
Rajasthan: अजमेर के पंचशील नगर में एक मासूम बच्चा ईशान शर्मा मलबे में अपनी किताबें और खिलौने ढूंढ रहा था. उसके चेहरे पर असमंजस, आंसू और भय का मिश्रण था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसका घर क्यों तोड़ दिया गया, क्यों उसकी दुनिया अचानक बिखर गई. अजमेर विकास प्राधिकरण (ADA) ने 20 मार्च को सरकारी डॉक्टर गायत्री शर्मा और प्राइवेट डॉक्टर कुलदीप शर्मा के घर पर बुलडोजर चला दिया. बच्चे घर में अकेले थे और प्रशासनिक अधिकारियों ने उन्हें जबरदस्ती बाहर निकाला और फिर घर को मलबे में बदल दिया.
20 मार्च को अजमेर के पंचशील नगर में जो कुछ हुआ, उसने एक बार फिर सरकारी मशीनरी की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया. अजमेर विकास प्राधिकरण (ADA) की गलती की कीमत एक डॉक्टर परिवार को अपने आशियाने से चुकानी पड़ी, लेकिन सबसे त्रासद पहलू यह रहा कि इस कार्रवाई के केंद्र में मासूम बच्चे थे. सवाल यह उठता है कि जब किसी सरकारी विभाग की गलती से स्थिति उत्पन्न हुई थी, तो फिर इसका जवाब बुलडोज़र से देना कितना न्यायसंगत था?
गलती कहां हुई?
यह पूरा मामला 2021 में हुई एक नीलामी से जुड़ा है. डॉक्टर कुलदीप शर्मा के रिश्तेदार डॉ. नितिन दरगड़ ने 487 वर्ग मीटर का भूखंड खरीदा था, लेकिन गलती से 90 वर्ग मीटर अतिरिक्त जमीन भी सौंप दी गई. जब दरगड़ ने भवन निर्माण की अनुमति मांगी, तब एडीए को अपनी गलती का एहसास हुआ और अनुमति देने से इनकार कर दिया. इसके बावजूद निर्माण हुआ, जिसे अब गैर-कानूनी करार दिया गया. सवाल यह है कि अगर प्रशासन की गलती से अतिरिक्त जमीन दी गई थी, तो इस गलती की सजा एक परिवार को क्यों भुगतनी पड़ी? और अगर निर्माण अवैध था, तो क्या इसे हटाने का कोई मानवीय तरीका नहीं हो सकता था?
क्या यह न्याय है या प्रशासनिक क्रूरता?
न्याय का तकाज़ा यह था कि अगर निर्माण अवैध था, तो संबंधित पक्ष को पर्याप्त समय और अवसर देकर समाधान निकाला जाता. लेकिन इसके बजाय, अचानक पुलिस बल और जेसीबी के साथ पहुंचकर घर तोड़ दिया गया. इससे भी अधिक भयावह यह रहा कि जब कार्रवाई हुई, तब घर में केवल छोटे बच्चे मौजूद थे. उन्हें जबरन घर से बाहर निकाला गया और उनकी आंखों के सामने उनका आशियाना ध्वस्त कर दिया गया. ज़रा सोचिए, उन मासूमों के मन पर इस घटना का क्या प्रभाव पड़ा होगा? प्रशासन से यह सवाल किया जाना चाहिए कि क्या नियम लागू करने के नाम पर मानवीय मूल्यों को ताक पर रखना सही है?
क्या प्रशासन मानवीय दृष्टिकोण नहीं अपना सकता?
यह कोई पहला मामला नहीं है जब प्रशासन ने अपनी ताकत दिखाने के लिए इस तरह की कार्रवाई की हो. हाल के वर्षों में सरकारी एजेंसियों द्वारा बुलडोजर का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. यह अब सिर्फ अवैध निर्माण तोड़ने का औजार नहीं रहा, बल्कि सत्ता के प्रदर्शन का प्रतीक बन गया है. सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन के पास वैकल्पिक समाधान नहीं हैं? क्या अदालत के जरिए या अन्य कानूनी प्रक्रियाओं से समाधान नहीं निकाला जा सकता था?

अगर गलती एडीए की थी, तो उसकी जवाबदेही भी तय होनी चाहिए थी. लेकिन यहां उल्टा हुआ. भुगतना डॉक्टर कुलदीप शर्मा और उनके परिवार को पड़ा. उन्हें ना सिर्फ बेघर कर दिया गया, बल्कि विरोध करने पर उनके साथ दुर्व्यवहार और मारपीट के आरोप भी लगे हैं. सवाल यह भी है कि क्या यह कार्रवाई किसी विशेष परिवार के खिलाफ एकतरफा नहीं थी?
प्रशासनिक अहंकार और जनता की पीड़ा
यह मामला सिर्फ एक घर की बर्बादी तक सीमित नहीं है. यह उस मानसिकता को दर्शाता है जहां जनता की समस्याओं का समाधान खोजने के बजाय ताकत का प्रदर्शन किया जाता है. सरकार और प्रशासन का असली उद्देश्य लोगों की भलाई और न्याय सुनिश्चित करना होता है, न कि भय पैदा करना. अगर इस मकान में अवैध निर्माण था, तो इसका समाधान बातचीत, कोर्ट के आदेश की व्यवस्था के साथ किया जा सकता था. लेकिन प्रशासन ने सबसे आसान रास्ता चुना—बुलडोजर भेज दो, मामला खत्म.
डॉ. कुलदीप शर्मा के आरोप
इस कार्रवाई के बाद डॉ. कुलदीप शर्मा ने गंभीर आरोप लगाए. उनका कहना है कि...
- कार्रवाई बिना किसी नोटिस के हुई.
- जब बुलडोजर चलाया गया, तब घर में उनके दो छोटे बच्चे थे.
- बच्चों को जबरदस्ती घर से बाहर निकाला गया और फिर जेसीबी से मकान ध्वस्त कर दिया गया.
- जब वे और उनकी पत्नी (सरकारी डॉक्टर) ड्यूटी से लौटे, तो उनके साथ मारपीट की गई.
- उन्होंने एडीए के अधिकारियों के निलंबन और दोषी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है.
विरोध और समर्थन में उतरे संगठन
डॉक्टर परिवार के साथ हुई इस कार्रवाई के खिलाफ अजमेर के प्राइवेट डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी. वहीं, राजस्थान ब्राह्मण महासभा भी समर्थन में कलेक्ट्रेट पर उतरी और दोषी अधिकारियों के निलंबन की मांग की.
संवेदनशीलता और संवाद क्यों नहीं?
इस घटना के बाद अजमेर के निजी डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी, राजस्थान ब्राह्मण महासभा ने विरोध प्रदर्शन किया, और सरकार को मजबूर होकर जांच के आदेश देने पड़े. लेकिन यह सवाल बरकरार है कि क्या प्रशासन को हर बार जनता का विरोध झेलने के बाद ही अपनी गलती का अहसास होता है? क्या यह बेहतर नहीं होता कि किसी भी विवादित मामले में पहले ही संवाद और मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाता?

सरकारी कागज़ों की गलतियां मानवीय भूल हो सकती हैं, लेकिन इनका समाधान बुलडोजर नहीं हो सकता. प्रशासन का काम सिर्फ नियम लागू करना नहीं है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करना है कि न्याय और मानवता बनी रहे. बुलडोजर से समाधान निकालने की प्रवृत्ति सिर्फ भय का माहौल बनाती है और लोगों का प्रशासन से विश्वास उठाती है.
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं
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