Rajasthan Assembly By-poll 2024: लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) में 5 विधायकों को मिली जीत के बाद राजस्थान की 5 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव (Assembly By-poll) होना है. इसमें एक सीट RLP सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल (Hanuman Beniwal) की खींवसर (Khinvsar) भी हैं. बेनीवाल यहां से विधायक थे. लेकिन अब उनके नागौर से सांसद बनने के कारण खींवसर में उपचुनाव (Khinvsar Assembly By-Election 2024) होगा. उपचुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग ने अभी कोई घोषणा तो नहीं की है लेकिन राजनीतिक दलें अपनी-अपनी तैयारी जुट गई है.
BJP, कांग्रेस, RLP, भारत आदिवासी पार्टी, BSP सभी अपनी-अपनी तैयारियों में जुटे है. बात खींवसर विधानसभा सीट की करें तो यहां भाजपा, कांग्रेस और आरएलपी के बीच त्रिकोणीय टक्कर होने के आसार है. तीनों दलों से टिकट के लिए भी तीन-तीन दावेदार रेस में हैं. आइए समझते हैं हनुमान बेनीवाल के गढ़ खींवसर विधानसभा उपचुनाव के सियासी समीकरण.
प्रदेश की सबसे चर्चित सीटों में से एक इस सीट पर इस बार हनुमान बेनीवाल की जगह कौन लेगा? और क्या बीजेपी हनुमान बेनीवाल को उनके गढ़ में शिकस्त दे पाएगी? यह राजनीतिक गलियों में एक बड़ा सवाल बनकर उभर रहा है. इसी बीच चुनाव के लिए अब उम्मीदवारों के नाम की चर्चाएं भी शुरू हो चुकी है.
खींवसर विधानसभा उपचुनाव के टिकट के दावेदार
टिकट के दावेदारों की बात करें तो आरएलपी से पांचला सिद्धा के महंत जसनाथ महाराज, हनुमान बेनीवाल की पत्नी कनिका बेनीवाल और हनुमान बेनीवाल के भाई नारायण बेनीवाल के नाम रेस में है. वहीं भाजपा की ओर से पूर्व सांसद डॉ. ज्योति मिर्धा, विधानसभा में हनुमान बेनीवाल के प्रतिद्वंद्वी रहे रेवंतराम डांगा और आरसीए के अध्यक्ष तथा चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर के बेटे धनंजय सिंह के नाम चर्चा में है. जबकि बात करें कांग्रेस की तो नाथूराम मिर्धा के पोते मनीष मिर्धा, नागौर विधायक हरेंद्र मिर्धा के बेटे राघवेंद्र मिर्धा और बसपा से चुनाव लड़ चुके दुर्ग सिंह खींवसर कांग्रेस के दावेदारों में सबसे आगे हैं.
हनुमान बेनीवाल तय करेंगे आरएलपी का उम्मीदवार
आरएलपी का दावेदार कौन होगा इसका फैसला सांसद हनुमान बेनीवाल पर ही निर्भर है. बताया जा रहा है कि पांचलासिद्धा के जसनाथ महाराज की हनुमान बेनीवाल से काफी नजदीकीयां है. महाराज के भक्तों की संख्या और फैन फॉलोइंग जबरदस्त है. ऐसे में जसनाथ महाराज को उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चाएं तेजी पर है. वही हनुमान बेनीवाल चाहते अगर चाहते हैं कि यह सीट उनके परिवार के पास ही रहे, तो वह अपनी पत्नी कनिका बेनीवाल को भी मैदान में उतार सकते हैं या फिर अपने भाई नारायण बेनीवाल को फिर से चुनाव लड़वा सकते हैं. क्योंकि 2019 में जब हनुमान बेनीवाल सांसद चुने गए थे, तब हुए उपचुनाव में उन्होंने नारायण बेनीवाल को चुनावी मैदान में उतरा था. जिसमें नारायण बेनीवाल खींवसर से चुनाव जीतकर विधायक निर्वाचित हुए थे.
पिछले चुनाव में बेनीवाल को मिली थी तगड़ी चुनौती
पिछले वर्ष नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव में खींवसर में मुकाबला बेहद संघर्षपूर्ण और रोचक रहा था. खुद एलएलपी सुप्रीमो हनुमान बेनीवाल को भाजपा प्रत्याशी रेवंतराम डांगा से कड़ी चुनौती मिली थी. इस चुनाव में हनुमान बेनीवाल मात्र 2059 वोटो के अंतर से ही चुनाव जीत सके थे. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी तेजपाल मिर्धा तीसरे स्थान पर रहे थे.
हनुमान बेनीवाल का तोड़ कैसे निकलेगी भाजपा
खींवसर सीट पर भाजपा हनुमान बेनीवाल का तोड़ अब तक नहीं निकाल पाई है. लगातार चार बार हनुमान बेनीवाल यहां से जीत दर्ज करते रहे हैं. इसलिए इस बार भाजपा सहानुभूति की लहर के सहारे चुनाव जीतने की कोशिश करेगी. इस रणनीति के तहत भाजपा पूर्व सांसद डॉ ज्योति मिर्धा पर एक बार फिर दांव खेल सकती है या फिर विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी रहे रेवंतराम डांगा को ही फिर से उम्मीदवार बनाया जा सकता है, क्योंकि रेवंतराम डांगा ने पिछले चुनाव में हनुमान बेनीवाल को कड़ी चुनौती दी थी और हनुमान बेनीवाल की जीत का अंतर मात्र 2059 वोट ही रहा था. ऐसे में भाजपा ज्योति मिर्धा और रेवंतराम डांगा, दोनों के ही प्रति जनता में पिछले चुनाव की हार को लेकर एक सहानुभूति की लहर जगाकर उसका लाभ उठा सकती है.
क्या उपचुनाव में भी होगा RLP-कांग्रेस गठबंधन
पिछले विधानसभा चुनाव की बात करें तो खींवसर में आरएलपी, भाजपा और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़े थे. जिससे मुकाबला त्रिकोणीय और कांटेदार हो गया था. लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले आरएलपी और कांग्रेस ने गठबंधन कर लिया था और दोनों पार्टियों के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में हनुमान बेनीवाल ने चुनाव लड़कर भाजपा प्रत्याशी ज्योति मिर्धा को पराजित किया था. ऐसे में अब कयास लगाए जा रहे हैं कि आरएलपी और कांग्रेस का यह गठबंधन खींवसर उपचुनाव में भी कायम रहेगा या नहीं?
खींवसर विधानसभा उपचुनाव का सियासी समीकरण
राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो भाजपा को हारने के लिए कांग्रेस और आरएलपी लोकसभा चुनाव के तर्ज पर गठबंधन कर सकती है. दोनों पार्टियों का फोकस रहेगा की उनके वोट बंटे नहीं और इसका लाभ भाजपा नहीं उठा सके. वहीं दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषक यह भी मान रहे हैं कि कांग्रेस और एलएलपी का गठबंधन हुआ तो इसका नुकसान गठबंधन को ही होगा और भाजपा इसका लाभ उठा लेगी.
क्योंकि खींवसर में कांग्रेस कार्यकर्ता गठबंधन को शायद ही स्वीकार करें. गत चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे तेजपाल मिर्धा ने लोकसभा चुनाव में आरएलपी और कांग्रेस का गठबंधन होने पर बगावत कर दी थी और भाजपा में शामिल हो गए थे. ऐसे में वे अपने समर्थकों के साथ गठबंधन को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं. जिसका डर आरएलपी और कांग्रेस दोनों को भी है.
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