Chandipura Virus: देशभर में चांदीपुरा वायरस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. यह वायरस धीरे-धीरे राजस्थान में भी अपने पैर पसार रहा है. हाल ही में पूरे भारत में इस बीमारी से लगभग 44 मरीजों की मौत हो चुकी है. वहीं, 133 नए मामले दर्ज किए गए हैं.जून की शुरुआत में गुजरात में 15 साल के एक बच्चे में इसका पहला मामला सामने आया था. धीरे-धीरे ये आंकड़े बढ़ने लगे, 20 जुलाई को एईएस के 78 मामले सामने आए हैं, जिनमें से 75 मामले गुजरात के 21 जिलों से हैं इसके बाद राजस्थान इसके 6 मामले सामने आए है जिसमें से 2 की मौत चांदीपरा वायरस से मानी जा रही है.
जरात के बाद सबसे ज्यादा राजस्थान ग्रसित
वहीं इस बीमारी से गुजरात के बाद सबसे ज्यादा राजस्थान ग्रसित हुआ है.गुजरात में इसके 133 मामले सामने आए है.इनमें से 48 बच्चों की मौत हो चुकी है. जिसमें से 37 मौतें इसी वायरस से हुई है.वहीं राजस्थान में 6 मामलो में 2 मौते इसी वायरस से हुई है. मौतों के बढ़ते आंकड़ों के बाद से अब लोग लगातार इस वायरस को लेकर इसी चिकित्सीय सलाह लेना शुरू कर चुके है.
एडीज मच्छर में पाए जाते चांदीपुरा वायरस
चांदीपुरा वायरस के खतरनाक होने से और इसके संक्रमण को फैलने के चांसेस कई गुना बढ़ गए है. इसे लेकर डॉक्टरों की राय जाननी शुरू की गई. जिसमें उदयपुर के पेसिफिक मेडिकल कॉलेज के सीनियर रेजीडेंट डॉ. अर्पित ओबेरॉय से इस वायरस के फैलने, लक्षण और बचाव के बार में जानकारी दी है. डॉ. ओबेरॉय ने बताया कि चांदीपुरा वायरस बेहद खतरनाक है. यह ज्यादातर 12 से 14 साल तक के बच्चों में पाया जाता है.इसमें बच्चों को सबसे पहले बुखार, सिर दर्द, बदन दर्द, डायरिया, उल्टी और फ्लू जैसे लक्षण दिखाई देते हैं. इसमें तेज इंसेफेलाइटिस भी होता है. जो दिमाग में सूजन पैदा करने की एक स्थिति है.उन्होंने बताया कि चांदीपुरा वायरस एक तरह का आरएनए वायरस है. यह मादा फ्लेबोटोमाइन मक्खी से फैलता है. इसके पीछे मच्छर की एक प्रजाति एडीज जिम्मेदार हैं.
बचाव
इससे बचने के लिए बच्चों को पूरी बाजू के कपड़े पहनाएं. उनके शरीर को पूरी तरह से ढककर रखें.अगर मरीज को तेज बुखार जैसे लक्षण दिखाई दें तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें. इससे बचने के लिए साफ-सफाई का उचित ध्यान भी दें.
कैसे पड़ा चांदीपुरा नाम
बता दें कि 1966 में महाराष्ट्र के चांदीपुरा से इसका पहला मामला सामने आया था, जिसके बाद से इसका नाम चांदीपुरा वायरस रख दिया गया। इसके बाद 2004 से 2006 और 2019 में इसके मामले आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात से सामने आने लगे.