
HOLI 2025: देश में होली का पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. वहीं बात बृज की करें तो, यहां होली का पर्व एक अलग और अनूठे तरीके से मनाया जाता है. कहा जाता है कि बृज में होली के दिन भक्ति, प्रेम और रंग का अनूठा संगम देखने को मिलता है. होली पर्व की शुरुआत राजस्थान के डीग जिले में बॉर्डर से सटे गांव गांठौली के 'गुलाल कुंड' से हुई है.
यहां से हुई होली की शुरुआत
ये कुंड राधा-कृष्ण की होली लीला का साक्षात प्रमाण है. स्थानीय लोग दावा करते हैं कि भगवान कृष्ण और राधा ने अपनी सखियों संग होली इसी कुंड में खेली थी. भगवान कृष्ण के पन्ना और राधा रानी की चूंदरी में सखा और सखियों ने गांठ बांधी थी. यह भगवान कृष्ण और राधा रानी का साक्षात प्रमाण है.
यहां 365 दिन होली खेली जाती है. यहां बड़ी संख्या में भक्त स्थल को देखने के लिए पहुंचते हैं. साथ ही भगवान कृष्ण और राधा जी से गुलाल की होली खेलते हैं.

गुलाल कुंड.
365 दिन यहां खेली जाती है होली
इस मंदिर महंत कृष्ण मुरारी ने बताया कि सारस्वत कल्प में होली की शुरुआत यहीं से शुरू हुई है. राधा रानी ने बरसाने में होली नहीं खेली है. बरसाना में होली वहां की महिलाएं खेलती हैं बेटियां नहीं. राधा रानी ने कृष्ण भगवान से कहा कि मैं बरसाने में आपके साथ होली नहीं खेल सकती क्योंकि यहां मेरे मां-बाप और अन्य परिजन हैं. उन्होंने कहा कि उनके लिए अलग से कुंज बनाया जाए, जहां वह 12 माह यानी 365 दिन होली खेल सकें क्योंकि वह बरसाने में होली नहीं खेल सकती.
जानें क्यों पड़ा गुलाल कुंड नाम
पौराणिक मान्यता है कि भगवान कृष्ण और राधा रानी ने 10 मन केशर का गुलाल बनाया था. इसीलिए इसका नाम गुलाल कुंड पड़ा. भगवान कृष्ण ने राधा जी के साथ अपने सखा और सखियों के साथ 100 मन गुलाल और 10 मन केशर से होली खेली थी. गुलाल कुंड की होली लीला का महत्व इस कदर है कि राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि से बृज पहुंचने वाले लोग यहां भी पहुंचते हैं.

होली खेलेने पहुंचे लोग.
इस जगह के दर्शन करके हुए धन्य
गुजरात निवासी भावना बहन ने बताया कि यहां अलौकिक आनंद है. जहां भी देखो वहां आनंद ही आनंद है. यहां जिसे भी देखो वह अपने रंग में मग्न है. प्रभु की ऐसी कृपा होती है कि हमें पता ही नहीं चलता हम किस रंग में रंगे जा रहे हैं. गुलाल कुंड में भगवान ने नित्य होली खेली थी. यहां के दर्शन भी सौभाग्य से होते है.
वहीं गुजरात निवासी धर्मेश ने बताया कि वह विगत 5 वर्षों से लगातार यहां आ रहे हैं. होली तो सभी जगह होती है, लेकिन बृज की होली का कोई तोड़ नहीं. जहां भगवान कृष्ण ने राधा जी के साथ होली खेली हो उस स्थान के दर्शन करके हम धन्य हो गए.
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