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मूकबधिर बच्चों ने अपनी कला और हुनर से बनाया ऐसा समान, जापान से मिला 1.50 लाख का ऑर्डर

नेत्रहीन विकास संस्थान में रहने वाले ऐसे बच्चे अब अपनी कला का बेहतर प्रदर्शन करते हुए घरों के साज-सजावट के काम आने वाली कही बेहतरीन वस्तुओं को अपनी कला से नए स्वरूप में संजो रहे है. जो राजस्थान के साथ ही अन्य प्रदेशों में भी काफी पसंद किया जा रहा है.

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मूकबधिर बच्चों ने अपनी कला और हुनर से बनाया ऐसा समान, जापान से मिला 1.50 लाख का ऑर्डर
मूकबाधिर बच्चों ने किया कमाल.

Jodhpur News: कला किसी तरह से मोहताज नहीं होती है. इसका उदाहरण आपको कई जगहों पर मिल जाएगा. अब ऐसा ही एक उदाहरण जोधपुर की नेत्रहीन विकास संस्थान में रहने वाले 223 मूकबधिर बच्चों ने पेश किया है. जहां नेत्रहीन विकास संस्थान की स्थापना से ही संस्थान की अध्यक्ष सुशील बोहरा ऐसे बच्चों को नया जीवनदान देने का प्रण लिया था. जिन्हें कुदरत ने भी नकार दिया था और आज भी अपने इस प्राण को कायम रखा है. जहां नेत्रहीन बच्चों के साथ ही मूकबधिर बच्चों के जीवन को संवारने का दायित्व संभाल रही सुशीला बोहरा के अथक प्रयासों से मुखबधिर बच्चों को स्वावलम्बी बनाने की अनूठी पहल अब सार्थक हो रही है. 

जापान से मिला डेढ़ लाख का ऑर्डर

नेत्रहीन विकास संस्थान में रहने वाले ऐसे बच्चे अब अपनी कला का बेहतर प्रदर्शन करते हुए घरों के साज-सजावट के काम आने वाली कही बेहतरीन वस्तुओं को अपनी कला से नए स्वरूप में संजो रहे है. जो राजस्थान के साथ ही अन्य प्रदेशों में भी काफी पसंद किया जा रहा है. अभी हाल ही में जापान ने भी डेढ़ लाख से भी अधिक का ऑर्डर भी इस संस्थान को दिया है बच्चों द्वारा बनाए जा रहे हैं. इन सजावटी सामानों में हस्त निर्मित पेंटिंग से लेकर घरों पर लगाने वाली दीपक और हैंडीक्राफ्ट के प्रोडक्ट के अलावा देवी देवताओं की प्रतिमा और बंदरमाला के साथ ही कहीं सजावट के सामान भी शामिल हैं. जहां इनमें राजस्थान की संस्कृति से जुड़े प्रोडक्ट की भी देसी-विदेशी सैलानियों में काफी डिमांड देखी जाती है.

नौकरी करने वालों को भी पीछे छोड़ देंगे

नेत्रहीन विकास संस्थान की अध्यक्ष सुशील बोहरा ने बताया कि सभी प्रोडक्ट मुखबधिर बच्चों के द्वारा बनाया जाता है. जहां आमतौर पर देखा जाता है की मुखबधिर बच्चों को कही बार नौकरियों भी नहीं मिल पाती और यह बच्चे अगर इसी क्षेत्र में अनुभवी और होशियार हो जाएंगे तो मुझे लगता है यह बच्चे नौकरी करने वालों को भी पीछे छोड़ देंगे. उनसे भी ज्यादा इन बच्चों की कमाई हो सकेगी और हमारी कोशिश यह है कि हम ऐसी जगह एक सेंटर बनाएं. जिसमें इन बच्चों द्वारा बनाए गए उत्पादनों को रखें जहां से लोग भी इन्हें खरीद सकें और खुशी की बात है कि हमें जापान से भी इस वर्ष डेढ़ लाख रुपए का आर्डर मिला. हमने बच्चों द्वारा बनाया गया सामान भी जापान को भेज दिया और इसके अलावा अगर हम देश की बात करें तो चेन्नई, कर्नाटक, मुंबई, बैंगलोर के अलावा अन्य कहीं प्रदेशों से भी आर्डर मिल रहे हैं और जहां से भी हमें आर्डर मिलते हैं उसको पूरा करने की भी हमारी कोशिश रहती है. इससे जो पैसा आता है उसमें से कुछ प्रतिशत बच्चों को भी हम देते हैं जिससे इन बच्चों को भी लगे कि हम कमाने लायक हो गए हैं. उनको यह भी लगे कि हम स्वावलम्बी होते जा रहे हैं.

संस्थान की अध्यक्ष सुशील बोहरा ने आगे बताया कि हमारी नेत्रहीन विकास संस्थान में 223 मुखबधिर बच्चे है जिसमे से 6 क्लास से लेकर 10 वी क्लास के बच्चे यह सभी सामान बनाते हैं. हालांकि सरकार से कुछ अनुदान भी मिलता है लेकिन बहुत सारी चीजों पर अनुदान नहीं देती जहां हम जन सहयोग से इस कमी को भी पूरा कर लेते हैं. इसके अलावा हम हमारे स्तर पर ही बच्चों को गेम्स कंपटीशन के लिए विदेश भी भेजते हैं जिस किसी प्रकार का सरकार का अनुदान भी नहीं मिलता. इसके अलावा नेशनल लेवल पर भी हम बच्चों को भेजते हैं. उसके लिए भी सरकार से किसी प्रकार का अनुदान नहीं मिलता और बच्चों की पढ़ाई के लिए भी हम उत्तम शिक्षकों की फैकल्टी को रखते हैं जिसका परिणाम है कि इस वर्ष सभी बच्चे प्रथम श्रेणी में उतीर्ण हुए.

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