Rajasthan News: आम लोगों को न्याय दिलाने के लिए न्यायिक सेवा में चयनित होकर न्यायिक मजिस्ट्रेट बनी महिला को न्याय देने से पहले खुद के लिए न्यायिक लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़नी पड़ी. न्यायिक मजिस्ट्रेट पिंकी मीणा को राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने पूर्व की नौकरी छिपाने और शैक्षणिक अनियमितता के आरोपों के चलते सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था. हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने मीणा की अपील को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और परिवादी की नियुक्ति को बहाल कर दिया.
जस्टिस बी.वी. नगरत्न और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने पाया कि पिंकी द्वारा अपनी शैक्षिक योग्यताओं में संशयास्पद गतिविधियां करने का आरोप केवल एक तकनीकी त्रुटि पर आधारित था, जिसे अत्यधिक दंड नहीं दिया जाना चाहिए. अदालत ने इस विषय में स्पष्ट कहा कि ‘मामूली चूक के लिए निर्मम दंड असंगत और अनुचित है'.
क्या लगा था आरोप
दरअसल, पिंकी मीणा ने मार्च 2014 में राजस्थान राज्य शिक्षा विभाग में शिक्षक ग्रेड-II के रूप में सेवाकार्य आरंभ किया था तथा उसी दौरान उन्होंने एलएलबी (2015), बी.एड. (2017) और एलएलएम (2019) की डिग्रियां हासिल की. आरोप था कि उन्होंने एक ही वर्ष में बीएड और एलएलबी की डिग्रियां लीं, जो विश्वविद्यालय के अध्यादेश 168-ए का उल्लंघन है तथा नियमित सेवा के दौरान एलएलएम की कक्षाओं में भाग लिया.
सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी में कहा यह आपराधिक प्रक्रिया में नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ये शैक्षिक विवाद विभागीय अनियमितता के दायरे में आते हैं और इन पर आपराधिक प्रक्रिया जैसा कठोर कदम उठाना न्याय के मौलिक सिद्धांतों के विपरीत है. अदालत ने यह भी रेखांकित किया कि पिंकी मीणा ने 25 अक्टूबर 2018 को शिक्षक पद से इस्तीफा दिया था और 2 नवंबर 2018 को आरजेएस चयन साक्षात्कार के समय शून्य सेवा शीर्षक के अंतर्गत उपस्थित हुई थीं, इसलिए उनके पूर्व सरकारी रिकॉर्ड का उल्लेख न करना केवल मामूली चूक था. पीठ ने कहा कि “सेवा ग्रहण से पूर्व इस्तीफे को अनदेखा करना उचित नहीं”. पीठ ने मार्च 2019 से मार्च 2020 तक सफलतापूर्वक पूर्ण हुई प्रोबेशन अवधि और उत्कृष्ट प्रशिक्षण के प्रदर्शन का हवाला देते हुए उच्च न्यायालय की बर्खास्तगी को “अनुचित और असंगत” बताया.
वेतन और भत्ता जारी करने का निर्देश
अदालत ने निर्देश दिया कि पिंकी मीणा को उनके पूर्व वरिष्ठता क्रम, मूल वेतनमान और बकाया सभी भत्ते बिना विलंब जारी किए जाएं. इस निर्णय से न केवल पिंकी मीना को न्याय मिला है, बल्कि सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल भी कायम हुई है. सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया कि बिना ठोस कारण किसी भी अधिकारी की सेवा समाप्ति अनुचित ठहराई जाएगी और न्यायपालिका शासकीय प्राधिकरणों द्वारा अनुचित दंडात्मक कार्रवाइयों पर कड़ी निगरानी रखेगी.
कोर्ट ने कहा पिंकी जैसी महिलाओं के साहस का जश्न मनाना चाहिए
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि “विविध न्यायपालिका बेहतर निर्णय लेती है. और जब पिंकी जैसी आदिवासी महिलाएं आगे बढ़ती हैं, तो हम सभी आगे बढ़ते हैं.” उसे एक छोटी सी अनियमितता के लिए मृत्युदंड दिया.” परीक्षा के दौरान उसे तपेदिक हुआ, फिर भी उसने परीक्षा पास कर ली. बिना किसी दोष के प्रशिक्षण पूरा किया और फिर भी… सिस्टम ने उसे विफल कर दिया. आइए, उनके साहस का जश्न मनाएं और याद रखें कि न्याय मानवीय होना चाहिए, न कि केवल प्रक्रियात्मक.
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