Peacock Hunting: राजस्थान में राष्ट्रीय पक्षी मोर की गोली मारकर हत्या, देर रात मिली थी शिकार की सूचना

भारतीय वन अधिनियम-1972 अनुसूची-1 के अनुसार मोर देश का प्रतिबंधित पक्षी है. मोर को मारना या उसका शिकार करना दंडनीय अपराध है और मोर का शिकार करने या उसे किसी भी तरह से मारने पर कम से कम 3-5 साल की कैद और 1000 रुपये का जुर्माना हो सकता है.

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Rajasthan News: मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित हुए 59 वर्ष हो गए हैं, लेकिन अब भी उनकी सुरक्षा के लिए कोई ठोस इंतजाम नहीं दिखता. आए दिन मोर की तस्करी या शिकार की जानकारियां सामने आती रहती हैं. ऐसा ही एक मामला बांसवाड़ा जिले के बारी सियातलाई वन क्षेत्र में देखने को मिला, जहां कुछ अज्ञात लोगों ने राष्ट्रीय पक्षी मोर की गोली मार कर हत्या कर दी. वन विभाग के अधिकारियों ने मृत मोर के शव को कब्जे में ले लिया है और आरोपियों की तलाश शुरू कर दी है. 

इलाज के दौरान हुई मोर की मौत

वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि देर रात को सूचना मिली कि बारी सियातलाई वन क्षेत्र में मोर का शिकार किया जा रहा है. इस पर वनकर्मी मय पुलिस जाब्ते के साथ मौके पर पहुंचे तो वहां पर एक मोर गंभीर रूप से घायल पड़ा हुआ नजर आया. उसे उपचार के लिए पशु चिकित्सालय लाया गया, जहां उसकी मौत हो गई. वन विभाग द्वारा अज्ञात लोगों के खिलाफ राष्ट्रीय पक्षी मोर की हत्या को लेकर मामला दर्ज कराया है. वहीं पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है. सहायक वनपाल कलीम शेख ने बताया कि पुलिस में मामला दर्ज कराया गया है और जल्द ही विभाग के नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी.

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5 साल तक की सजा का प्रावधान

भारतीय वन अधिनियम-1972 अनुसूची-1 के अनुसार मोर देश का प्रतिबंधित पक्षी है. मोर को मारना या उसका शिकार करना दंडनीय अपराध है और मोर का शिकार करने या उसे किसी भी तरह से मारने पर कम से कम 3-5 साल की कैद और 1000 रुपये का जुर्माना हो सकता है. भारत ने 1963 में मोर (वैज्ञानिक नाम- पेवो क्रिस्टेटस) को भारत का राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया. यद्यपि मोर वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची I के तहत संरक्षित है और धारा 51 (1-ए) के अंतर्गत मोर की हत्या के जुर्म में सात साल तक की सजा हो सकती है, फिर भी भारतीय मोर खतरे में है.

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मोर पंख से बनी कलाकृतियों के निर्यात पर प्रतिबंध 

इसके लिए मोर के सुंदर पंख और उनसे बनी वस्तुओं को घरेलू व्यापार के लिए मिली छूट जिम्मेदार है. धारा 43 (3)ए व 44(1) में दी गयी यह छूट इस आधार पर दी गई थी कि इस्तेमाल किए गए पंख प्राकृतिक रूप से गिरे होने चाहिए. एक अक्टूबर 1999 से विदेश व्यापार नीति के तहत मोर के पंखों या उनसे बनी कलाकृतियों के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया.

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