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PHOTOS: क्या आपने भारत की सबसे बड़ी रॉक पेंटिंग देखी है?

Place To Visit In Bundi: राजस्थान के बूंदी शहर को 'छोटी काशी' के नाम से भी जाना जाता है. यहां की कुंड बावड़िया के साथ ही सुंदर शैल और भित्ति चित्र भी देश-विदेश में प्रसिद्ध हैं. इतना ही नहीं, भारत की सबसे बड़ी रॉक पेंटिंग (India's Largest Rock Painting) भी यहीं मौजूद है. मानव सभ्यता और उसके विकास की कहानी, भित्ती चित्रों के रूप में बूंदी के भीमलत में मौजूद विशाल चट्टानों पर आज भी मौजूद है. पढ़िए सलीम अली की ये रिपोर्ट.

  • बूंदी शहर से करीब 40 किलोमीटर दूर भीमलत की पहाड़ियों और जंगलों में मानव जाती का आश्रय स्थल इन चट्टानों में सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक और आर्थिक जीवन को प्रतिबिंबत करती कई तरह के भित्ती चित्र आज भी मौजूद हैं. जिले में करीब 20 किमी क्षेत्र में शैल चित्र श्रृंखला फैली हुई है. शृंखला रेवा नदी, मांगली नदी, घोड़ा पछाड़ नदी के चट्‌टानी कगारों पर स्थित है. इसमें हमें पाषाण काल, कृषि युग, लौह युग, ऐतिहासिक काल, जिसमें मौर्य काल, गुप्तकालीन सभ्यताओं व संस्कृतियों के बारे में चित्र व लेख से कई जानकारियां मिलती हैं.
  • इस शृंखला को खोजने का श्रेय बूंदी के पुरा अन्वेषक ओमप्रकाश शर्मा कुक्की को जाता है. शैल चित्रों में शिकार दृश्य, मानव आकृतियां, वन्यजीव, तीर कमान धारी मानव, सरी सर्प, मांडने, फंदे, चित्रित मंदिर, ज्योमीतिय डिजाइन, रथ, बैलगाड़ियां बनी हुई हैं. एनडीटीवी राजस्थान की टीम ने रॉक पेंटिंग को खोजने वाले कुकी और अन्य लोगों से बातचीत की, जहां उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से रॉक पेंटिंग को संरक्षण किए जाने के साथ-साथ विश्व मानचित्र पर शामिल करने की मांग की है.
  • जानकारी के अनुसार, ओमप्रकाश कुक्की बूंदी शहर की न्यू कोलोनी में स्थित अपने घर पर किराना की दुकान लगाया करते हैं. ओमप्रकाश को 1978 से प्राचीन सिक्के खोजने का शौक लगा और उनका यही शौक उनका जूनून बन गया. उन्होंने अपने खोजे हुए सिक्के दिल्ली स्थित राष्ट्रीय संग्रहालय में दिखाए. उनमें से एक सिक्का मौर्य साम्राज्य का निकला. वो सिक्का कुक्की को बाण गंगा की पहाड़ियों से मिला था. सिक्के दिखने के दौरान कुक्की ने पूरा संग्रहालय देखा. वहां पर रखी हुई पुरा महत्व की वस्तुओं को देखकर कुक्की को लगा ये चीजें तो में रोज ही नदी नालों और पहाड़ों में देखा करता हूं. लेकिन कुक्की को इन वस्तुओं के महत्व के बारे में पता नहीं था.
  • संग्रहालय देखने के बाद कुक्की को पूरा महत्व की वस्तुएं खोजने का शौक जाग्रत हो गया. इसी शौक के चलते 4 जून 1993 से आज तक कुक्की पूरा महत्व की वस्तुएं खोजने का काम करते हैं. कुक्की पुरा महत्त्व की वस्तुओं के साथ अब शैल चित्र भी खोजने लगे 9 अक्तूबर 1997 को कुक्की को पहला शैल चित्र प्राचीन रामेश्वर महादेव मंदिर के पहाड़ी नाले की गुफा में मिला. तब से उनका शैल चित्रों की खोज का अभियान लगातार जारी है. अब तक कुक्की बूंदी और भीलवाडा जिले के 97 अलग अलग क्षेत्रों में शैलचित्रों की खोज कर चुके हैं. यह उनका राष्ट्रीय रिकॉर्ड है.
  • कुक्की ने जिले के गरड़दा, पलकां, कंवरपुरा, धनेश्वर, केवड़िया, मोहनपुरा का पठान, रामेश्वरम सहित टोंक व भीलवाड़ा जिले की सीमाओं में शैल चित्रों की खोज की है. कुक्की द्वारा खोजे गए शैल चित्रों में पक्षी पर सवार मानव, वन्यजीवों के चित्र प्रमुख हैं. वहीं कुछ स्थानों पर वन्यजीवों का शिकार करने के शैल चित्र भी हैं. इससे अलग शैल चित्रों में चित्रित मंदिर पहली बार देखने में आए हैं, जो गरड़दा में स्थित हैं.
  • अश्वनी कुक्की बताते हैं कि मेरे द्वारा खोजी गयी शैल चित्रों में वन्यजीव एवं मानव आकृतियां मिली हैं. इन चित्रों में लंबे काले बालों के साथ लंबी एवं इकहरी है जो वर्षो पुरानी प्रतीत होती है. कुछ रोक पेंटिंग मानव आकृतियां झुंड में हैं जो एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए हैं और आगे बढ़ते हुए नजर आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि इन आकृतियों को बनाने में तेज रंगों का प्रयोग किया है. इन चित्रों में पीला, गुलाबी, गैरु, गहरा लाल एवं कत्थई रंग का प्रयोग किया है. कुक्की के अनुसार करीब शैल चित्र 20 हजार साल पुराने प्रतीत होते हैं जो खोज में मध्य पाषण काल एवं लघु पाषाण काल में बनाया जाना प्रतीत हो रहा है.
  • कुक्की ने बताया कि इन गुफाओं में मैंने अपने आप को किसी पाषाण कालीन कला दीर्घा में खड़ा महसूस किया. अजीब दृश्य देखकर मैं हैरान था. नजदीक जाकर देखा तो पत्थर के औजार एवं औजार बनाने के कारखाने के अवशेष भी मिले हैं. वर्तमान में कुक्की ने सारे खोजे गए अपने शैल चित्रों को घर में ही सजो हुए रखा है. लेकिन अब एक एक कर धीरे धीरे प्रशासन को उनके द्वारा खोजी गयी शैली को सोपते जा रहे हैं. सरकार से कुक्की मांग कर रहे है कि उनके सरकार आर्थिक मदद दे ताकि वह और कई खोज कर सकें. वर्तमान में कई विभागों मंत्रियों के चक्कर कुक्की लगा चुके है लेकिन केवल आश्वाशन ही उन्हें मिला है
  • इन चित्रों की खास बात यह है कि बड़े आकार के रथ में बैलों सहित हिरण भी जाते हुए दिखाई देते हैं. इन चित्रों में शेर, बब्बर शेर के चित्र भी शामिल हैं. इससे यह प्रमाण मिलता है कि यहां के जंगलों में शेर के साथ-साथ बब्बर शेर भी मिलते थे. वर्तमान में बब्बर शेर गुजरात के गिर के जंगल में ही दिखाई देते हैं. यह चित्र हजारों की संख्या मिले हैं, जो कि तत्कालीन समाज की जीवन शैली को दृष्टिगत करते हैं. शैल चित्र लाल, चटक लाल, कथई, गैरू, पीला, सफेद, काला और हरे रंगों से निर्मित हैं. हरे रंग के शैल चित्र दुर्लभ माने जाते हैं. बूंदी के बरड़ क्षेत्र में हरे रंग के शैल चित्र विश्व में सबसे अधिक मात्रा में मिले हैं.