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संविधान के लिए आस्था, जोधपुर में शिक्षक ने घर का नाम रखा 'संविधान', बेटियों के नाम 'समीक्षा' और 'लिपिका'

डॉक्टर दिनेश उनके घर आने वाले हर एक मेहमान को 'संविधान' की प्रस्तावना की प्रति भी भेंट करते हैं.

संविधान के लिए आस्था, जोधपुर में शिक्षक ने घर का नाम रखा 'संविधान', बेटियों के नाम 'समीक्षा' और 'लिपिका'

National Constitution Day 2024: स्वतंत्र भारत में संविधान लागू होने के 75 साल पूरे हो रहे हैं. हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है. 26 नवंबर 1949 को आज के इस इतिहास में एक महत्वपूर्ण दिवस के रूप में मनाया  जाता है. यह वही महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक दिन है, जिस दिन भारत का संविधान बनकर तैयार हुआ था और भारत ने इसे अपने संविधान के रूप में अपनाया था.

भारत का संविधान देश की ताकत है और इसी की वजह से आज देश में लोकतंत्र ज़िंदा है. संविधान के प्रति आस्था और प्रेम की सैंकड़ों कहानियां आपको मिल जाएंगी . ऐसी ही एक कहानी है जोधपूर के एक शिक्षक दिनेश गहलोत की. संविधान के प्रति उनकी आस्था का आलम यह है कि उन्होंने अपने घर का नाम ही 'संविधान' रख लिया. संविधान शिक्षक के रूप में पहचाने जाने वाले शिक्षक डॉ. दिनेश गहलोत जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय में राजनीतिक विज्ञान के लेक्चरर हैं. 

डॉ गहलोत का संविधान के प्रति दीवानगी इस कदर है कि इन्होंने अपने घर का नाम ही संविधान रखा है और अपनी दो पुत्रियों का नाम भी संविधान से जुड़े शब्दों के आधार पर 'समीक्षा' और 'लिपिका' रखा है. डॉक्टर गहलोत उनके घर आने वाले हर एक मेहमान को 'संविधान' की प्रस्तावना की प्रति भी भेंट करते हैं.

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गहलोत बताते हैं कि उनकी बड़ी पुत्री का नाम लिपिका है. जो एक प्रकार का सॉफ्टवेयर का नाम है और जिस सॉफ्टवेयर में इंग्लिश से हिंदी में अनुवाद किया जाता है. वहीं छोटी बेटी का नाम समीक्षा रखा है जो संविधान की विस्त्रात्मक व्याख्या करने के संबंध में उपयोग में लिया जाता है. घर में ही एक संविधान से जुड़ी लाइब्रेरी को भी स्थापित किया है. 

डॉ. दिनेश गहलोत बताते हैं कि लोगों में संवैधानिक विकास के प्रति जागरूकता लाने के लिए उन्होंने अपने घर का नाम भी 'संविधान' रखा है और मैं ऐसा मानता हूं कि मेरे घर के सामने से भी कोई लोग गुज़रते हैं, उन्हें भी मालूम होना चाहिए और उनमें भी उत्सुकता का भाव उत्पन्न होना चाहिए कि संविधान क्या है? वो कहते हैं '' लेकिन मैंने ये महसूस किया है कि आज हमारे युवाओं के ज़हन में हमारे संविधान के प्रावधानों और संविधानों निर्माताओं के प्रति एक आलोचना का भाव विकसित होता जा रहा है.''

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