राजस्थान में सरकारी पैसे की बर्बादी! स्कूल में 2-2 टीचर तैनात, पर पढ़ने वाला कोई नहीं... कमरे में लगे ताले

स्कूल के कमरे अधिकतर समय ताले में बंद रहते हैं. शिक्षिकाएं कई बार स्कूल आती ही नहीं हैं, ऐसे में सुरक्षा को लेकर उसने ताले चेक किए तो पूरा मामला सामने आया.

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स्कूल में 2-2 टीचर तैनात, पर पढ़ने वाला कोई नहीं

Rajasthan News: सरकारी विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को लेकर सरकार भले बड़े-बड़े दावे कर रही हो, लेकिन जमीनी तस्वीर ठीक इसके उलट है. राजस्थान के झुंझुनूं जिले से एक मामला सामने आया, जिसने शिक्षा विभाग के साथ-साथ सरकारी सिस्टम पर पानी फेर रहा है. जिले के एक सरकारी स्कूल, शिक्षा विभाग की उदासीनता और सरकारी संसाधनों की खुली बर्बादी को उजागर कर रहा है. स्कूल में दो शिक्षकों की तैनाती है, पर स्कूल में पढ़ने वाले एक भी बच्चे नहीं हैं. 

पिछले सत्र में था मात्र 1 विद्यार्थी

शिक्षा विभाग की लापरवाही के कारण किस तरह से सरकारी संसाधनों की बर्बादी हो रही है, झुंझुनूं जिले के नवलगढ़ ब्लॉक की बिरोल ग्राम पंचायत में रामदान की ढाणी का राजकीय प्राथमिक विद्यालय इसका उदाहरण है. इस विद्यालय में दो अध्यापिकाएं तैनात हैं, पर पढ़ने वाला एक भी बच्चा नहीं.

शैक्षणिक सत्र 2025-26 में नामांकन शून्य है, जबकि पिछले सत्र में भी केवल एक विद्यार्थी दर्ज था. इसके बावजूद विद्यालय पर वेतन व अन्य पदों में हर वर्ष 18 से 20 लाख रुपये खर्च किए जा रहे हैं. बड़ा सवाल यह है कि जब विद्यार्थी ही नहीं तो यह खर्च आखिर किस पर हो रहा है?

स्कूल के कमरे में लगे रहते ताले

स्थानीय निवासी हरिराम ने बताया कि स्कूल के कमरे अधिकतर समय ताले में बंद रहते हैं. शिक्षिकाएं कई बार स्कूल आती ही नहीं हैं, ऐसे में सुरक्षा को लेकर उसने ताले चेक किए तो पूरा मामला सामने आया. बिरोल पीईईओ विनोद लोहिया ने बताया कि यहां कार्यरत अध्यापिका संजू शर्मा को 4 नवंबर 2025 से नवलगढ़ के राजकीय मानसिंहका उच्च माध्यमिक विद्यालय में कार्य व्यवस्था के तहत भेजा गया है.

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दूसरी अध्यापिका बिंदिया को भी कुछ दिन पहले कार्य व्यवस्था में भेज दिया गया था. बाद में उसे दोबारा मूल विद्यालय में लगाने के आदेश हुए हैं. रामदान की ढाणी अकेला मामला नहीं है. राजकीय प्राथमिक विद्यालय गुन्याणा जोहड़– 1 शिक्षिका, मात्र 2 छात्र,राजकीय प्राथमिक विद्यालय खीचड़ों की ढाणी– 1 शिक्षिका, केवल 1 विद्यार्थी हैं. सरकारी बजट और शिक्षकों की तैनाती के बावजूद गांवों में प्राथमिक शिक्षा के प्रति न तो जागरूकता दिख रही है और न ही विभाग की निगरानी. ऐसे में सरकारी संसाधनों की भारी बर्बादी और शिक्षा के लक्ष्य पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं. 

रिपोर्ट- रविन्द्र चौधरी 

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