Rajasthan: जैसलमेर में भी है मथुरा के गिरिराज जी, जानें किस तरह वैष्णव संप्रदाय के भक्तों ने गोविंद कुंड से निकालकर कराया निर्माण

Krishna Janmashtami 2024: जैसलमेर की धरती ब्रज भूमि के समान मानी जाती है. लेकिन मेघदंबर छत्र के अलावा मथुरा के गिरिराज पर्वत की तरह यहां भी एक एक मुखारविंद है, जिसे यहां के वैष्णव संप्रदाय में बहुत पूजनीय माना जाता है.

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Jaisalmer Giriraj parvat: राजस्थान के जैसलमेर जिले को कृष्ण की नगरी भी कहा जाता है क्योंकि कृष्ण के वंशजों ने स्वर्ण नगरी पर राज किया था, जिसका प्रमाण जैसलमेर में मौजूद मेघाडम्बर छत्र से मिलता है. इसे भगवान इंद्र ने श्री कृष्ण को रुखमणी विवाह के समय दिया था. और श्री कृष्ण ने इसे अपने वंशजों को दे दिया था. इसी वजह से जैसलमेर की धरती ब्रज भूमि के समान मानी जाती है. लेकिन मेघदंबर छत्र के अलावा मथुरा के गिरिराज पर्वत की तरह यहां भी एक एक मुखारविंद है, जिसे यहां के वैष्णव संप्रदाय में बहुत पूजनीय माना जाता है. आप सोच रहे होंगे कि मथुरा के गिरिराज जी जैसलमेर में कैसे आए? दरअसल जैसलमेर के गोविंदसर चरण चौकी में जहां हरिराय जी की सात में से चौथी बैठक भी है, वहां गोविंदसर चरण चौकी में एक गिरिराज पर्वत का निर्माण किया गया है और इसकी पूजा और परिक्रमा की जाती है.

गोविंद कुंड से निकले स्वरूप

स्वरूपों को गोविंद कुंड में किया था विसर्जित

इस बारे में वैष्णव संप्रदाय से जुड़े शेखर व्यास बताते हैं कि कई साल पहले वैष्णव संप्रदाय को मानने वाले ठाकुर जी के कुछ भक्त गिरिराज पर्वत के कुछ हिस्से जिन्हें 'स्वरूप' कहते हैं, जैसलमेर लेकर आए थे. लेकिन जब वे भारत से पलायन कर रहे थे तो इन स्वरूपों को जैसलमेर के गोविंदसर बैठक में भेज दिया गया, ताकि विधि-विधान से इनकी पूजा की जा सके. लेकिन जब इन्हें यहां लाया गया तो गलती से किसी ने इन स्वरूपों को गोविंद कुंड में विसर्जित कर दिया. कुछ समय बाद जब जैसलमेर के अन्य वैष्णव भक्तों को इस बारे में पता चला तो उन्होंने कड़ी मेहनत से गिरिराज जी के स्वरूपों को कुंड से बाहर निकाला.

2 भगवान के चरणों में स्थापित

5 में से केवल 4 मूर्तियां ही मिली थीं

वैष्णव संप्रदाय से जुड़े शेखर आगे बताते हैं कि स्वरूपों को निकालने के बाद भक्तों ने सोचा कि गिरिराज बाबा के इन स्वरूपों का उपयोग करके गिरिराज जी पर्वत का निर्माण किया जाए. जिसमें से 5 में से केवल 4 मूर्तियां ही मिल पाईं थी, उनमें से एक स्वरूप को पर्वत निर्माण में और 2 भगवान के चरणों में स्थापित किया गया. शेष को सुरक्षित रख लिया गया. वहीं वैष्णव संप्रदाय के जानकार कमल आचार्य ने आगे जानकारी देते हुए बताया कि गिरिराज जी के जो स्वरूपों के निकाली हुई जगह से उन्हें आसानी से वापस नहीं लाया जा सकता था. ऐसा माना जाता है कि मूर्ति के वजन के बराबर सोना रखकर उन्हें लाया गया था. लेकिन वर्षों पुरानी मूर्ति का घर से कुंड तक पहुंचना और भक्तों के जरिए निकाले जाने के बाद पर्वत बनाने की कल्पना ठाकुर श्री कृष्ण की ही लीला है, क्योंकि 400-450 वर्ष पूर्व स्वयं हरिराय जी ने जैसलमेर गिरिराज पर्वत की कल्पना की थी, जो अब साकार हो गई है.

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गिरिराज बाबा के मुखारविंद दर्शन के लिए लगता है

भक्तों का तांता

इन स्वरूपों की प्रतिदिन पूजा करने वाले हरिवल्लभ बोहरा बताते हैं कि जैसलमेर में गिरिराज बाबा के मुखारविंद दर्शन के लिए भक्तों में वैसा ही जुनून है जैसा मथुरा में है. यहां भक्त प्रतिदिन गिरिराज बाबा पर जल और दूध चढ़ाते हैं. जिसके बाद उनके श्रृंगार और आरती का कार्यक्रम होता है. इसके बाद भक्त परिक्रमा मार्ग पर दूध धार परिक्रमा करते हैं. यहां आने वाले भक्तों का कहना है कि ऐसा लगता है जैसे हम जतीपुरा में ही हैं. वैष्णवों ने यहां चारों तरफ पेड़-पौधे लगाकर हरा-भरा वातावरण बनाया है.
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