कोटा में रावण दहन से पहले फेंके जाते हैं कंकर, कहीं पुतला जलाने की बजाय रौंदने की भी है अनूठी परंपरा

Kota News: कोटा के दशहरा मैदान में 80 फीट का रावण और 60 फीट के कुंभकरण मेघनाथ के पुतले तैयार हैं. शाम को होने वाले रावण दहन का इंतजार यहां हजारों लोगों का है. दहन से पहले यहां खास रस्म निभाई जाती है.

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Dasshera in Kota: विजयादशमी को देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है. देश के अलग-अलग हिस्सों में दशहरे के दिन रावण दहन के भी कई अनूठे तरीके हैं. कोटा (Kota) के दशहरा मैदान में 80 फीट का रावण और 60 फीट के कुंभकरण मेघनाथ के पुतले तैयार हैं. शाम को होने वाले रावण दहन का इंतजार यहां हजारों लोगों का है. दहन से पहले यहां खास रस्म निभाई जाती है. दशमी के दिन रावण के पुतले को कंकड़ मारने की रवायत है, जिसे शहरवासी आज भी निभा रहे हैं. इस खास प्रथा के पीछे विश्वास यह है कि रावण पुतला जलने के साथ सभी बुराइयां और बीमारियां भी अपने साथ ले जाता है. 

जेठी समाज की यह परंपरा भी है अनूठी

वहीं, हाड़ौती में निवासरत जेठी समाज की भी परंपरा अनूठी है. यहां पर रावण का पुतला बड़ा नहीं बनाया जाता है. बल्कि यह समाज रावण वध की अनोखी रवायत निभाता आ रहा है, जिसका नाता करीब 100 साल पुराना है. कोटा के नांता इलाके में जेठी समाज के लोगों ने हर साल की तरह इस साल भी मिट्टी का रावण तैयार किया, लेकिन इसको दहन नहीं किया. बल्कि इस पुतले को पैरों से रोंदकर बुराई के प्रतीक का अंत किया.

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100 साल पहले शुरू हुआ था पहलवानी का खेल

पेशेवर तौर पर पहलवान माने जाने वाले इस जाति के लोग नवरात्रि के शुभारम्भ में ही मंदिर में मिट्टी का रावण बनाते हैं. फिर बुराई के प्रतीक रावण के पुतले को दशमी के दिन पैरों से रोंदकर उस मिट्टी पर पहलवान जोर-अजमाइश करते नजर आते हैं. इसके पीछे की वजह हाड़ौती में हाड़ा राजाओं के शासन से जुड़ी है. इन राजाओं को कुश्ती देखने का बड़ा शौक था. करीब 100 साल पहले यहां के राजा ने गुजरात से कुछ पहलवान कोटा बुलवाए और उनकी कुश्ती करवाई थी. यह सिलसिला सालों तक चलता रहा और जेठी समाज का कुनबा भी बढ़ता गया. इस पहलवान जाति की पहचान उसी समय से दंगल करने से जुड़ गई. पहलवान आज के दिन उसी शिद्दत से कुश्ती करते हैं, जैसे उनके पूर्वज करते आ रहे थे. 

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