Rajasthan: कल मारे थे थप्पड़, आज नरेश मीणा ने समर्थकों को मारी लातें, आखिर उनको इतना गुस्सा क्यों आता है ?  

Naresh Meena: जहां दूसरे नेता शब्दों और फटकार तक सीमित रहते हैं वहीं नरेश मीणा बार-बार समर्थकों पर हाथ उठाते हुए दिखते हैं. विधानसभा उपचुनाव के दौरान SDM को थप्पड़ मारने की घटना ने उनकी छवि को आक्रामक बना दिया था.

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अपने समर्थकों को लात मारते नरेश मीणा

Jaipur News: झालावाड़ स्कूल हादसे के बाद मृतक बच्चों के परिजनों को 50-50 लाख रुपये मुआवज़ा दिलाने की मांग को लेकर चल रहा नरेश मीणा का अनशन चौथे दिन भी सुर्खियों में रहा. लेकिन आंदोलन से ज्यादा चर्चा उनके गुस्से की हो रही है. कल अनशन स्थल पर उन्होंने अपने समर्थकों को थप्पड़ और लात मारी थी आज मंच पर भीड़ बढ़ने पर पत्थर फेंके और कार्यकर्ताओं को लातों से पीटा.

असल में राजस्थान की राजनीति में गुस्सा हमेशा एक औजार की तरह इस्तेमाल होता रहा है. किरोड़ी लाल मीणा जिन्हें नरेश मीणा का राजनीतिक गुरु माना जाता है, कई बार सार्वजनिक मंचों पर कार्यकर्ताओं को डांटते और झिड़कते नजर आए हैं. आरएलपी प्रमुख हनुमान बेनीवाल भी अक्सर अपने समर्थकों की क्लास लेते और नाराज़गी जताते हैं.

नरेश मीणा बार-बार समर्थकों पर हाथ उठाते हुए दिखते हैं

लेकिन नरेश मीणा का अंदाज़ इससे अलग है. जहां दूसरे नेता शब्दों और फटकार तक सीमित रहते हैं वहीं नरेश मीणा बार-बार समर्थकों पर हाथ उठाते हुए दिखते हैं. विधानसभा उपचुनाव के दौरान SDM को थप्पड़ मारने की घटना ने उनकी छवि को आक्रामक बना दिया था. झालावाड़ हादसे के बाद भी उनका प्रदर्शन उग्रता के कारण चर्चा में रहा. अब दो दिनों से लगातार समर्थकों को मारना-पीटना उनकी राजनीतिक पहचान को खंडित कर रहा है.

आंदोलन की छवि पर असर डाल रहा है

मीणा खुद को पीड़ित परिवारों की आवाज़ बताते हैं और मानते हैं कि सरकार की ओर से घोषित मुआवज़ा बहुत कम है. उनके लिए गुस्सा शायद आक्रोश और दबाव का प्रतीक है. लेकिन यही गुस्सा अब उनके अपने समर्थकों पर उतर रहा है और आंदोलन की छवि पर असर डाल रहा है.

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मंच पर बार-बार हिंसक रूप

वैसे देखा जाए तो राजस्थान की आंदोलनकारी राजनीति में गुस्सा नया नहीं है लेकिन उसका मंच पर बार-बार हिंसक रूप लेना नरेश मीणा की लीडरशिप पर सवाल खड़े करता है. इसलिए जरूरत इस बात की है कि नरेश मीणा को अपने व्यवहार और अपनी राजनीति करने के तौर तरीक़ों पर आत्ममंथन करने के साथ साथ अपनी राजनीतिक नाकामी से उपजी फ़्रस्ट्रेशन को सार्वजनिक रूप से समर्थकों पर उतारने से बचना चाहिए.

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