महात्मा गांधी : एक आम इंसान से महामानव बनने की गाथा

महात्मा गांधी की जिंदगी में उस वक्त नया मोड़ आया, जब वकालत करने के बाद दक्षिण अफ्रीका में उन्हें नस्लभेदी टिप्पणियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा था.

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महात्मा गांधी (फाइल फोटो)

Mahatma Gandhi Jayanti: मोहनदास करमचंद गांधी, जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से जाना जाता है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे. उन्हें 'राष्ट्रपिता' के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने अहिंसा के सिद्धांत पर आधारित सत्याग्रह के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी. गांधी जी ने दक्षिण अफ्रीका में रहते हुए रंगभेद के खिलाफ भी संघर्ष किया था. नमक सत्याग्रह उनके सबसे प्रसिद्ध आंदोलन में से एक था. खास बात यह है कि उन्होंने दुश्मनों के सामने कभी हथियार नहीं उठाया.

इंसान के अंदर रहते थे महापुरुष 

गांधी जी को 'बापू' के नाम से भी जाना जाता है. एक वकील, स्वतंत्रता सेनानी होने के अलावा बापू समाज सुधारक भी थे. दुबली काया, साधारण कपड़े और हाथ में लाठी, बापू की यही पहचान थी, लेकिन इस आम इंसान के अंदर एक महापुरुष निवास करता था, जिसने दुनिया को सत्य और अहिंसा की सीख दी.

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13 साल की आयु में हो गया विवाह 

महात्मा गांधी का वास्तविक नाम मोहनदास करमचंद गांधी था. उनका जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था. उनके पिता का नाम करमचंद गांधी और मां का नाम पुतलीबाई था. महज 13 साल की आयु में गांधी जी का कस्तूरबा गांधी के साथ विवाह कर दिया गया था. उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई पोरबंदर और राजकोट में हुई. साल 1888 में महात्मा गांधी लॉ की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड गए थे. वहां यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन से उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री ली थी.

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बापू के नारों ने हिला दी अंग्रेजी हुकूमत

महात्मा गांधी के बारे में सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया के कई देशों में भी 'गांधी स्टडीज' विषय के रूप में पढ़ाया जाता है. उन्होंने ऐसे कई काम किए ,जिससे वो हमेशा के लिए अमर हो गए. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपना पूरा जीवन सत्य, अहिंसा, ग्राम स्वराज और सर्वधर्म समभाव जैसे सिद्धांतों पर जिया. महात्मा गांधी ने नारे दिए 'करो या मरो', 'अंग्रेजों भारत छोड़ो', 'बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत बोलो', 'पाप से घृणा करो, पापी से नहीं', 'अहिंसा परमो धर्म' बापू के इन नारों ने भारतीयों के दिलों में ऐसा जोश भर दिया था कि अंग्रेजी हुकूमत तक हिल गई थी.

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किसने दी राष्ट्रपिता की उपाधि 

क्या आपको पता है, महात्मा गांधी को पहली बार किसने 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था और किसने यह उपाधि दी. सिंगापुर में एक रेडियो संदेश देते हुए नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' कहकर संबोधित किया था. जिसके बाद भारत सरकार ने भी 'राष्ट्रपिता' को मान्यता दी. 2 अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर कई कार्यक्रमों के जरिए उनके सिद्धांतों को आत्मसात करने की सीख दी जाती है.

दक्षिण अफ्रीका से हुई आंदोलन की शुरुआत 

महात्मा गांधी की जिंदगी में उस वक्त नया मोड़ आया, जब वकालत करने के बाद साल 1893 में वह कानूनी मामले के लिए दक्षिण अफ्रीका पहुंचे. यहां उन्हें नस्लभेदी टिप्पणियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा था. इसके बाद अफ्रीका में रह रहे भारतीय लोगों को उनके रंग रूप के कारण संघर्ष करता देख, उन्होंने उनका साथ दिया और उनकी लड़ाई लड़ने का निर्णय किया. यहीं से उनके जीवन में बड़ा बदलाव आया और उन्होंने सत्याग्रह का सिद्धांत विकसित किया.

आरडी टाटा ने भेजा 24 हजार का चेक

अफ्रीका में महात्मा गांधी के बढ़ते प्रभाव को देख अंग्रेज उन्हें अपमानित करने की कोशिश करने लगे. यहां तक उन्हें ट्रेन से धक्के देकर गिराया गया, लेकिन बापू इन सब बातों से निराश नहीं हुए. उन्होंने वहां लगातार संघर्ष किया. इस संघर्ष में पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने रतनजी दादाभाई टाटा को याद किया. यह बात जब आरडी टाटा को पता चली, तो उन्होंने अफ्रीका में महात्मा गांधी को 24 हजार रुपये का चेक तक भेजा.

आजादी के 5 महीने बाद हुई हत्या 

दुर्भाग्य से देश को आजादी मिलने के 5 महीने बाद ही 30 जनवरी 1948 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की नाथूराम गोडसे ने दिल्ली में गोली मारकर हत्या कर दी. उनकी मृत्यु ना सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए शोक लेकर आई. उनके निधन पर जवाहर लाल नेहरू ने कहा था, "हमारे जीवन से प्रकाश चला गया है और हर जगह अंधेरा छा गया है"

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