Study on Covid: खुला वातावरण और सुबह की धूप कोरोना के खतरे को करती है कम, उत्तराखंड में हुई स्टडी में दावा

Study on Covid-19 : कोरोना महामारी पर हुई एक विस्तृत स्टडी में दावा किया गया है कि खुला वातावरण और सुबह की धूप इस महामारी के खतरे को कम करती है. यह स्टडी इंटरनेशनल जर्नल में प्रकाशित हुई है.

विज्ञापन
Read Time: 21 mins
प्रतीकात्मक तस्वीर.

Study on Covid-19: बीते कुछ दिनों से देश-दुनिया में कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे है. भारत में भी कई राज्यों में कोरोना मरीजों की संख्या दिनों-दिन बढ़ रही है. केरल से शुरू होकर तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र होते हुए राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा समेत कई राज्यों में कोरोना के बढ़ते मामलों ने नई चिंता पैदा कर दी है. चिंता की बड़ी वजह कोरोना के खतरनाक वैरिएंट जेएन-1 को लेकर है. यह वैरिएंट अभी कुछ दिनों पहले ही सामने आया है. इस वेरिएंट ने संक्रमण की रफ्तार को और तेज कर दिया है. बात बीते 24 घंटें की करें तो  स्वास्थ्य विभाग की ओर से जारी आंकडे के अनुसार गुरुवार को बीते 24 घंटे में कोविड-19 के 702 नए मामले सामने आए. इससे पूरे देश में एक्टिव मरीजों की संख्या बढ़ कर 4,097 हो गई. इस दौरान कोरोना संक्रमण से 6 लोगों की मौत भी हुई.

कोरोना की तेज हुई रफ्तार को देखते हुए केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों की सरकार ने एडवाइजरी जारी कर दी है. चंडीगढ़ में मास्क तक अनिर्वाय कर दिया गया है. हॉस्पिटलों में मॉक ड्रिल हो रहे हैं. विभाग का दावा है कि हमारी तैयारी पूरी है. लेकिन 2020-21 में कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया में जिस तरह की तबाही मचाई उसे याद कर लोग दहशत में है.
 

Advertisement
कोरोना की बढ़ती रफ्तार की चिंता के बीच उत्तराखंड से एक राहत भरी खबर सामने आई है. दरअसल उत्तराखंड में कोरोना पर हुई स्टडी में खुलासा हुआ है कि खुला वातावरण और सुबह की धूप कोरोना के खतरे को कम करती है. 


सुबह की धूप और खुला वातावरण ये दोनों चीजें प्राकृतिक है. जो थोड़ी सी मेहनत पर हर आदमी के लिए उपलब्ध हो सकती है. ऐसे में इस स्टडी के निष्कर्ष को फॉलो किया जाए तो देश के करोड़ों लोगों को बड़ा लाभ मिलेगा. इस रिसर्च पेपर के बारे में उत्तराखंड की एजुकेटर कादम्बिनी गड़तोड़ी ने विस्तृत जानकारी दी. कादम्बिनी गड़तोड़ी Studyasan की को-फाउंडर हैं.  

Advertisement

इंटरनेशनल जर्नल कोरोना में प्रकाशित हुई है स्टडी 

कादम्बिनी ने बताया कि उत्तराखंड केंद्रित कोविड-19 महामारी पर यह रिसर्च अंतर्राष्ट्रीय जर्नल ‘कोरोनावायरस' में प्रकाशित हुआ है. जिसे डीओआई संख्या 10.2174/0126667975257267231213071226 के माध्यम से निःशुल्क ओपन एक्सेस उपलब्ध कराया जा रहा है. उत्तराखंड के सभी 13 जिलों पर यह रिसर्च हुआ है. इसे उत्तराखंड में कोविड-19 के असर पर केंद्रित पहला रिसर्च पेपर बताया जा रहा है. इसे ग्राफिक एरा पर्वतीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और शोधकर्ताओं द्वारा किया गया. 

Advertisement

उत्तराखंड के 13 जिलों पर हुई है स्टडी  

यह रिसर्च उत्तराखंड सरकार द्वारा जारी किए गए कोविड के हर दिनों के आंकड़ों के आधार पर किया गया है. प्रदेश की सभी 13 जिलों को भौगोलिक स्थिति के अनुसार दो भागों में बांटा गया- पहाड़ी और मैदानी. राज्य में 10 पहाड़ी जिले हैं- बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, अल्मोडा, उत्तरकाशी, नैनीताल, टेहरी-गढ़वाल, चंपावत, पिथौरागढ, पौड़ी-गढ़वाल, चमोली. जबकि तीन जिले मैदानी है- उधम सिंह नगर, हरिद्वार और देहरादून.  इस रिसर्च में यह बात सामने आई कि कोविड काल में उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों पर कोरोना का असर कम रहा. पहाड़ी जिलों में रिकवरी रेट मैदानी इलाके से काफी बेहतर थी. 

देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल सवंदेनशील

रिसर्च में बताया गया कि उत्तराखंड में कोविड का पहला मामला 15 मार्च 2020 को आया था. लॉकडाउन के दौरान (11 अप्रैल से 3 मई 2020 तक), कोविड के मामले नियंत्रित थे. लेकिन 21-26वें सप्ताह के दौरान कोरोना संक्रमण ने रफ्तार पकड़ी. कोविड-19 की पहली लहर में, 4 जिले देहरादून, हरिद्वार, उधम सिंह नगर और नैनीताल अधिक संवेदनशील थे, जहां 21-26वें सप्ताह के दौरान सबसे अधिक मरीज मिले. दूसरी ओर, इसी समय पर 3 पहाड़ी जिले चमोली, पौडी-गढ़वाल और रुद्रप्रयाग में कोरोना के सबसे कम केस मिले.  

इस रिसर्च में यह बताया गया कि 13 जिलों में राज्य का रुद्रप्रयाग जिला  99.21% रिकवरी दर के साथ, कोविड-19 बीमारी से उबरने के लिए शीर्ष पर था, इसके बाद पौडी गढ़वाल (98.49%) और पिथौरागढ (98.25%) नंबर दो और तीन पर थे. 

पहाड़ी इलाकों में कोरोना के कम खतरे की वजह

रिसर्च के अनुसार मैदानी क्षेत्रों में उच्च तापमान, जो उच्च आर्द्रता और उच्च यूवी विकिरण के लिए जिम्मेदार है, कोविड-19 मामलों में तेजी लाता है. साथ ही साथ पहाड़ी क्षेत्र ठन्डे होने के कारण पहाड़ी लोग सूर्य के अधिक संपर्क में रहते हैं और विटामिन डी की प्रचुरता होने के कारण, पर्वतीय जिले सबसे कम संवेदनशील पाए गए. बेहतर वेंटिलेशन और बेहतर धमनी ऑक्सीजन परिवहन भी पहाड़ी जिलों में कोविड-19 के प्रति कम संवेदनशीलता का कारण हो सकता है.

मालूम हो कि उत्तराखंड में कोविड रिकवरी रेट 96.41 फीसदी थी. इस स्टडी से यह बात सामने आई कि पहाड़ी जिला रुद्रप्रयाग में रिकवरी रेट सबसे अच्छा था. यहां 99.21% कोरोना मरीज ठीक हुए. इसके बाद पौडी गढ़वाल (98.49%) और पिथौरागढ (98.25%) बेहतर रिकवरी रेट वाले जिले थे. 

रिसर्च में यह बात सामने आई कि कोरोना के प्रसार को बढ़ाने में 20°C से ऊपर का तापमान- बढ़ी हुई आर्द्रता और उच्च यूवी विकिरण की वजह से जिम्मेदार है. पहाड़ों में सीमित नौकरी और बुनियादी ढांचा के अभाव में, बहुत से लोग विशेष रूप से युवा, देहरादून, रुद्रपुर, हरिद्वार जैसे मैदानी क्षेत्रों की ओर पलायन करते हैं.

परिणामस्वरूप, जनसंख्या घनत्व ज्यादा होने के कारण इन जिलों में अत्यधिक संक्रामक मामले आये और मौतें हुईं. साथ ही साथ, विटामिन डी कैल्शियम और हड्डी के होमियोस्टैसिस के साथ, अनुकूल इम्युनिटी को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. 

मैदानी क्षेत्र गर्म और आर्द्र हैं, और लोग अधिकतम सीमा तक सूरज की रोशनी से बचते हैं. इसके विपरीत पहाड़ी इलाके ठंडे होते हैं, कम आर्द्रता और कम यूवी विकिरण के साथ, लोग ज्यादा धूप के संपर्क में रहतें हैं जिससे लोगों मे विटामिन डी की भी प्रचुर मात्रा रहती है. इन सभी कारणों से, राज्य के पहाड़ी जिले कम संवेदनशील पाए गए. साथ ही साथ पहाड़ी जिलों में, कोविड-19 मामलों की कम संख्या होने का कारण बेहतर वेंटिलेशन, बेहतर धमनी ऑक्सीजन परिवहन, और वृद्धि हुई ऊतक ऑक्सीजनेशन भी हो सकता है. 


इस स्टडी के आधार पर भविष्य में कोरोना के खतरे को कम करने के लिए  सुबह की धूप लेने के साथ 5 सूत्री समाधान सुझाए गए-

1. सामाजिक दूरी और स्वास्थ्य सलाह 
2. व्यवहार/ गतिविधियों/ पहलों में सख्ती बरतने की जरूरत, पिछले कोरोनोवायरस के विनाशकारी प्रभाव के अनुसार, विशेषकर जून माह से 
3. पलायन की रोकथाम पर सावधानीपूर्वक ध्यान देना
4. टेलीमेडिसिन को अपनाना 
5.हेल्थ बुलेटिन, सोशल मीडिया और तकनीकी प्रगति की आम लोगों तक पहुंच।

रिसर्च में ये लोग थे शामिल
       
इस शोध-अध्ययन में, मुख्य रूप-रेखा ग्राफिक एरा पर्वतीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. (डॉ.) संजय जसोला और एस. डी. सी. फाउंडेशन के फाउंडर अनूप नौटियाल के साथ, ग्राफिक एरा पर्वतीय विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ फार्मेसी के प्रोफेसर, डॉ. प्रशांत गहतोड़ी ने रखी. डॉ. गौरव जोशी (फार्मेसी) लेखन एवं तैयारी से जुड़े रहे. डॉ. अक्षरा पांडे (कंप्यूटर विज्ञान) ने एक पायथन कमांड-लाइन उपयोगिता विकसित की और डेटा क्यूरेशन में शामिल थीं. डॉ. ओमदीप गुप्ता (प्रबंधन) द्वारा डेटा का आलोचनात्मक विश्लेषण किया गया.

यह रिसर्च पेपर जिस अंतर्राष्ट्रीय जर्नल 'कोरोनावायरस' में प्रकाशित हुई है उसका संचालन बेंथम साइंस नीदरलैंड्स द्वारा किया जाता है. इसके प्रधान संपादक प्रोफेसर जीन-मार्क सबेटियर हैं, जो फ्रांस में इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोफिजियोपैथोलॉजी में शोध निदेशक भी हैं. बताया गया कि लगभग एक साल तक चले प्री-रिव्यू प्रोसेस के बाद प्रो. जीन-मार्क सबेटियर ने उत्तराखंड में कोविड-19 पर केंद्रित इस स्टडी को 'कोरोनावायरस' जर्नल में प्रकाशित किया.

यह भी पढ़ें - राजस्थान में कोरोना के खतरनाक वेरिएंट JN-1 के 4 मरीज मिले, एक की हो चुकी मौत; जानें यह कितना घातक