Rajasthan News: राजस्थान के लिए कहा जाता था कि- 'साहब घी का खड़ा मांग लीजिए, लेकिन पानी नहीं'. उस वक्त प्यास बुझाने का एक मात्र साधन थे कुएं, तला, बेरियों जैसे परम्परागत जल स्त्रोत. परन्तु आधुनिकता के दौरे में 35 साल से यह स्त्रोत दुर्दशा के शिकार हैं. हालांकि अब जैसलमेर में परंपरागत जल स्त्रोतों के संरक्षण, संवर्धन व जीर्णोद्धार को लेकर अनूठी पहल हुई है. जैसलमेर देगराय ओरण क्षेत्र में मनियारा तला के नाम से पहचाने जाने वाली 4 बेरियों के समूह की पहली बेरी 'नोड बेरी' से की गई है. यह सपना देगराय मंदिर व ओरण विकास संस्थान के सदस्यों ने देखा और इसे साकार करने का काम फीयरलेस फाउंडेशन व आई लव जैसलमेर सहित स्थानीय लोगों ने मिलकर किया है.
12 से 15 गांवों की बुझ सकती है प्यास
यह मनियारा तला देगराय ओरण में बना है. यह चार बेरियों का समूह है, जो आसपास के 12 से 15 गांवों कि प्यास बुझाते थे. इन अलग-अलग बेरियों का पानी अलग-अलग गांवों में बंटता था. इनमें से कुछ बेरिया 500 से 700 साल पुरानी हैं, तो कुछ उससे भी ज्यादा समय पहले बनी थी. जिसका प्रमाण यहां लगे गोवर्धन के सिलालेखों पर एक विशेष लिपि में लिखा है. जब हम नोड बेरी पर पहुंचे तो देखा काफी ग्रामीण उसकी सफाई, मरम्मत इत्यादि में सहयोग कर रहे हैं. हमारी टीम ग्रामीणों से बातचीत की और इन बेरियों कि महता को जानने की कोशिश की. उन्होंने बताया कि यह बेरिया आधुनिक युग में भी कारगर स्त्रोत साबित होंगी. यह 150 से 200 फिट तक गहरी हैं. इसकी सतह में एक बड़ा सा कमरा बना हुआ है. दिवारों में झरने की तरह रिसाव होकर बुंद बुंद पानी टपकता है. जब हमने इसका निरीक्षण किया तो इसकी बनावट काफी आधुनिक लगी. सालों पहले बिना मशीनरी इस तरह का स्ट्रक्चर खड़ा करना किसी अजूबे से कम नहीं रहा होगा.
एक उलहाने के बाद तैयार की थी बेरी
ग्रामीण से बात करने पर हमें पता चला कि नोड बेरी गांव के सुथार समाज के एक परिवार ने तैयार करवाई थी. इस इतिहास जानने के लिए हमने नजदीकी गांव सांवता के सुमेर सिंह से बात की. पर्यावरण प्रेमी सुमेर ने बताया कि एक बार भीषण गर्मी के दौर में सभी लोग लाइन से पानी भर रहे थे. एक महिला अपने बच्चे को घर में अकेला छोड़कर आई थी. बच्चा रो रहा था तो महिला ने विनती कि उसे पहले पानी भरने देवे. तभी किसी अन्य महिला ने उलाहना दिया कि अपने पति को कहो तुम्हारे लिए एक अलग बेरी तैयार करवा दे. महिला उस वक्त कुछ न बोली. शाम में परिवार वालों को इस उलाहने की जानकारी हुई तो उन्होंने यह नोड बेरी तैयार करवाई थी, जिसने 450 सालों तक सबकी प्रयास बुझाई.
मॉडल के रूप में किया जा रहा जीर्णोद्धार
इन परंपरागत जल स्त्रोतों बचाने की शुरुआत हो चुकी है. नोड बेरी का संरक्षण कर उसका जीर्णोद्धार एक मॉडल के रूप में किया जा रहा है, ताकि लोग इससे प्रेरित हो और प्रदेशभर के जल स्त्रोतों को बचाया जाए. यह आवश्यक भी है क्योंकि जैसे-जैसे सूरज की तपिश बढ़ती है, नलों से ज्यादा पानी आंखों में आ जाता है. हमने ओरण व इस मुहीम के बारे में टीम ओरण के भोपाल सिंह से खास बातचीत की.
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