सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: रॉयल्टी टैक्स नहीं, राज्यों को खनन गतिविधियों पर टैक्स लगाने का अधिकार

राजस्थान सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने इस फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इससे राज्य सरकारों को रॉयल्टी से टैक्स लगाने का अधिकार प्राप्त होकर उन्हें आर्थिक रूप से बढ़ावा मिलेगा.

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सुप्रीम कोर्ट.

Rajasthan News: एक ऐतिहासिक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने 8:1 के बहुमत से निर्णय दिया कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है, जिससे राज्यों को खनन गतिविधियों पर रॉयल्टी टैक्स लगाने और वसूलने का अधिकार मिल गया है. इस फैसले को राज्य सरकारों के लिए एक महत्वपूर्ण राहत माना जा रहा है, क्योंकि इससे उन्हें आर्थिक रूप से लाभ होगा.

फैसले के प्रमुख बिंदु:

1. बहुमत का मत: बेंच ने 8:1 के बहुमत से स्पष्ट किया कि खनन कंपनियों द्वारा राज्य सरकारों को किए जाने वाले रॉयल्टी भुगतान टैक्स नहीं हैं. यह भेद महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका मतलब है कि राज्य इन रॉयल्टी पर अतिरिक्त टैक्स लगा सकते हैं.
  
2. विधायी क्षमता: फैसले में कहा गया कि राज्य विधानसभाओं के पास संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत खनिज-धारक भूमि पर टैक्स लगाने की विधायी क्षमता है, जिसे संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची II के प्रवेश 49 के साथ पढ़ा जाता है. इस प्रवेश के तहत राज्यों को भूमि और भवनों पर टैक्स लगाने का अधिकार है.

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3. खनिज हितों का निहित होना: बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि एक बार खनन पट्टा अनुबंध पर हस्ताक्षर होने के बाद, खनिजों में रुचि राज्य सरकार में निहित हो जाती है. इससे राज्यों की स्थिति और मजबूत होती है कि वे ऐसे हितों पर टैक्स लगा सकते हैं.

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शिव मंगल शर्मा का बयान

राजस्थान सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने इस फैसले पर संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि इससे राज्य सरकारों को रॉयल्टी से टैक्स लगाने का अधिकार प्राप्त होकर उन्हें आर्थिक रूप से बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने न्यायालय द्वारा राज्य विधायी शक्तियों की स्वीकृति पर जोर दिया, जो खनन क्षेत्र से बेहतर राजस्व उत्पन्न करने में सक्षम होगी.

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प्रवर्तनीय या प्रत्यावर्ती आवेदन

एक महत्वपूर्ण पहलू जो अभी भी विचाराधीन है, वह यह है कि यह फैसला भविष्य के लिए लागू होगा या अतीत के लिए. सुप्रीम कोर्ट बुधवार को इस मुद्दे पर विचार करेगी, जो राज्य सरकारों और खनन कंपनियों के लिए वित्तीय और कानूनी निहितार्थों को और स्पष्ट करेगी.

विपरीत मत

इस मामले में एकमात्र विपरीत मत जस्टिस बी.वी. नागरत्ना ने दिया. उन्होंने यह विचार व्यक्त किया कि रॉयल्टी भुगतान को टैक्स के रूप में माना जा सकता है. जस्टिस नागरत्ना का विपरीत मत इस मुद्दे की जटिलता और विवादास्पद प्रकृति को उजागर करता है, लेकिन बहुमत का मत कानूनी रूप से प्रभावी है.

फैसले के प्रभाव

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खनन उद्योग और राज्य सरकारों पर दूरगामी प्रभाव होंगे. रॉयल्टी को टैक्स न मानते हुए, यह फैसला राज्यों के लिए राजस्व उत्पन्न करने के नए रास्ते खोलता है. इससे खनन गतिविधियों से प्राप्त होने वाले टैक्स राजस्व में वृद्धि हो सकती है, जिसे विकास परियोजनाओं और सार्वजनिक कल्याण योजनाओं के लिए उपयोग किया जा सकता है.

इसके अलावा, न्यायालय द्वारा दी गई स्पष्टता यह सुनिश्चित करती है कि खनन रॉयल्टी और टैक्स को नियंत्रित करने वाला कानूनी ढांचा अधिक मजबूत और कम विवादास्पद हो. दूसरी ओर, खनन कंपनियों को अपनी संचालन और वित्तीय रणनीतियों की योजना बनाते समय इन अतिरिक्त टैक्स देनदारियों को ध्यान में रखना होगा.

पृष्ठभूमि

रॉयल्टी को टैक्स माना जाए या नहीं, यह भारतीय न्यायशास्त्र में एक लंबे समय से विवादास्पद मुद्दा रहा है. यह भेद राज्य सरकारों और खनन कंपनियों दोनों के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय निहितार्थ रखता है. इस मुद्दे को संबोधित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने बहुत जरूरी स्पष्टता प्रदान की है और खनन क्षेत्र में एक अधिक स्थिर नियामक वातावरण के लिए मार्ग प्रशस्त किया है.

निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट का यह बहुमत का निर्णय कि रॉयल्टी टैक्स नहीं है, राज्य राजस्व और खनन उद्योग के लिए महत्वपूर्ण प्रभाव वाला एक ऐतिहासिक निर्णय है. राज्यों को अब रॉयल्टी पर टैक्स लगाने का अधिकार मिलने के साथ, यह फैसला भारत के खनिज-समृद्ध राज्यों के वित्तीय परिदृश्य में एक नया अध्याय खोलता है. सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस फैसले के प्रवर्तनीय या प्रत्यावर्ती होने के बारे में आगामी विचार-विमर्श से इसके प्रभाव को और परिभाषित किया जाएगा.