Narpat Singh Rajpurohit: राजस्थान के पश्चिमी जिले बाड़मेर के भारत-पाक अंतर्राष्ट्रीय सीमा के नजदीकी गांव ढोक निवासी नरपत सिंह राजपुरोहित के नाम से ही नक्सली कांप उठते है. नरपत सिंह राजपुरोहित नक्सलियों से लोहा लेकर वीरता से उन्हें मार गिराने और समर्पण करने के लिए मजबूर करने के लिए गणतंत्र दिवस के अवसर पर दो-दो राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. बता दें, नरपत सिंह राजपुरोहित एसएसबी डिप्टी कमांडेंट के पद तैनात है. नरपत सिंह के दादा ऐसे पहले सिविलयन थे जिन्हें सरकार ने शौर्य चक्र से सम्मानित किया था.
कुख्यात नक्सली राजन से मुठभेड़ के लिए मिला पुरस्कार
नरपत सिंह राजपुरोहित को जुलाई 2020 में कुख्यात नक्सली राजन से मुठभेड़ लिए राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार दिया जा रहा है. राजन पर 2012 में हिंदी फिल्म चक्रव्यूह बन चुकी है और 2 फरवरी 2022 को नरपत सिंह राजपुरोहित ने अपनी टीम के साथ नक्सलियों के साथ लंबी लड़ाई लड़ी, और कई नक्सलियों को मार गिराया. जबकि बचे हुए नक्सलियों ने आत्मसमर्पण कर दिया. राजपुरोहित को दोनों खतरनाक ऑपरेशन में बहादुरी से नक्सलियों से लोहा लेने के लिए राष्ट्रपति वीरता पुरस्कार से नवाजा जा रहा है.
2018 और 2020 में भी मिला था वीरता पुरस्कार
इससे पहले नरपत सिंह राजपुरोहित ने 28 जुलाई 2018 को झारखंड के दुमका में अपने 10 जवानों के साथ एक ऑपरेशन को लीड किया था. वहां 2007 से सक्रिय कुख्यात और खतरनाक नक्सली दसनाथ देहरी और अनुज पहाड़िया को करीब 2 घंटे की मुठभेड़ के बाद मार गिराया था. नरपत सिंह राजपुरोहित के नेतृत्व में उनकी टीम ने बड़ी 20 नक्सलियों का बहादुरी से मुकाबला किया था और 2020 में भी इसी तरह के खतरनाक ऑपरेशन को लीड किया था.
नरपत सिंह राजपुरोहित अपनी बटालियन के हीरो माने जाते हैं. वर्तमान ये झारखंड के नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में तैनात हैं कुछ समय पहले इन्होंने अपनी जान को जोखिम में डालकर आठ नक्सलियों को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया था. झारखंड एवं ओडिशा के नक्सलवाद से प्रभावित इलाकों में नरपत सिंह के ख़ौफ़ से माओवादी समर्पण कर रहे हैं या फिर वे इलाका ही छोड़ रहे हैं.
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नरपत सिंह की तैनाती से नक्सली भाग रहे है या आत्मसमर्पण कर रहे है
नरपत सिंह की अदम्य साहस से दुश्मनों को धूल चटाने में सबसे आगे रहते है. उनके अब तक के सेवाकाल में कई नक्सली को सरेंडर करने पर मजबूर कर दिया. राजपुरोहित की झारखंड एवं ओडिशा में तैनाती के बाद नक्सली प्रभावित इलाकों में उनके खौफ से नक्सली या तो सरेंडर कर रहे हैं या फिर इलाका ही छोड़ कर भाग रहे हैं.
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दादा और गांव के सरपंच से प्रेरित होकर चुनी देश सेवा
नरपत सिंह राजपुरोहित बाड़मेर के भारत-पाकिस्तान की सीमा के पास के गांव ढोक के रहने वाले हैं. 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुई जंग में उनके गांव से 10 लोग भारतीय सेवा को रसद पहुंचाने के लिए साथ गए थे. भारतीय सेना ने पाकिस्तान को युद्ध में हराते हुए उनकी सीमा में प्रवेश किया था. 13 महीने सेना को पाकिस्तान के इलाकों में ही पड़ाव डालकर रुकना पड़ा था. इस दौरान नरपत सिंह के दादा और उनके गांव के 10 लोग सेना के साथ 13 महीने साथ ही रुक गए थे. युद्ध समाप्त होने के बाद नरपत सिंह राजपुरोहित के गांव के सरपंच चतुर सिंह ढोंक को शौर्य चक्र दिया गया था. शौर्य चक्र सेना के जवानों को दिया जाता है. लेकिन चतर सिंह पहले सिविलियंस थे जिन्हे शौर्य चक्र दिया गया था. उन्हीं के युद्ध के किस्सों ने नरपत सिंह को सेना में जाने के लिए प्रेरित किया.
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