रेगिस्तान में घोटुवां लड्डू के बिना अधूरी है दीवाली, सैलानी भी है इसके स्वाद के दीवाने, 250 साल पुराना है इतिहास

Jaisalmer's Ghotuwa Laddu: जैसमलेर का मशहूर घोटुवां लड्डू भी रेगिस्तान की कठिन जीवन शैली और संघर्ष की गाथा बयां करता है. जितना यह स्वाद से भरपूर है, उसे बनाने में मेहनत भी उतनी ही है. इस मिठाई ने देश में ही नहीं, बल्कि 7 समुंदर पार तक अमिट छाप छोड़ी है. इस मिठाई की डिमांड पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी खूब है.

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Diwali Sweets: दिवाली के त्योहार आते ही मिठाईयों की डिमांड बढ़ गई है. देश के कोने-कोने में कई तरह की मिठाइयों का स्वाद मिलता है. ऐसे ही जैसमलेर का मशहूर घोटुवां लड्डू भी रेगिस्तान की कठिन जीवन शैली और संघर्ष की गाथा बयां करता है. जितना यह स्वाद से भरपूर है, उसे बनाने में मेहनत भी उतनी ही है. इस मिठाई ने देश में ही नहीं, बल्कि 7 समुंदर पार तक अमिट छाप छोड़ी है. इस मिठाई की डिमांड पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी खूब है.

ट्रेडिशनल स्वीट ऑफ डेजर्ट, रियल टेस्ट ऑफ जैसाण और रेगिस्तान (Desert) का जायजा जैसे कई नाम से जाने जाना वाला यह लड्डू रेगिस्तानी इलाके में इतना अहम है कि इसके बिना कोई कार्यक्रम पूरा नहीं होता है. यहां आने वाले देशी-विदेशी पर्यटक (Tourist) भी इसके जायके का खूब लुत्फ उठाते हैं.  

फ्लैग मीटिंग के दौरान भी यह लड्डू होते हैं अहम

घोटकर और कूटकर बनाए की वजह से इसका पारम्परिक नाम घोटुवा लड्डू है. शुद्ध घी व बेसन से तैयार किए जाने वाले इस लड्डू में इलायची, केसर और ड्राई फ्रूट के अतिरिक्त इस्तेमाल से एक अनोखा स्वाद मिलता है. पर्यटन व्यवसायी रविंद्र बताते है कि घोटुवां लड्डू जैसलमेर की 'ट्रेडिशनल स्वीट' है. इस मिठाई को बनाने के लिए जो प्रयास किए जाते हैं, वह रेगिस्तान के संघर्ष की गाथा का प्रतीक भी माना जाता है. 

बॉर्डर के उस पार पाक रेंजर्स को भी यह मिठाई पसंद है. यही वजह है कि बॉर्डर पर जब भी फ्लैग मीटिंग या दीवाली, होली पर मिठाई का आदान-प्रदान होता है तो खासतौर पर जैसलमेर का घोटूवां ही दिया जाता है.

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सिल्क रूट के वक्त यात्रा का साथी था लड्डू

सिल्क रूट के वक्त यहां के लोगों को सुदूर यात्राओं पर जाना पड़ता था. तब इसे साथ ले जाते थे. क्योंकि यह कई दिनों तक खराब नही होता है. सैलानी घोटवा को जैसलमेर के लोकल ट्रेडिशनल स्वीट के रूप में चखते है तो वो मंत्रमुग्ध हो जाते है. एक सादा घोटुवां जो कि 460 रुपए किलो है और दूसरा ड्राई फ्रूट्स वाला घोटुवा 560 रुपए किलो है. 

भाटिया परिवार की 12वीं पीढ़ी आज भी परोस रही है ये अनूठा स्वाद

धनराज राणमल भाटिया परिवार की 12वीं पीढ़ी है, जो इस जायके को आज भी परोस रही है. विनय भाटिया बताते हैं कि पिछले 250 से अधिक समय से उनका परिवार इस मिठाई की विशेष रेसिपी से इसे तैयार करता है. 1938 में गोपा चौक में उनके दादा परदादा के नाम से इसे बेचा जाता है. धनराज राणमल भाटिया के घोटुवां लड्डू को आज विदेश तक लोग जानते हैं. 

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