Right to Information: पीसीसी चीफ गोविंद सिंह डोटासरा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर केंद्र सरकार पर सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून को कमजोर करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि 12 नवंबर 2005 को यूपीए सरकार के शासनकाल में आरटीआई कानून बनाया गया था, जिससे हर नागरिक को सूचना का अधिकार मिला.
डोटासरा ने बताया कि यूपीए के 10 साल के कार्यकाल में कई अहम कानून बनाए गए, जिनमें मनरेगा, शिक्षा का अधिकार, भूमि अधिग्रहण कानून और खाद्य सुरक्षा गारंटी अधिनियम शामिल हैं. इन कानूनों ने आम आदमी के अधिकारों को मजबूत किया. आरटीआई जैसे कानून ने हर क्षेत्र में पारदर्शिता लाई और लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक किया.
''एनडीए सरकार के आने के बाद से ही RTI कानून पर हमले हुए''
इससे सरकारी योजनाओं का लाभ समय पर आम जनता तक पहुंचना सुनिश्चित हुआ. उन्होंने चिंता जताई कि एनडीए सरकार के आने के बाद से ही आरटीआई कानून पर हमले शुरू हो गए. डोटासरा ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार संशोधन के नाम पर इस कानून को कमजोर करने की कोशिश कर रही है.
‘व्यक्तिगत जानकारी' देने पर रोक लगाई गई''
डोटासरा ने बताया कि 2019 में आरटीआई आयुक्तों के पांच साल के कार्यकाल को संशोधित किया गया और उनकी सेवा शर्तों में बदलाव किया गया. वर्ष 2023 में एक और संशोधन कर ‘व्यक्तिगत जानकारी' देने पर रोक लगाई गई, जिसकी आड़ में जनहित से जुड़ी कई जानकारियां छिपाई जाने लगीं, यहां तक कि प्रधानमंत्री की डिग्री से जुड़ी जानकारी भी सार्वजनिक नहीं की गई.
''व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट की अब तक पालना नहीं हुई''
उन्होंने कहा कि मनरेगा और राजनैतिक चंदे जैसी सूचनाएं, जो सार्वजनिक होनी चाहिए थीं, उनको भी आरटीआई संशोधन के बाद छिपा लिया गया. डोटासरा ने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार नियुक्तियों से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की पालना नहीं कर रही. 2024 में 29 आयोगों में लंबित मामलों की संख्या 2019 के मुकाबले बढ़ी है, जबकि यूपीए सरकार के समय बनाए गए व्हिसल ब्लोअर प्रोटेक्शन एक्ट की अब तक पालना नहीं हुई है.
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