HOLI 2025: देश में होली के त्योहार पर अलग माहौल दिखाई देता है. हर जगह होली मनाने का अलग-अलग ढंग पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर आकर्षित करता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रसिद्ध लठ्ठमार होली हैं. राधा रानी की नगरी बरसाने में विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली को देखने के लिए देश विदेश से पर्यटक और श्रद्धालु उमड़ पड़े. होली की शुरुआत रसिया गायन के साथ हुई.
शाम करीब 5 बजे लठ्ठमार होली खेली गई. 16 श्रृंगार से होली के लिए सुसज्जित बरसाने के हुरियारिनों ने नंदगांव के हुरियारों पर प्रेम रस से भीगीं लाठियां बरसाईं. ढालों की ओट में हुरियारे बचने का प्रयास करते दिखे. इस होली को देख सभी लोग गदगद हो गए.
देश-विदेश से आते हैं पर्यटक और श्रद्धालु
मथुरा, बरसाना और नंदगांव के आस-पास के इलाकों में होली का उत्सव बसंत पंचमी से ही शुरु हो जाता है. यह उत्सव लगभग 40 दिनों का होता है, जो रंग पंचमी के दिन तक चलता है. मथुरा के आस-पास के गांव में मनाई जाने वाली होली पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. यहां की होली देखने के लिए विदेशों से भारी मात्रा में लोग मथुरा आते हैं.
ब्रज की लट्ठ मार होली.
लट्ठमार होली दो दिन खेली जाती है
यह होली एक दिन बरसाने में और एक दिन नंदगांव में खेली जाती हैं. जिसमें बरसाने और नंदगांव के युवक और युवतियां भाग लेते हैं. एक दिन बरसाने में नंदगांव के युवक जाते हैं और बरसाने की हुरियारिन उन पर लट्ठ बरसाती हैं और दूसरे दिन बरसाने के युवक नंदगांव पहुंचकर लट्ठमार होली की परंपरा को निभाते हैं. ब्रज में होली के खेल को राधा-कृष्ण के प्रेम से जोड़कर देखा जाता है. जिसको लेकर लोगों में उत्साह और उमंग देखने को मिलता है.
ब्रज की लट्ठ मार होली.
मन करता है यहीं बस जाए
पंजाब के लुधियाना निवासी मधु वर्मा ने बताया कि वैसे तो हम हर साल यहां आते हैं, लेकिन बरसाना की होली पहली बार देखी है. यह होली अद्भुत है और आनंददायक है. यहां की होली की बात ही निराली है. मन करता है यहीं बस जाएं . उत्तरप्रदेश के बरेली निवासी वंदना पाठक ने बताया कि वैसे तो होली हर जगह होती है, लेकिन बृज के बरसाने की लट्ठ मार होली की बात ही निराली है. साथ ही होली का असली मजा यहीं है.
ऐसे शुरू हुई लट्ठमार होली की परंपरा
मान्यताओं के अनुसार, लट्ठमार होली की परंपरा राधा रानी और श्रीकृष्ण के समय से चली आ रही है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण को होली का त्योहार बहुत प्रिय है. होली के दिन भगवान श्री कृष्ण अपने सखाओं के साथ नंदगांव से राधारानी के गांव बरसाना जाते थे.
ब्रज की लट्ठ मार होली.
तब श्रीकृष्ण के साथ उनके सखा और राधा रानी अपनी सखियों के साथ होली खेलती थीं, लेकिन राधा रानी के साथ मिलकर उनकी सखियां श्रीकृष्ण और उनके शाखाओं को झाड़ियों से मारने लगती थी. माना जाता है कि तभी से यह परंपरा शुरु हुई और आज भी बरसाना और नंदगांव में यह परंपरा निभाई जाती है.
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