 दशक तक मीणा समुदाय का समाजिक और राजनीतिक तौर पर नेतृत्व किया है. लेकिन फिर बदला क्या?
इस सवाल का जवाब है 'सियासत'. पिछले एक दशक में सियासत इतनी तेज़ी से बदली है जितनी उससे पहले 3 - 4 दशकों में भी नहीं बदली. उससे हुआ यह कि किरोड़ी लाल मीणा की सत्ता को अंदर ही से चुनौती मिलना शुरू हो गई. सियासत के नए मुसाफिर आये तो किरोड़ी लाल मीणा की सत्ता लड़खड़ाने लगी. वो भी चुनाव हारे उनकी पत्नी भी चुनाव हारीं. रमेश मीणा, रामकेश मीणा, मुरारी लाल मीणा, परसादी लाल मीणा, हरीश मीणा पूर्वी राजस्थान में नई ताकत बन कर उभरे, और किरोड़ी लाल मीणा कमज़ोर होते चले गए.
2023 के विधानसभा चुनाव में तो उन्होंने प्रचार के दौरान यह तक कह दिया था, ''यह मेरा आख़िरी चुनाव है'' तब जाकर वो मीणा समुदाय का शत-प्रतिशत वोट नहीं ले पाए.
मंत्री पद छोड़ने की धमकी भी काम न आई
लोकसभा चुनाव में किरोड़ी लाल मीणा ने पूर्वी राजस्थान की कुछ लोकसभा सीटों पर जीत की ज़िम्मेदारी ली थी. लेकिन, भाजपा उनमें से ज्यादातर सीटें हार गई.
''यह बहुत गहरी भी है और पल-प्रति-पल सताने वाली भी''
''45 साल हो गए. राजनीति के सफर के दौरान सभी वर्गों के लिए संघर्ष किया. जनहित में सैंकड़ों आंदोलन किए. साहस से लड़ा. बदले में पुलिस के हाथों अनगिनत चोटें खाईं. आज भी बदरा घिरते हैं तो समूचा बदन कराह उठता है. मीसा से लेकर जनता की खातिर दर्जनों बार जेल की सलाखों के पीछे रहा. यह बहुत गहरी भी है और पल-प्रति-पल सताने वाली भी. जिस भाई ने परछाईं बनकर जीवन भर मेरा साथ दिया, मेरी हर पीड़ा का शमन किया, उऋण होने का मौका आया तो कुछ जयचंदों के कारण मैं उसके ऋण को चुका नहीं पाया.''
किरोड़ी लाल मीणा ने यह ट्वीट अपने भाई जगमोहन मीणा की उपचुनाव में दौसा विधानसभा सीट से हार के बाद किया था. राजनीति के जानकार यह कहते हैं, कि मीणा समुदाय के सबसे बड़े गढ़ में अपने भाई की हार से किरोड़ी लाल मीणा की सारी उम्मीदें टूट गईं. इसीलिए तो उन्होंने अपने 45 साल लम्बे राजनीतिक जीवन का ज़िक्र किया. अपने संघर्ष की दुहाई दी. उन चोटों का ज़िक्र किया जो उन्होंने 'किसी की खातिर' खाईं थीं.
ख़ैर, जो भी हो, किरोड़ी लाल मीणा कुंभ जाकर वैराग्य अपनाएं या ना अपनाएं, लेकिन राजस्थान की राजनीति के जानकार यह कहते हैं कि किरोड़ी लाल मीणा राजस्थान की रजनीति के भीतर ही वैराग्य पथ पर पहले ही चल चुके हैं. वो विरह के गीत गाते हैं, उनके ट्वीट और प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म करके उठते वक़्त मुस्कुरा कर हल्के अंदाज़ में कही गईं बातें उनके भीतर की पीड़ा को ज़ाहिर करती रहती हैं.
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