krishna Janmashtami 2024: राजस्थान समेत पूरे देश में जन्माष्टमी की धूम देखने को मिल रही है. कान्हा का जन्मोत्सव मनाने के लिए प्रदेशभर के मंदिर पूरी तरह तैयार हैं. ऐसे में राजस्थान के झालरापाटन के द्वारकाधीश मंदिर की रौनक भी देखने लायक है. इस मंदिर को हाड़ौती का नाथद्वारा भी कहा जाता है. यहां कुछ खास परंपराएं देखने को मिलती हैं। गोमती सागर झील के किनारे बने इस मंदिर में भगवान के जरिए पापों की क्षमा और कैदियों को रिहाई मिलती है. इतना ही नहीं यहां किसानों और व्यापारियों को भी विशेष मार्गदर्शन मिलता है.
भगवान द्वारकाधीश
लाल छतरी के दर्शनों के साथ मिलती रही गुनाहों से माफी-
जन्माष्टमी के तीन दिन बाद लाल छतरी के दर्शन की परंपरा इस मंदिर में रियासत काल से चली आ रही है.लाल छतरी के दर्शन से भगवान श्री कृष्ण के जन्म से जुड़ी कुछ मान्यताएं हैं. लेकिन इस अवसर पर यहां कैदियों को भी छोड़ा जाता रहा है. लाल छतरी के दर्शन के साथ ही यहां झालावाड़ के शासक का दरबार भी लगता था.इस अवसर पर कैदी और अपराधी भगवान द्वारकाधीश के सामने खड़े होकर अपने अपराधों की क्षमा मांगते थे और फिर झालावाड़ सरकार द्वारा उन्हें रिहा कर दिया जाता था. आज भी लोग यहां अपने अपराधों की क्षमा मांगने आते हैं.
216 साल पहले द्वारकाधीश जी को यहां किया था स्थापित
झालावाड़ राजपरिवार के जरिए करीब 216 साल पहले यहां द्वारकाधीश मंदिर की स्थापना की गई थी, जहां राजपरिवार ने झालावाड़ गद्दी का कार्यभार नवनीत प्रिया जी को सौंपा गया था और उन्हीं के नाम से प्रशासन चलाया गया था. इस मंदिर में भगवान द्वारकाधीश के साथ नवनीत प्रिया जी की मूर्ति भी स्थापित है. हर साल श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर यहां विशेष आयोजन किए जाते हैं, जिस दौरान यहां दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। इसके अलावा यहां सालभर उत्साह का माहौल रहता है। साल में तीन बार यहां 11 किलोमीटर की परिक्रमा निकाली जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु रंग-गुलाल उड़ाते हुए नाचते-गाते हुए भाग लेते हैं.
नवनीत प्रिया जी
नंगे पांव चलकर अपनी पगड़ी में रखकर मूर्तियां लाए थे राजा
द्वारकाधीश मंदिर में मूर्तियों की स्थापना 1806 में झालावाड़ के तत्कालीन शासक राजा झाला जालिम सिंह ने की थी. पहले यह राजपरिवार का निवास स्थान हुआ करता था. जब झालावाड़ रियासत की स्थापना हुई तो राजपरिवार झालावाड़ स्थित महल में रहने चला गया. उसके बाद राजा झाला जालिम सिंह कोटा रियासत से मूर्तियों को अपनी पगड़ी में रखकर नंगे पांव झालावाड़ पहुंचे और द्वारकाधीश मंदिर में भगवान द्वारकाधीश और नवनीत प्रिया जी की मूर्तियों की स्थापना की और उनके नाम पर झालावाड़ का राज स्थापित किया.
गुरु पूर्णिमा पर होती है धान की तुलाई
झालावाड़पाटन के द्वारकाधीश मंदिर में विराजमान भगवान द्वारकाधीश यहां के किसानों और व्यापारियों का मार्गदर्शन भी करते हैं. यहां हर गुरु पूर्णिमा के अवसर पर आसपास के क्षेत्र में उगाए गए अनाज को तोलने की रस्म पूरी की जाती है, जिसमें अलग-अलग तरह के अनाज को तोल कर रात में भगवान की मूर्ति के सामने रख दिया जाता है और फिर सुबह उसका वजन किया जाता है, ऐसे में यहां के किसान जिस अनाज का वजन पहले से ज्यादा पाया जाता है उसे देखकर अंदाजा लगा लेते हैं कि उन्हें आने वाले सीजन में कौन सी फसल बोनी है और यहां के व्यापारी भी उसी के आधार पर आने वाले साल के लिए व्यापार की दिशा तय करते हैं.
वर्षभर होते हैं आयोजन
यह मंदिर श्री बल्लभाचार्य जी के पुष्टिमार्गीय संप्रदाय से संबंधित हैं , सभी समाज के लोग यहां आते हैं लेकिन पूजा की विधि पुष्टिमार्गीय है. सभी पुष्टिमार्गीय त्योहार यहां मनाए जाते हैं.संवत्सरी (हिंदू नववर्ष दिवस) रथयात्रा, सावन झूला महोत्सव, जन्माष्ठमी, वन महोत्सव, गोवर्धन पूजा और अन्नकूट, होली, फूलडोल, फागोत्सव आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. शरद पूर्णिमा पर, खीर को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.
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