Rajasthan News: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान के कुंभलगढ़ वाइल्डलाइफ सेंचुरी के इको-सेंसिटिव जोन में स्थित लक्षेला झील के कैचमेंट क्षेत्र से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण प्रगति की समीक्षा की. यह मामला अवैध निजी निर्माणों, जैसे होटल, बगीचों और अन्य विकासात्मक गतिविधियों से संबंधित है. जिनके बारे में आरोप है कि ये झील के प्राकृतिक जल प्रवाह को बाधित कर रहे हैं और इसके पारिस्थितिक संतुलन को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
होटल और लैंडस्केप गार्डन जैसे निर्माणों की हो सकती है जांच
19 जुलाई 2024 को दिए गए अपने पिछले आदेशों में, सर्वोच्च न्यायालय ने NEERI को झील के कैचमेंट क्षेत्र का सीमांकन करने और उसमें मौजूद संरचनाओं की पहचान करने और उनके प्रभाव का मूल्यांकन करने के लिए एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था. न्यायालय ने जोर दिया था कि इस रिपोर्ट में कैचमेंट क्षेत्र का स्पष्ट सीमांकन होना चाहिए और उसमें स्थित संरचनाओं के बारे में स्पष्ट जानकारी होनी चाहिए.
नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI) ने अब अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है. जिसमें होटल और लैंडस्केप गार्डन जैसी कई निजी निर्माणों पर प्रकाश डाला गया है. जिन्हें पर्यावरणीय प्रभाव के लिए जांचा जाना आवश्यक हो सकता है. ये निष्कर्ष इस क्षेत्र में चल रहे और मौजूदा विकासात्मक कार्यों पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकते हैं.
NEERI की रिपोर्ट का होगा परीक्षण
राजस्थान राज्य के लिए अतिरिक्त महाधिवक्ता शिव मंगल शर्मा ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होकर आश्वासन दिया कि NEERI की रिपोर्ट का राज्य के संबंधित विभागों के साथ परामर्श कर पूरी तरह से परीक्षण किया जाएगा. उन्होंने यह भी कहा कि रिपोर्ट के निष्कर्षों को संबोधित करते हुए एक विस्तृत उत्तर तैयार किया जाएगा और इसे निर्धारित समय के भीतर माननीय सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा.
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और के. वी. विश्वनाथन की पीठ ने उत्तरदाताओं को NEERI की रिपोर्ट पर अपना उत्तर तीन सप्ताह के भीतर दाखिल करने का निर्देश दिया. इस मामले की अगली सुनवाई 14 फरवरी, 2025 को निर्धारित की गई है. जब विस्तृत बहस की तारीख तय की जाएगी.
जानें पूरा मामला
यह मामला राजस्थान के कुंभलगढ़ वाइल्डलाइफ सेंचुरी के इको-सेंसिटिव ज़ोन में स्थित लक्षेला झील के कैचमेंट क्षेत्र से संबंधित है. विवाद इस आरोप से उत्पन्न हुआ है कि कैचमेंट क्षेत्र में कुंभलगढ़ यात्री निवास, होटल और बगीचों जैसे निजी निर्माण किए गए हैं. जो झील के प्राकृतिक जल प्रवाह को बाधित कर रहे हैं और क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन को नुकसान पहुंचा रहे हैं.
यह मामला उन चिंताओं से जुड़ा है, जो विकासात्मक गतिविधियों द्वारा पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन और झील की स्थिरता पर उनके प्रभाव को लेकर उठाई गई थीं. NEERI की रिपोर्ट, जिसमें इन मुद्दों का विश्लेषण किया गया है, इस संवेदनशील क्षेत्र में पारिस्थितिक संरक्षण और विकासात्मक आवश्यकताओं के संतुलन को लेकर चल रही बहस का आधार बनती है. सुप्रीम कोर्ट का निर्णय कुंभलगढ़ के इको-सेंसिटिव जोन में निजी निर्माणों पर दूरगामी प्रभाव डाल सकता है.
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