राजस्थान के भरतपुर में 19 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान स्थित है, जो विश्व विरासत है. इसे पक्षियों का स्वर्ग भी कहा जाता है. जहां विदेशों से प्रवासी पक्षी आते हैं और प्रजनन करते हैं. जानकारी के मुताहिक, यहां करीब 376 प्रकार के प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं. केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत की सूची में भी शामिल कर लिया है. लेकिन पानी की किल्लत कई वर्षों से बरकरार है और यही वजह है कि 2008 में पानी की किल्लत के चलते यूनेस्को ने केवलादेव राष्ट्रीय पक्षी उद्यान की विश्व विरासत की सूची को डेंजर जोन में डाल दिया था.
आज राष्ट्रीय पक्षी उद्यान को ना तो करौली के पांचना बांध से पानी मिल रहा है ना ही चम्बल से इसके अलावा बरसात भी नहीं हुई है।जिसकी वजह से पानी की किल्लत बरकरार है. राष्ट्रीय पक्षी उद्यान को 550 एमसीएफटी पानी की जरूरत होती है जो यहां की झीलों को भरता है. प्रवासी पक्षी इस पानी से अपना भोजन देते हैं और वहां जिलों में स्थित पेड़ों पर अपने घोंसले बनाकर ब्रीडिंग के बाद नवजात बच्चों को रखते हैं.
हालांकि प्रवासी पक्षियों का आगमन मुख्य रूप से अक्टूबर महीने से शुरू होता है. लेकिन मॉनसून सीजन के पक्षी भी विदेशों से समय से पहले आ जाते हैं. जिनको खाने के लिए पानी में वनस्पति और मछली की जरूरत होती है. पांचना बांध से राष्ट्रीय पक्षी उद्यान को करीब 2 वर्षों से पानी नहीं मिल पा रहा है. इसलिए अब चंबल नदी से 62.5 एमसीएफटी पानी लेने के लिए उद्यान प्रशासन कोशिश में लगा हुआ है.
केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान घना में पर्यटकों के सुविधाजनक आवागमन के लिए बैटरी चलित ई-रिक्शा सेवा भी शुरू की गई है. राष्ट्रीय केवलादेव उद्यान में ई-रिक्शा के संचालन से पर्यटकों को बेहतर आवागमन की सुविधा मिली है. वहीं प्रति पर्यटक तीन घंटे का 300 रुपए शुल्क लिया जाता है. अगर कोई पर्यटक तीन घंटे से अधिक समय घूमता है, तो 200 रुपए प्रति घंटे प्रति पर्यटक अतिरिक्त शुल्क लगता है.
विश्व विरासत में शामिल राष्ट्रीय पक्षी उद्यान में पानी की किल्लत एक बड़ा संकट है. क्योंकि जल आपूर्ति पूरी होने के बाद ही प्रवासी पक्षी सहज रूप से यहां अपना जीवन यापन कर सकते हैं. ब्रीडिंग के बाद नवजात बच्चों को बड़ा कर सकते हैं.