मानसिक बीमारी को लेकर हुआ बड़ा खुलासा, देश में केवल 1 फीसदी लोग बताते हैं परेशानी

आईआईटी जोधपुर (IIT Jodhpur) की ताजा अध्ययन में खुलासा किया गया है कि भारत में केवल एक प्रतिशत लोग ही अपनी मानसिक बीमारियों के बारे में बताते हैं. यानी केवल 1 प्रतिशत लोग देश में मानसिक बीमारी का इलाज कराने के लिए सामने आते हैं. 

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मानसिक स्वास्थ्य पर आईआईटी जोधपुर की रिपोर्ट

Jodhpur: मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा वैश्विक स्तर पर प्रमुख स्वास्थ्य मुद्दों में से एक हैं. जहां भारत आत्महत्या की घटनाओं के मामले में विश्व में पहले पायदान हैं. वहीं, देश में मानसिक बीमारी (Mental Illness) को लेकर बड़ा खुलासा हुआ है. आईआईटी जोधपुर (IIT Jodhpur) की ताजा अध्ययन में खुलासा किया गया है कि भारत में केवल एक प्रतिशत लोग ही अपनी मानसिक बीमारियों के बारे में बताते हैं. यानी केवल 1 प्रतिशत लोग देश में मानसिक बीमारी का इलाज कराने के लिए सामने आते हैं. 

इस अध्ययन को करने के लिए नेशनल सैंपल सर्वे 2017-2018 के 75वें राउंड से मिले आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया था. यह सर्वे पूरी तरह से लोगों की सेल्फ रिपोर्टिंग पर आधारित था सर्वे के लिए कुल 5,55,115 व्यक्तियों के आंकड़े एकत्रित किए गए थे. जिनमें से 3,25,232 लोग ग्रामीण क्षेत्र से और 2,29,232 लोग शहरी क्षेत्र से थे. सर्वे के लिए प्रतिभागियों का चयन रैंडम तरीके से 8,077 गांवों और 6,181 शहरी क्षेत्रों से किया गया था. जहां मानसिक बीमारियों से जुड़े 283 मरीज ओपीडी में थे और 374 मरीज अस्पताल में भर्ती थे. यह अध्ययन मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के लिए किए गये खर्च पर भी रोशनी डालता है. अध्ययन के मुताबिक उच्च आय वर्ग वाले व्यक्ति, कम आय वर्ग वाले लोगों की तुलना में स्वास्थ्य समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए 1.73 गुना ज्यादा इच्छुक थे. यह अध्ययन 'इंटरनेशनल जर्नल ऑफ मेंटल हेल्थ सिस्टम्स' में प्रकाशित हुआ है. इसे आईआईटी जोधपुर के स्कूल ऑफलिबरल आर्ट्स में सहायक प्रोफेसर डॉ. आलोक रंजन और स्कूल ऑफ हेल्थ एंड रिहैबिलिटेशन साइंसेज ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी कोलंबस संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉ. ज्वेल क्रेस्टा ने मिलकर किया है.

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अध्ययन के कुछ प्रमुख निष्कर्ष

आईआईटी जोधपुर के इस अध्ययन से पता चला हैं कि देश में मौजूद कुल मानसिक रोगियों में ऐसे रोगियों की संख्या काफी कम है. जो खुद से बीमारी की रिपोटिंग के लिए आगे आते हैं. यह असमानता मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों की पहचान करने और उनका समाधान खोजने की दिशा में एक बड़े अंतर की ओर इशारा करती है. शोध ने एक सामाजिक-आर्थिक विभाजन को उजागर किया, जिसमें भारत में सबसे गरीब लोगों की तुलना में सबसे अमीर आय वर्ग की आबादी में मानसिक विकारों की स्व-रिपोटिंग 1.73 गुना अधिक थी. मानसिक विकारों के लिए अस्पताल में भर्ती केवल 23 प्रतिशत व्यक्तियों के पास राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य बीमा कवरेज था. अध्ययन से पता चला हैं कि अस्पताल में भर्ती और ओपीडी दोनों के लिए खर्च निजी क्षेत्र के अस्पतालों में सार्वजनिक क्षेत्र अस्पतालों की तुलना में कहीं ज्यादा था.

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मानसिक बीमारी से जुड़ी बात करने से झिझकते हैं लोग: डॉ. रंजन

मानसिक रोगियों में सेल्फ रिपोटिंग को लेकर झिझक के बारे में आईआईटी जोधपुर के स्कूल ऑफ लिबरल आर्ट्स (एसओएलए) के सहायक प्रोफेसर डॉ. आलोक रंजन ने बताया कि हमारे समाज में अभी भी मानसिक बीमारी से जुड़े मुद्दों पर बात करने में या इसका इलाज करवाने को लेकर लोग झिझकते हैं. मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों को ऐसा लगता है कि अगर उनकी बीमारी के बारे में सबको पता चल गया तो समाज में लोग उनके बारे में क्या सोचेंगे. इसलिए हमें समाज में ऐसा माहौल बनाना होगा कि मानसिक बीमारियों से पीड़ित लोग बिना किसी झिझक के अपनी बीमारी के बारे में बात कर सके और इलाज के लिए आगे आ सकें.

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