भारत ने मंगलवार को एशियाई खेलों की घुड़सवारी प्रतियोगिता में टीम ड्रेसेज स्पर्धा में टॉप पर रहकर स्वर्ण पदक के 41 साल के इंतजार को खत्म किया. दिव्यकीर्ति सिंह, हृदय विपुल छेड, अनुश अग्रवाला और सुदीप्ति हजेला की चौकड़ी ने शीर्ष स्थान हासिल किया. खेल के इतिहास में यह पहला मौका है जब भारत ने ड्रेसेज स्पर्धा में टीम स्वर्ण पदक जीता है. भारत ने कांस्य पदक के रूप में ड्रेसेज में पिछला पदक 1986 में जीता था. भारत ने घुड़सवारी में पिछला स्वार्ण पदक नयी दिल्ली में 1982 में हुए एशियाई खेलों में जीता था. नई दिल्ली में 1982 के संस्करण में, भारतीय टीम ने इवेंटिंग और टेंट पेगिंग प्रतियोगिताओं में तीन स्वर्ण पदक जीते थे.
भारतीय टीम ने चीन (204.882%) और हांगकांग (204.852%) को पीछे छोड़ते हुए 209.205 प्रतिशत अंक हासिल करके पोडियम पर शीर्ष स्थान हासिल किया. भारतीय चौकड़ी चयन ट्रायल में अच्छा प्रदर्शन कर रही थी. उनके स्कोर या तो पिछले संस्करणों के एशियाई खेलों के पदक विजेताओं से मेल खाते थे या उनसे बेहतर थे. ऐसे में उनका पकद पक्का लग रहा था और बाद में सिर्फ यह तय होना था कि टीम किस रंग का मेडल जीतती है.
ड्रेसेज में, घोड़े और सवार का मूल्यांकन इस आधार पर किया जाता है कि वे किस प्रकार विभिन्न गतिविधियों का प्रदर्शन करते हैं. प्रत्येक गतिविधि को 10 (0 से 10 तक) में से चिह्नित किया गया है. प्रत्येक राइडर को एक समग्र स्कोर मिलता है और वहां से, एक प्रतिशत निकाला जाता है. उच्चतम प्रतिशत वाला सवार विजेता होता है.
विजेता का निर्धारण करने के लिए एक टीम के शीर्ष तीन स्कोररों को गिना जाता है. भारतीय टीम सवारों का एक दिलचस्प मिश्रण है. चौकड़ी में सबसे छोटी 21 वर्षीय सुदीप्ति का जन्म इंदौर में हुआ था और वर्तमान में वह फ्रांस के पामफौ में प्रशिक्षण लेती हैं. उन्होंने छह साल की उम्र में शौक के तौर पर घुड़सवारी शुरू की थी लेकिन बाद में अपने पिता के आग्रह पर उन्होंने इसे एक खेल के रूप में गंभीरता से लिया. उनके घोड़े का नाम चिंस्की है.
जयपुर की रहने वाली 23 वर्षीय दिव्याकीर्ति जब अजमेर के प्रसिद्ध मेयो कॉलेज गर्ल्स स्कूल में सातवीं कक्षा में थीं, तब उन्होंने घुड़सवारी करना शुरू कर दिया था. वह अपने स्कूल की घुड़सवारी कप्तान थीं. उन्होंने अपनी स्नातक की पढ़ाई दिल्ली के जीसस एंड मैरी कॉलेज से की. 2020 में, वह प्रशिक्षण के लिए यूरोप चली गईं क्योंकि भारत में घुड़सवारी का बुनियादी ढांचा सबसे अच्छा नहीं है. एशियाई खेलों से पहले वह जर्मनी के हेगन एटीडब्ल्यू में प्रशिक्षण ले रही थीं. वह एड्रेनालिन फ़िरफोड की सवारी करती है. दिव्याकीर्ति इस साल की शुरुआत में ड्रेसाज में एशिया की नबंर एक खिलाड़ी बनीं थीं. दिव्याकीर्ति राजस्थान की पहली महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने एशियन गेम्स में ड्रेसाज में मेडल जीता है.
मुंबई के रहने वाले, लंदन विश्वविद्यालय से व्यवसाय प्रबंधन की डिग्री लेने वाले 25 वर्षीय विपुल ने भी कम उम्र में घुड़सवारी शुरू कर दी थी. 2013 से, उन्होंने यूरोप में शीर्ष विदेशी खिलाड़ियों के साथ प्रशिक्षण शुरू किया. दिलचस्प बात यह है कि उन्होंने देश में ड्रेसेज घोड़ों के लिए एक शीर्ष श्रेणी की सवारी सुविधा और पहला प्रजनन कार्यक्रम शुरू करने के लिए काम शुरू किया. वह केमएक्सप्रो एमराल्ड की सवारी करते हैं.
23 वर्षीय अनुष कोलकाता के रहने वाले हैं और वह भी फिलहाल जर्मनी के बोरचेन में रहते हैं. उनके माता-पिता द्वारा उन्हें कोलकाता के एक क्लब में ले जाने के बाद उनमें घुड़सवारी का शौक विकसित हुआ. उन्होंने जल्द ही आठ साल की उम्र में घुड़सवारी का प्रशिक्षण लेना शुरू कर दिया. कोच ढूंढने में दिक्कत होने के बाद उन्होंने 2017 में भारत छोड़ दिया और जर्मनी चले गए. वह डेनमार्क के हर्निंग में 2022 संस्करण में विश्व चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा करने वाले भारत के पहले पुरुष ड्रेसेज राइडर बने. उनके घोड़े का नाम एट्रो है.
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