Pet Dog Love: पालतू जानवर जैसे कुत्ता, बिल्ली, खरगोश से लोगों का विशेष लगाव होता है. कई परिवार ऐसे हैं, जहां पालतू जानवर को परिवार के सदस्य जैसा माना जाता है. उसकी सुख-सुविधा का पूरा ख्याल रखा जाता है. अब तो कई शहरों में पालतू जानवर कुत्ता-बिल्ली के लिए बकायदा हॉस्पिटल और हॉस्टल तक बन गए हैं. पालतू जानवर भी अपने मालिकों पर जान झिरकते हैं. पालतू जानवरों की मौत पर कई दिनों तक परिवार में मातम छा जाता है. इस बीच पेट डॉग की मौत का एक हैरान करने वाला राजस्थान से सामने आया है. यहां एक पालतू कुत्तें की मौत पर उसके मालिक ने अखबार में बकायदा शोक संदेश छपवाया. पूरे विधि-विधान से उस कुत्ते का अंतिम संस्कार किया गया. कुत्ते की मौत से पहले मालिक ने उसके इलाज पर डेढ़ लाख रुपए भी खर्च किए.
पालतू कुत्ते से मालिक के प्रेम की अनूठी कहानी राजस्थान के चुरू जिले में सामने आई है. यहां मीकूं नामक पातलू कुत्ते की मौत पर उसके मालिक ने बकायदा अखबार में शोक संदेश तक छपवाया. पूरे विधि विधान के साथ उसका अंतिम संस्कार किया गया. वहीं अब उसके लिए तीये (परिजन की मौत के तीन दिन बाद होने वाली बैठक) भी की जा रही है.
चूरू जिले के बास ढाकान गांव की घटना
दरअसल यह कहानी है चूरू तहसील के गांव बास ढाकान की. गांव बास ढाकान के रहने वाले अरविन्द ढाका ने बताया कि मीकूं उसके परिवार और जीवन का हिस्सा बन गया था. जिसकी मंगलवार दोपहर करीब साढ़े 12 बजे सीएचएफ कंजेटिव हार्ट फैलीयर नाम की बीमारी की मौत हो गयी. ढाका ने बताया कि मीकूं की मौत पर उसे ऐसा महसूस हुआ की जैसे उसकी संतान या भाई की मौत हो गयी है. परिवार में अब मातम पसरा हुआ है. नम आंखों के साथ परिवार के लोगों के साथ मीकूं को अपने ही खेत में सुपुर्द ए खाक किया गया.
ढाका परिवार 2014 में खरीद कर लाए थे एक माह का पिल्ला
अरविन्द ढाका ने बताया कि वर्ष 2014 में जब मीकूं एक माह की थी. उसको हिसार से खरीद कर लाया था. धीरे-धीरे वह हमारे परिवार का एक हिस्सा बन गई. करीब डेढ़ साल पहले वह बीमार हुई जिसके बाद उसे हिसार में हिसार वेटनरी कॉलेज में दिखाया. जहां पशु चिकित्सक ने बताया कि मीकूं के कंजेटिव हार्ट फैलीयर नाम की बीमारी हो गई है. जिससे करीब सौ मीटर चलने के बाद ही उसकी सांस फूलने लग जाती थी.
डेढ़ साल में मीकूं के इलाज पर खर्च किए डेढ़ लाख रुपए
अरविंद ने आगे बताया कि काफी जांच करवाकर दवाई दिलायी गई. मगर फिर डॉक्टर ने बताया कि कुत्ते की उम्र करीब 14 से 15 साल ही होती है. जबकि मीकूं के उम्र का भी असर है. उन्होंने बताया कि जह मीकूं को पहली बार हिसार लेकर गये थे. तब करीब 40 हजार रूपए खर्च हुए थे. इसके बाद जब भी हिसार जाते है पर्सनल गाड़ी और दो प्रकार की टेबलेट के ही रुपए लगते थे. कुल मिलाकर उसके इलाज पर डेढ़ साल में करीब डेढ़ लाख रुपए खर्च किए. लेकिन हमलोग मीकूं को बचा नहीं सके.
रात में मेरे ही हाथ से खाना खाता था मीकूंः अरविंद
अरविंद ने आगे कहा कि आज भले ही वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उसकी याद ताउम्र हमारे साथ रहेगी. अरविन्द ढाका ने बताया कि मीकूं दिन के समय तो परिवार के लोगों के हाथ से खाना खा लेता था. मगर रात के समय केवल मेरे हाथ से ही खाना खाता था. किसी दिन में काम के सिलसिले में दूसरी जगह चला जाता. उस दिन मीकूं रात के समय खाना नहीं खाता था. फिर जब भी मैं घर पहुंचता खुद से पहले मीकूं को खाना खिलाता था.
अरविन्द ढाका खुद चूरू के नया बास में मेडिकल स्टोर चलाते है. उन्होंने बताया कि शाम को किसी भी समय जब वह घर जाता तो मीकूं के दरवाजे पर मेरा इंतजार करता. यहां तक की घर का मुख्य गेट भी वहीं खोलता था. आज मीकूं की बहुत याद आ रही है. उसके साथ बिताया हर लम्हा आंखो के सामने घूम रहा है. उसकी कमी इस जीवन में कभी भी पूरी नहीं होगी.
आखिर मीकूं को इतना क्यों मानता था ढाका परिवार
पालतू कुत्ते मीकूं को ढाका परिवार इतना क्यों मानता था इसकी भी एक दिलचस्प कहानी सामने आई. अरविंद ने बताया कि बात 2018 की एक रात की बात है. जब एक घर के लोग कमरे में सोये हुए थे तभी घर में काले रंग का कोबरा सांप घर में घुस गया. जो मेरे कमरे आ गया था. तभी मीकूं मेरे बेड के पास आकर जोर-जोर से भौंकने लगा. जिससे मेरी नींद खुली और फिर सांप को देखकर हम लोग सतर्क हुए. उन्होंने आगे कहा कि यदि उस रात मीकूं हमारे पास नहीं होता तो सांप कमरे में सो रहे परिवार के कई लोगों को काट सकता था. इस घटना के बाद मीकूं से परिवार के लोगों का लगाव और बढ़ गया.
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