राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को कांग्रेस ने चुनाव प्रभारी बना कर अमेठी लोकसभा सीट पर भेजा है. रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीटें कांग्रेस की प्रतिष्ठा का सवाल बन गई हैं. ऐसे में कांग्रेस अमेठी में अशोक गहलोत के हाथ में चुनाव लड़वाने की कमान दी है. आखिर इसके क्या मायने हैं? अशोक गहलोत के लिए इस ज़िम्मेदारी के बाद भविष्य के कौन से रास्ते खुले हैं? आइए, इन सवालों के जवाब तलाशंने की कोशिश करते हैं-
भाजपा के पास सदन में 115 विधायक थे और कांग्रेस के पास 61 विधायक
2017 राज्य सभा के चुनाव में यह तय था कि, अहमद पटेल आसानी से चुनाव जीत जाएंगे. लेकिन चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस के 6 विधायकों ने पार्टी से बगावत कर इस्तीफा दे दिया और भाजपा ने एक और प्रत्याशी भरत सिंह राजपूत को मैदान में उतार दिया.कांग्रेस के लिए यह चुनाव नाक का सवाल बन गया था. पार्टी के कद्दावर नेता मैदान में थे.
कांग्रेस के 12 और विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की, पटेल को 43 वोट मिले
भाजपा पर चुनाव को प्रभावित करने के आरोप लगे. चुनाव हुआ लेकिन कांग्रेस के 12 और विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी. पटेल को 43 वोट मिले और जीत के लिए 44 वोट चाहिए थे. इसी दौरान कांग्रेस ने आरोप लगाया कि, उनकी पार्टी के दो विधायकों ने क्रॉस वोटिंग तो की ही, साथ ही उन्होंने बैलट पेपर वहां बैठे भाजपा के चुनाव एजेंट अमित शाह को दिखा दिया. कांग्रेस का आरोप था कि, यह गुप्त मतदान का उल्लंघन है.
जब राजस्थान के जादूगर गहलोत ने दिलवाई अहमद पटेल को जीत
उस वक्त अशोक गहलोत गुजरात कांग्रेस के प्रभारी थे. आनन-फानन में वो गांधीनगर से हेलीकाप्टर के जरिए दिल्ली पहुंचे और इलेक्शन कमीशन में इस मामले की शिकायत करते हुए दोनों वोट कैंसिल करने की मांग की. पूरा देश इस चुनाव पर निगाहें टिकाये बैठा था. भाजपा के बड़े नेता भी अशोक गहलोत की शिकायत के बाद चुनाव आयोग पहुंचे
अहमद पटेल की राज्यसभा में जीत का सेहरा अशोक गहलोत के सिर सजा
चुनाव आयोग पहुंचे अशोक गहलोत तो सियासी गलियारों में पॉलिटिकल ड्रामा जारी था. आखिर रात के 2 बजे परिणाम आया. चुनाव आयोग ने भाजपा एजेंद को बैलेट पेपर दिखाने वाले दोनों विधायकों के वोट रद्द कर दिए. ऐसे में जीत के लिए जरुरी वोटों की तादाद 43 हो गई और अहमद पटेल चुनाव जीत गए. 2017 में राज्य सभा चुनाव में अहमेद पटेल की जीत का सेहरा अशोक गहलोत के सिर सजा.
एक बार फिर कांग्रेस की प्रतिष्ठा वाली सीट अमेठी पर संकट मोचक बने गहलोत
उक्त घटना के बाद 7 साल बाद अशोक गहलोत को एक बार फिर कांग्रेस ने प्रतिष्ठा के सवाल वाली सीट अमेठी में उतारा है. जब उनसे पूछा गया कि, एक सीट को जीतने के लिए एक पूर्व मुख्यमंत्री को प्रभारी बनाया गया? इस पर गहलोत दो शब्द बोलकर खामोश हो जाते हैं, वो हैं 'पार्टी का आदेश', फिर कहते हैं, ' मैं पार्टी का अनुशासित सिपाही हुं, मेरे 50 साल के सियासी जीवन में मैंने वही किया जो पार्टी ने मुझे करने को कहा'
गहलोत की वफादारी और सियासी तजुर्बा ?
अशोक गहलोत के बारे में यह बात बहुत आम है कि, उनकी आलाकमान से अपनी 'वफादारी' और मुश्किल वक्त में कांग्रेस की कमान हाथ में लेकर चलने की ताकत के चलते गहलोत पार्टी में आज भी प्रासंगिक बने हुए हैं. यही वजह है कि राजस्थान की सत्ता गंवाने और फ़ोन टेपिंग से लेकर विधायक दल की बैठक नहीं होने दने के आरोपों के बावजूद गहलोत आज भी पार्टी में गांधी परिवार के सबसे करीबी नेताओं में शुमार हैं. अमेठी में पार्टी उनके तजुर्बे का भरपूर फायदा उठाना चाहती है.
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