CBSE 12th Exam: हाल ही में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) की 12वीं की परीक्षा में फिजिक्स के प्रश्नपत्रों को लेकर आपत्तियां आईं और कहा गया कि वो कठिन और लंबे थे. लेकिन शिक्षा के घोर-व्यवसायीकरण के दौर में हजारों-हजार ऐसे विद्यार्थियों को भी सीनियर सेकेंडरी स्तर पर विज्ञान-गणित विषय का चयन करने की जबरन पात्रता प्रदान की जा रही है जो निश्चित तौर पर इस हेतु पात्र हैं ही नहीं. चूंकि शैक्षणिक-संस्थाओं को सीनियर-सेकेंडरी स्तर पर संस्था का विज्ञान-गणित विषय का परीक्षा-परिणाम भी बेहतर रखना है. अतः इस हेतु सामूहिक कर्तव्य-कृतघ्नता के तहत परीक्षा के दौरान विद्यार्थियों में होने वाले तनाव को दूर करने के नाम पर बोर्ड-परीक्षाओं के प्रश्न-पत्रों के स्तर के साथ छेड़छाड़ की गई और स्तरहीन प्रश्नपत्रों के निर्माण का एक लंबा दौर चला. इस दौर में सफल होने की पात्रता नहीं रखने वाले विद्यार्थी भी सफल हुए और तथाकथित तौर पर शिक्षण-संस्थाओं के 12वीं बोर्ड के परीक्षा-परिणामों पर प्रश्न चिह्न नहीं लगे.
इसके बाद, ये जबरन उत्तीर्ण हुए अथवा किए गए विद्यार्थी शैक्षणिक-व्यवसायिकता के चलते येन-केन प्रकारेण कुकुरमुत्तों की भांति खोल दिए गए इंजीनियरिंग-संस्थानों में दाखिल होने लगे. और फिर ग्रैजुएट-इंजीनियर्स की ऐसी नालायक खेप बाजार में पहुंचने लगी जिसने संपूर्ण उद्योग-जगत को हिलाकर रख दिया. इंजीनियरिंग-क्षेत्र में गुणवत्ता को लेकर सजगता एवं सख्ती बरती जाने लगी तो बेरोजगारी बढ़ गई. बेरोजगारी के चलते तथाकथित इंजीनियरिंग कॉलेज के नाम पर खोली गई दुकानों पर ताले लग गए तो इंजीनियरिंग शिक्षा क्षेत्र में खलबली मची.
जिम्मेदारों की कुंभकर्णी नींद पर भी इसका असर हुआ और फिर प्रारंभ हुआ सतही-विवेचना को छोड़कर गहन विश्लेषण का दौर.गहन विश्लेषण के समुद्र-मंथन से शिक्षा-सुधारों रूपी अमृत प्राप्त हुआ एवं नेशनल एजुकेशन पॉलिसी- NEP,2020 की नींव रखी गई और इसे समयबद्ध लागू करने के सकारात्मक प्रयास भी प्रारंभ हुए.
Photo Credit: PTI
क्वेश्चन पेपर पैटर्न में बदलाव का असर
एनईपी-2020 का मुख्य उद्देश्य शिक्षा-जगत में रटने की प्रवृत्ति को समाप्त कर योग्यता-आधारित शिक्षा प्रदान करना रहा. यहां तर्क, विश्लेषण-क्षमता, विभिन्न परिस्थितियों में ज्ञानोपयोग के तहत निर्णय लेने की क्षमता के आकलन पर कार्य होने लगा. पुरानी घिसी-पिटी आकलन विधियों को नई विधियों से चरणबद्ध तरीके से प्रतिस्थापित करने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई.
इस प्रक्रिया के तहत सेकेंडरी तथा सीनियर सेकेंडरी स्तर पर क्वेश्चन पेपर-पैटर्न में भी बदलाव किए गए. सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन-सीबीएसई द्वारा इस प्रक्रिया के तहत 12वीं बोर्ड के क्वेश्चन-पेपर्स में पहले 40%-और फिर 50%-प्रश्न योग्यता-आधारित प्रश्न दिए जाने का निर्णय लिया गया. इस निर्णय से प्रश्न-पत्रों के स्तर में अति-आवश्यक सुधार हुआ तो शैक्षणिक-व्यावसायिकता से जुड़े लोग बिलबिला उठे.
सीबीएसई के 12वीं-बोर्ड,2025 के फिजिक्स-विषय के प्रश्न पत्र को को लेकर वर्तमान समय में असंतोष के जो भाव उबाल मार रहे हैं उनका मूल कारण यही है. पात्र-विद्यार्थियों को तो आपत्ति है ही नहीं किंतु अपात्र-विद्यार्थियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ कर चांदी कूटने वाले उन सभी शैक्षणिक-व्यवसायियों को फिजिक्स के इस प्रश्नपत्र के स्तर को लेकर घोर आपत्ति है, क्योंकि दुकानें बंद होती नजर आती है. सीबीएस से आगामी भविष्य में केमिस्ट्री तथा मैथमेटिक्स विषयों के इस प्रकार के स्तरीय प्रश्नपत्रों की उम्मीद है ताकि शिक्षा-व्यवस्था में सुधारों की प्रक्रिया को वास्तविक धरातल पर उतर जा सके.
विज्ञान-गणित की आवंटन प्रक्रिया में बदलाव अनिवार्य
सीनियर सेकेंडरी स्तर पर विज्ञान और गणित विषय के आवंटन की राष्ट्रीय स्तर पर एक स्पष्ट नीति के निर्माण की वर्तमान में महती आवश्यकता है. सामाजिक-परिवेश तथा अभिभावकों की महत्वाकांक्षा के दबाव में कलाधर्मी-रचनाधर्मी, साहित्योन्मुखी विद्यार्थी को जबरन विज्ञान-गणित विषय आवंटित कर देना अधर्म ही है. एक चित्रकार, गायक, वादक, रंगकर्मी अथवा साहित्य में नैसर्गिक प्रतिभा एवं रुचि रखने वाले विद्यार्थी को इंजीनियरिंग क्षेत्र में जबरन धकेल देने की स्वार्थपरता को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता.
एक तार्किक एवं वैज्ञानिक विधि एवं निति द्वारा विज्ञान-गणित विषय का आवंटन किया जाना वर्तमान समय में अनिवार्य हो गया है. विषय-आवंटन के पश्चात स्कूली-स्तर पर नियमित एवं स्तरीय अध्यापन भी नितांत आवश्यक है. नियमित स्कूली अध्ययन की प्रक्रिया के दौरान केस-बेस्ड स्टडी के तहत विद्यार्थी की तार्किक एवं विश्लेषण-क्षमता का सतत विकास एवं स्तरीय प्रश्नपत्र से निरंतर आकलन भी अत्यंत आवश्यक है.
स्तरीय आकलन की इस सतत पद्धति से विज्ञान-गणित विषय का अध्ययन कर रहे विद्यार्थी बोर्ड-परीक्षाओं तथा इंजीनियरिंग प्रवेश-परीक्षा जेईई-मेन/एडवांस्ड में बेहतर तालमेल के साथ सम्मिलित हो सकेंगे. परीक्षा-संबंधित तनाव में निश्चित तौर पर कमी आएगी और वर्तमान समय में विद्यार्थियों की 'आत्महत्या' करने की बढ़ रही प्रवृत्ति पर भी निश्चित तौर पर अंकुश लगेगा.
ये भी पढ़ें-: अर्श से फर्श पर कोटा कोचिंग, कैसे हुआ पतन
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
लेखक परिचयः देव शर्मा कोटा स्थित इलेक्ट्रिकल इंजीनियर और फ़िज़िक्स के शिक्षक हैं. उन्होंने 90 के दशक के आरंभ में कोचिंग का चलन शुरू करने में अग्रणी भूमिका निभाई. वह शिक्षा संबंधी विषयों पर नियमित रूप से लिखते हैं.