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This Article is From Aug 09, 2023

जोधपुर : इस बार पाकिस्तानी टिड्डी नहीं, भारत की 'ग्रासहॉपर' बनीं फसलों की दुश्मन, किसान सतर्क

विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रासहॉपर टिड्डी की ही एक अन्य प्रजाति होती है जो टिड्डी की तुलना में फसलों को कम नुकसान पहुंचाती है.

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जोधपुर : इस बार पाकिस्तानी टिड्डी नहीं, भारत की 'ग्रासहॉपर' बनीं फसलों की दुश्मन, किसान सतर्क

पाकिस्तान के रास्ते ईरान से भारत आने वाली टिड्डियां हर साल किसानों की फसलों को भारी नुकसान पहुंचाती है. भारत और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंध होने के बावजूद टिड्डी नियंत्रण से जुड़ा यही एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर दोनों देशों के डेलीगेट्स प्रति वर्ष बॉर्डर क्रॉस मीटिंग कर एकसाथ बैठ टिड्डी नियंत्रण से जुड़े अपने कार्यो और जानकारियों को एक दूसरे के साथ साझा करते हैं. लेकिन इस बार क्लाइमेंट चेंज का असर भी टिड्डी के प्रजनन पर देखा गया है. इन सब के बावजूद इस बार पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में पाकिस्तान की टिड्डी की बजाए भारत की 'ग्रासहॉपर' का खतरा फसलों पर मंडरा रहा है. जहां हाल ही में जैसलमेर के रामदेवरा क्षेत्र में ग्रासहॉपर का बड़ा दल खेतो में देखा गया है.

विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रासहॉपर टिड्डी की ही एक अन्य प्रजाति होती है जो टिड्डी की तुलना में फसलों को कम नुकसान पहुंचाती है. जहां अगर उनके नियंत्रण की बात करें तो टिड्डी नियंत्रण का काम जहां भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन संचालित टिड्डी चेतावनी संघठन का है तो वहीं 'ग्रासहॉपर' पर नियंत्रण करने का कार्य राज्य सरकार के कृषि विभाग है टिड्डी चेतावनी संघटन के एक दल द्वारा जैसलमेर के रामदेवरा में  ग्रासहॉपर की पहचान करने के बाद राज्य सरकार को ग्रासहॉपर नियंत्रण के लिए लिखा पत्र भी भेजा गया है.

टिड्डी चेतावनी संगठन के सहायक निदेशक डॉ वीरेंद्र कुमार ने बताया कि अभी राजस्थान के रेगिस्तानी इलाकों में टिड्डी के पाए जाना मात्र एक अफवाह है. हाल ही में जैसलमेर के रामदेवरा क्षेत्र में स्थानीय किसानों ने हमसे संपर्क कर कहा कि गांव के कुछ खेतों में टिड्डिया पाई गई हैं. जहां हमने एक टीम को मौके पर भेजा और वहां निरीक्षण करवाया जहां निरीक्षण में पाया गया कि वहां टिड्डियां नही बल्कि टिड्डियों की अन्य प्रजाति 'ग्रासहॉपर' है.

ग्रासहॉपर दो धारी वाली होती है जो टिड्डी से अलग होती है और यह फसलों को टिड्डी की तुलना में कम नुकसान पहुंचाती है. टिड्डी का प्रकोप अभी रेगिस्तान में नहीं है. बीकानेर में कुछ क्षेत्र में एकल अवस्था में कुछ टिड्डिया जरूर पाई गई है. जो उतना आर्मफुल नही है उसे तो हमारे गिद्द और कौवे ही खा जाएंगे राजस्थान में झुंड में टिड्डियो के पाए जाने के फिलहाल कोई साक्ष्य नहीं है और अगले महीने तक भी टिड्डियो के आने की संभावना दूर-दूर तक नहीं है.

रेगिस्तान में दस्तक दे चुके ग्रासहॉपर के मंडराते खतरे की जानकारी देते हुए ड़ॉ.वीरेंद्र कुमार बताया कि ग्रासहॉपर नियंत्रण करने का कार्य राजस्थान सरकार के कृषि विभाग की जिम्मेवारी है जहां हमने वहां के कमिश्नर ,जॉइंट डायरेक्टर व एडिशनल डायरेक्टर को भी सूचित कर दिया है जो ग्रासहॉपर को नियन्त्रण करेंगे.

क्लाइमेट चेंज से टिड्डी के प्रजनन भी पड़ा असर 

टिड्डी चेतावनी संगठन के सहायक निर्देशक ड़ॉ. वीरेंद्र कुमार ने बताया कि हमारे विभाग द्वारा महीने में दो बुलेटिन प्रकाशित किए जाते हैं जहां उन बुलेटिन के आधार पर पूर्वअनुमान है कि अगले 15 दिनों तक कोई टिड्डी आने की संभावना नहीं है हम लंबे समय की भविष्यवाणी नहीं करके हर 15 दिन में एक बुलेटिन जारी करते हैं जहां अगर क्लाइमेट चेंज की बात करें तो क्लाइमेट चेंज का असर जरूर पड़ता है यह टिड्डियो का ब्रीडिंग टाइम चल रहा है टिड्डियो की प्रजनन का समय चल रहा है जहां बरसात के मौसम में जहां बलुई मिट्टी गीली(नमी) होती है वहां प्रजनन की संभावना अधिक होती है परंतु जब एडल्ट टिड्डिया होती है तभी अंडे बच्चे देंगे जहां अभी तक के रिसर्च में कहीं भी एडल्ट होने का समाचार नहीं है सिर्फ बीकानेर में 10 से 12 टिड्डिया जरूर देखी गई थी उससे भी कोई हानिकारक प्रभाव नहीं पड़ने वाला अभी टिड्डियो की कोई संभावना राजस्थान में नहीं है.

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