Rajasthan News: डूंगरपुर के रथोत्सव में 100 से 500 साल तक पुराने रथ महोत्सव में शामिल होते हैं. जिले में डूंगरपुर शहर में 3, सागवाड़ा शहर में 2, पीठ, थाणा , सरोदा, पाड़वा, ओबरी, चितरी, गलियाकोट, भीलूड़ा, साबला, निठाउवा में सालों पुराने एक से तीन मंजिला रथ निकलते हैं. पर्यूषण पर्व की समाप्ति पर रथोत्सव की यह परंपरा डूंगरपुर-बांसवाड़ा जिले की खास है.
रथ पर जैन दर्शन का प्रतीक दिखता है
इस काष्ठ के रथ में सांस्कृतिक झलक दिखती है. यह एक मंजिला से लेकर तीन मंजिला तक है. चारों दिशाओं से एक जैसे लगता है, इसमे जैन दर्शन के प्रतीकों के आधार एवं भारतीय संस्कृति के रंग दिखाई देते हैं. रथ पर दिगंबर मुनि मुद्रा, देव देवांगनाओं, हाथी, घोड़े और शेर आदि पशु-पक्षियों की आकृति बने हैं. रथ के शिखर पर पांच रजत लगा है. छत्र जैन धर्म का पताका फहराता है. ये जैन दर्शन के प्रतीक हैं.
रथ पर धर्म और राष्ट्र रक्षा का संदेश
इसका आभा मंडल और चंवर जैसे प्रातिहार्य तीर्थंकर भगवंतों की महिमा मंडन करते हैं. रथ पर धर्म और राष्ट्र रक्षा का संदेश देते द्वारपाल और रक्षकों के चित्र, शाही हाथियों की सवारी करते चक्रवती और महाबली राजाओं के चित्र पुरातन भारतीय वैभव और समृद्ध गौरवशाली इतिहास बताते हैं. ये रथ परंपराओं को जीवित रखने का संदेश देती है. इसमें चांदी के छम्मर, सोने-चांदी के आभूषण से श्रृंगार किया जाता है, जो देखने लायक होता है. करीब 500 सालों से अधिक समय से ये परंपरा चली आ रही है. रथोत्सव में जैन समाज ही ही नहीं बल्कि, सभी समाज, धर्म और जाति के लोग आते हैं.
इस तरह किया तैयार
रथों सुथार समाज ने बनाया है. रथ में अच्छी क्वालिटी की लकड़ी का इस्तेमाल किया गया है. सुथार समाज ने लकड़ी पर बारीक नक्काशी के साथ दो से तीन मंजिला रथ बनाया है. हिमाचल, उत्तराखंड और अन्य जिलों की लकड़ी का इसमें इस्तेमाल किया गया है. बताया जाता है कि इसे बनाने में काफी समय लगा. लकड़ी के रथ 100 साल से लेकर 500 साल से अधिक पुराने हैं.
सागवाड़ा में रथों का मिलन
डूंगरपुर में पहला रथ कोटडिय़ा जैन मंदिर से निकलता है, जिसमें भगवान आदिनाथ विराजमान होते हैं. दूसरा रथ मामा-भांजा मंदिर से निकलता है, जिसमें भगवान मल्लिनाथ और भगवान नेमीनाथ विराजित होते हैं. तीसरा रथ उंडा मंदिर फौज का बड़ला का होता है, जिसमें भगवान नेमीनाथ विराजमान होते हैं. तीनों रथ गाजे-बाजे के साथ गेपसागर की पाल पहुंचते हैं. सागवाड़ा शहर में जैन समाज के काष्ठ ृसे बने दो रथ हैं, सबसे पहला रथ सेठों के मंदिर से निकलता है. इसके बाद नवा मंदिर व जूना मंदिर से निकलता है.
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