Divyakriti Singh Rathore: एशियन गेम्स 2023 में भारत ने ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की. भारत ने एशियन गेम्स में अभी तक सबसे बेहतर प्रदर्शन करते हुए 107 मेडल पक्के किए. इस नायाब प्रदर्शन के बाद भारतीय एथलीट अब चीन के हांगझोउ से वापस देश लौट आए हैं. भारत आने के बाद एथलीटों से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुलाकात कर उनका हौसला बढ़ाया. दिल्ली में पीएम मोदी से मुलाकात के बाद अब भारतीय एथलीट अपने-अपने घर लौट रहे हैं. एशियन गेम्स 2023 में भारत ने 41 साल बाद घुड़सवारी में गोल्ड मेडल हासिल किया. घुड़सवारी में गोल्ड मेडल जीतने वाली टीम में जयपुर की रहने वाली दिव्यकृति सिंह राठौड़ भी शामिल हैं. एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने के बाद दिव्यकृति सिंह दो साल बाद अपने घर लौट कर आई. जयपुर आने पर दिव्यकृति सिंह का जोरदार स्वागत किया गया.
दिव्यकृति के घर आने पर उनके परिजन, नाते-रिश्तेदार सहित आस-पास के लोगों में खुशी के भाव दिखे. मालूम हो कि दिव्यकृति सिंह मूल रूप से राजस्थान के नागौर ज़िले के पीह गांव की रहने वाली हैं. हालांकि अब उनका परिवार जयपुर में रहता है.
बुधवार को जयपुर पहुंचीं दिव्यकृति सिंह का स्थानीय लोगों ने बाजे-गाजे के साथ जोरदार स्वागत किया. बेटी की सफलता देख पिता विक्रम सिंह, मां सहित अन्य परिजनों के आंखों में खुशी के आंसु आ गए. मालूम हो दिव्यकृति की ट्रेनिंग के लिए पिता ने अपना घर तक बेच दिया था.
विदेश में ट्रेनिंग के बाद दिव्यकृति ने एशियन गेम्स में गोल्ड जीता है. दिव्यकृति और उनकी टीम ने भारत को 41 साल के बाद घुड़सवारी के क्षेत्र में गोल्ड दिलवाया हैं. दिव्यकृति की कहानी बिल्कुल अलग है, हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि हमारे देश में बेटियों से ज्यादा बेटों पर विश्वास किया जाता है लेकिन पिता विक्रम सिंह ने यह भरोसा अपनी बेटी दिव्यकृति पर जताया और इतिहास बन गया.
जयपुर की 23 साल की दिव्याकृति ने देश का नाम रोशन किया है. दिव्यकृति जब 7th क्लास में थी, तब पोलो प्लेयर पिता विक्रम सिंह के साथ उन्होंने घुड़सवारी सीखी. कुछ ही समय में अपने स्कूल में घुड़सवारी की कप्तान बनी. बाद में दिव्यकृति को ट्रेनिंग के लिए यूरोप जाना पड़ा, खर्चा बहुत ज़याद था.
दिव्यकृति के पिता ने उन्हें बिना किसी सरकारी बजट और बिना कोई आर्थिक सहयोग के ट्रेनिंग दी. आज उन्होंने पिता की लगन और खुद की मेहनत से यह मुकाम हासिल किया. क्योंकि उनका कहना है सिर्फ बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ ही नहीं. लेकिन बेटियों को खेल के मैदान में भी आगे बढ़ाओ.
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