भाजपा के लिए चुनौती बनेंगी हाड़ौती की ये 6 सीटें, समझें पूरा गणित

विधानसभा चुनाव 2023 में ह़ड़ौती की 17 सीटों में से 6 सीटें भाजपा के लिए चुनौती बन सकती हैं. इनमें हाड़ौती में बूंदी जिले की हिंडोली, बारां जिले की अंता, बारां अटरू व किशनगंज, कोटा की कोटा उत्तर और सांगोद सीट शामिल है. 

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प्रतीकात्मक तस्वीर

राजस्थान में एक-एक दिन गुजरने के साथ ही भाजपा-कांग्रेस समेत सभी पार्टियां चुनावी मैदान पर अपनी रणनीति के दांव चल रही हैं.  इस बीच एनडीटीवी राजस्थान की टीम हाड़ौती की 17 विधानसभा सीटों की पड़ताल किया. फिलहाल, हाडोती में 17 सीटों में से 10 पर बीजेपी का कब्जा है और कांग्रेस पिछले चुनाव में 7 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव 2023 में 17 सीटों में से 6 सीटें भाजपा के लिए चुनौती बन सकती हैं. इनमें हाड़ौती में बूंदी जिले की हिंडोली, बारां जिले की अंता, बारां अटरू व किशनगंज, कोटा की कोटा उत्तर और सांगोद सीट शामिल है. 

गौरतलब है राजस्थान विधानसभा चुनाव 2023 की रणभेरी बज चुकी है. राजस्थान में आगामी 25 नवंबर को एक चरण में मतदान कराए जाएंगे और मतों की गणना 3 दिसंबर को कराए जाएंगे. राजस्थान में मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने चुनाव की तारीखों के ऐलान के तुंरत बाद ही 41 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर दी. हालांकि कांग्रेस में प्रत्याशियों के चयन को अभी भी मंथन जारी है. संभावना है कि कांग्रेस आज रात को प्रत्याशियों की पहली सूची जारी कर सकती है. 

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 बून्दी की हिंडोली सीट

 हिंडोली सीट पर बीते 5 चुनाव में कांग्रेस को चार बार सफलता मिली है, जबकि भाजपा एक बार 2008 में कामयाब हुई है। 2013 में जब भाजपा तिहाई बहुमत लेकर आई थी, तब भी यह सीट कांग्रेस के खाते में गई थी. यहां से अशोक चांदना ने चुनाव जीता था. इसके बाद 2018 में भी वे यहां से विधायक बने हैं. केवल 2008 में भाजपा के प्रभु लाल यहां से विधायक बन पाए थे. इससे पहले 2003 में हरिमोहन शर्मा, 1998 में रमा पायलट और 1993 में शांति धारीवाल भी इस सीट से जीत चुके हैं.

कोटा की सांगोद सीट 

परिसीमन के बाद नई सीट बनी सांगोद में कांग्रेस का दबदबा रहा है. यहां से दो चुनाव पूर्व मंत्री भरत सिंह जीते हैं. उन्होंने 2008 और 2018 में जीत दर्ज की, जबकि 2013 में यहां से बीजेपी से हीरालाल नागर विधायक बने थे. इससे पहले यह सीट दीगोद थी, जिनमें दोनों बार कांग्रेस विजयी रही थी. 2003 में भरत सिंह ने भाजपा के दिग्गज नेता ललित किशोर चतुर्वेदी को हराया था. इससे पहले 1998 में यहां से भाजपा के विजय सिंह को कांग्रेस के हेमंत कुमार ने हराया था. 

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कोटा उत्तर सीट पर 3 बार जीते शांति धारीवाल

कोटा नॉर्थ पर भी कांग्रेस का दबदबा रहा है. परिसीमन के बाद यह दो हिस्सों में बंटी थी. इससे यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल ने कांग्रेस की तरफ से तीन चुनाव लड़े और 2008 व 2018 में जीत हासिल की है. 2008 में धारीवाल का मुकाबला सुमन श्रृंगी से हुआ था. वहीं 2013 में यहां से प्रहलाद गुंजल विधायक बने व 2018 के चुनाव में उन्हें हार मिली थी.

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बारां की अंता अंता में है कांग्रेस मजबूत

परिसीमन के बाद बारां की सीट से अलग हुई अंता में कांग्रेस मजबूत है. यहां से अभी तक तीन चुनाव कांग्रेस के प्रमोद जैन भाया ने लड़ा है, जिनमें 2013 में उन्हें हार मिली थी. वहीं, 2008 और 2018 में प्रमोद जैन भाया यहां से चुनाव जीते थे.

किशनगंज सीट पर रहा है कांग्रेस का दबदबा 

बारां जिले की किशनगंज सहरिया आदिवासी  बाहुल्य है. यहां पर कांग्रेस का दबदबा रहा है. बीते पांच चुनाव में बीजेपी केवल एक बार जीत पाई है. 1998 में कांग्रेस के हीरालाल ने बीजेपी के हेमराज मीणा को हराया था. इसके बाद 2003 के चुनाव में टिकट कटने से नाराज बीजेपी से बागी होकर हेमराज मीणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा. उन्होंने हीरालाल नागर को चुनाव हराया. वहीं बीजेपी प्रत्याशी मोहनलाल तीसरे नंबर पर रहे थे. 2018 में कांग्रेस ने निर्मला सहरिया को टिकट दिया और उन्होंने ललित मीणा को चुनाव हराया

परिसीमन के बाद बारां अटरू सीट पर हावी हुई कांग्रेस 

परिसीमन के बाद नई सीट बनी बारां अटरू में अधिकांश हिस्सा पहले की अटरू सीट का है. परिसीमन के पहले यहां पर बीजेपी का दबदबा था, लेकिन परिसीमन के बाद यहां कांग्रेस का दबदबा हो गया है. साल 1998 और 2003 के चुनाव में यहां से मदन दिलावर विधायक बने. उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी मदन महाराज को चुनाव हराया था. वहीं, परिसीमन के बाद यहां से तीन चुनाव में दो पर कांग्रेस जीती है. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पानाचंद ने पूर्व मंत्री भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल वर्मा को हराया था.

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